जब हमें प्रोसेस के बारे में सटीक जानकारी होती है तो फिर एंड रिज़ल्ट को भी हम कंट्रोल कर सकते हैं । उस सूरत में अगर रिज़ल्ट गड़बड़ा गया है तो क्या सही करना है
, क्या ग़लत हो गया इसके बारे में हमें ठीक
-ठीक अंदाज़ा रहता है। लेकिन मामला तब पेचीदा होता है जब नतीजा तो आ जाता है लेकिन हमें पता नहीं चलता कि हमने सही क्या किया
, और क्या ग़लत किया । और अगर ये आज के वक्त में हो जब हर कारोबार में स्टडी और सर्वे पर इतना ज़ोर है
, तो मामला तिलिस्मी हो जाता है।
जैसे एक कार छह साल पहले आई
, आते ही काफ़ी हंगामा मचाया
, बिना देखे हज़ारों ने उसे बुक करवा लिया
, तब भी वेटिंग लिस्ट में रही
, आज भी है। लेकिन कंपनी भी कई बार अचरच में रही कि आख़िर ऐसी कौन सी ख़ास बात है कि इस कार को हर महीने
11-12 हज़ार लोग ख़रीद रहे हैं
, सेगमेंट में सात आठ और विकल्प होने के बावजूद इस कार ने मार्केट का पच्चीस फीसदी हिस्सा अपने नाम कर रखा है। ये थी मारुति स्विफ़्ट । जिसका नया अवतार भी हम जल्द देखने जा रहे हैं।
इससे थोड़ी अलग केस स्टडी थी फीगो। फ़ोर्ड ने जब इसे लौंच किया भारत में तो इस कार ने फ़ोर्ड की भारत में जान बचाई । लेकिन इस कार की सफलता अलग
-अलग स्टेप में आई थी और जिनमें से ज़्यादातर पर फ़ोर्ड की पकड़ थी। कंपनी ने इस कार को उतारने से पहले मार्केटिंग और आफ़्टर सेल्स पर तो काफ़ी काम किया ही था। एक एक दिन में कंपनी ने दर्जन से ज़्यादा डीलरशिप देश के अलग अलग हिस्सों में खोले
, पार्ट
-पुर्जों की क़ीमतों को कम किया और ऊपर से इन सभी कोशिशों के बारे में ग्राहकों के बीच भरपेट प्रचार किया । लौंच से पहले प्रोडक्शन फुल
-स्पीड में कर दिया
, जिससे कि ग्राहकों को इंतज़ार ना करना पड़े। और इन सबके बाद ऐसी क़ीमत पर उतारा जिसने ग्राहकों को खींचा अपनी ओर। तुरंत गाड़ियां सड़कों पर दिखने लगीं
, जैसा नुकसान शुरुआत में फोक्सवागन पोलो को हुआ
, जिसकी डिलिवरी में कई हफ़्ते लग रहे थे। जबकि हम सबको पता है कि हम भारतीय ग्राहक जब तक सड़कों पर ढेर सारी कार नहीं देखते
, नई कार पर हमारा भरोसा ज़्यादा नहीं होता। भारतीय सड़कों पर
1 लाख से ऊपर फ़ीगो उतर चुकी है।
ख़ैर ये तो दो पहलू हो गए। लेकिन इसके बाद की कहानी भी दिलचस्प है। फ़ोर्ड
, जिसने फ़ीगो के वक्त कई दांव खेले थे और सभी लगभग सही पड़े थे वो ही पलट गई अपने स्टैंड से। नई फ़िएस्टा जो फ़ोर्ड ने लौंच की वो हो गई है अपने सेगमेंट की सबसे मंहगी कार। बेस वेरिएंट की क़ीमत
8 लाख
23 हज़ार से शुरु होती है और टॉप वेरिएंट की क़ीमत
10 लाख
42 हज़ार रु तक जाती है। अब ये क़ीमत कई मामलों में चौंकाने वाली है।
एक वजह तो ये कि फ़ीगो को देखते हुए लग रहा था कि फ़ोर्ड की रणनीति बदल चुकी है भारत में। वो ग्राहकों को पैसा वसूल कार देने का मूड बना चुकी है
, और फ़ीगो के साथ वो इमेज पक्का भी हुआ था
, और बिक्री भी ज़ोरदार मिली थी। लेकिन फ़िएस्टा के साथ कंपनी नए रास्ते पर निकल गई है।
दूसरी वजह इस सेगमेंट में होने वाली उथल
-पुथल है। एक तो दशक भर से नंबर एक हौंडा सिटी को पछाड़ा वेंटो ने
, एसएक्स
4 आई डीज़ल अवतार में। इन सबको हिला दिया ह्युंडै की नई वर्ना ने ।
20 हज़ार बुकिंग के साथ। फिर हौंडा का बंपर दांव आया
, सिटी की क़ीमत में
66 हज़ार रु तक की कटौती। यानि सेगमेंट का पूरा खेल बदल चुका है
, ऊपर से कार बाज़ार में मंदी आ गई।
और इस सब बैकग्राउंड में फ़ोर्ड का ये दांव थोड़ा अटपटा लग रहा है। भले ही नई फ़िएस्टा पहले ख़ूबसूरत हो
, काइनेटिक डिज़ाइन इसे आकर्षक और आक्रामक बनाता हो। कई ऐसे फ़ीचर्स हों जो इस सेगमेंट में पहली बार आए हों। जिसमें सबसे दिलचस्प है इसका वॉयस कंट्रोल फ़ीचर। जिससे आप सिर्फ़ आवाज़ देकर कार के म्यूज़िक सिस्टम
, फोन
, एसी वगैरह को कंट्रोल कर सकते हैं। कार में जगह ठीक
-ठाक है और चलने में तो मज़ेदार है ही। लेकिन इन सबके बावजूद क्या नई फ़िएस्टा की बिक्री फ़ैंटास्टिक हो पाएगी फ़ोर्ड के लिए। अभी के माहौल में मेरे मन में थोड़ा शक है।
(प्रभात ख़बर में पब्लिश्ड)