ये वो कंपनी है जिसकी भारत में एंट्री भी विशुद्ध भारतीय स्टाइल में हुई है। एंट्री हुई तो कुछ साल पहले थी लेकिन क्या कांप्लिकेटेड एंट्री कही जाएगी ये। ख़ासकर गठजोड़ के मामले में। किसकी सास, किसकी ननद थी और किसका जीजा किसके बच्चे का ममेरा फूफा था ये समझ में नहीं आया। ये है फ्रेंच कंपनी रिनॉ। जिसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गठजोड़ है निसान के साथ ( जो भारत में अलग से मौजूद है) और जो भारत आकर मिली महिंद्रा एंड महिंद्रा से, निकाली अपनी एंट्री सेडान लोगन, जो दरअसल रिनॉ की ग्रुप कंपनी डाचिया का एक अंतर्राष्ट्रीय मॉडल थी। वही लोगन पहले बिकी, फिर थकी और आख़िरकार रिनॉ ने उसे महिंद्रा के हाथों सुपुर्द कर दिया (जिसे अब वेरीटो के नाम से जाना जाता है) और उस गठजोड़ से निकल आई। सास बहू सीरियल का एक एपिसोड पूरा। दूसरा एपिसोड था बजाज के साथ। मोटरसाइकिल-स्कूटर और ऑटो बनाने वाली बजाज के साथ इस कंपनी ने हाथ मिलाया ढाई हज़ार डॉलर कार बनाने के लिए। ये वो वक्त था जब रतन टाटा ने एक सपना देख लिया था और उस सपने ने पूरे टाटा मोटर्स की नींद उड़ा रखी थी। उसी नैनो को टक्कर देने के लिए रिनॉ और बजाज ने अपनी छोटी कार के प्रोटोटाइप को तैयार किया था। जिसे लेकर दोनों कंपनी का बाद में जो रुख़ रहा उसने कभी हां कभी ना के मुहावरे को शाहरुख़ की फ़िल्म से भी ज़्यादा सार्थक बना दिया था। फिर होते-होते बात सेपरेशन तक पहुंच गई लगती है। डाइवोर्स लॉयर रिनॉ और बजाज के बीच झूल रहे हैं। अब भारत जैसे बाज़ार में किसी कार कंपनी की ऐसी एंट्री हो तो फिर यही कहा जा सकता है कि शनि की साढ़े साती है और शुक्र की पौने आठी।
इसी ग्रह से निकलने के लिए रिनॉ ने 2012 के आख़िर तक पांच गाड़ियों के भारत में लौंच का ऐलान कर रखा है। फ़्लूएंस सेडान तो आ ही चुकी थी और अब आ गई है दूसरी गाड़ी भी। जो है दरअसल एक एसयूवी। यानि स्पोर्ट्स यूटिलिटी वेह्किल, जिन गाड़ियों के ख़िलाफ़ हमारे एक्स पर्यावरण मिनिस्टर ने काफ़ी तीखा रुख़ अपनाया था। (ये बात अलग है कि उन्हें उस मंत्रालय से हटा दिया गया है) ।
तो कोलियोस है नाम रिनॉ की इस नई एसयूवी का। जिसे बहुत लंबी दूरी पर ड्राइव के लिए मैं ले गया था। काफ़ी मज़ा आया चलाने में। नो डाउट। क़ीमत थोड़ी ज़्यादा है, ख़ासकर एक नई कंपनी की एसयूवी के लिए जिसके सामने सांटा फे, फ़ॉर्चूनर जैसी गाड़ियां पहले से मौजूद हैं और इसी बजट में कई एस्टैबलिश्ड कारें भी उपलब्ध हैं। ख़ैर कार देखने में आकर्षक है, अंदर काफ़ी जगह है। कमसेकम फ़ॉर्चूनर से ज़्यादा। पिछली सीट तीन के लिए टाइट है लेकिन दो लोग आराम से बैठ सकते हैं। इंजिन भी ताक़तवर है। हां वेरिएंट एक ही दो लीटर डीज़ल, ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन के साथ। और ये ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन थोड़ा और चुस्त होता तो और मज़ा आता। और 4 व्हील ड्राइव मोड में भी एआरएआई माइलेज 13.7 किमी प्रति लीटर का आया है। जो चलन में हैं वो सारे सेफ़्टी के इंतज़ाम तो किए ही गए हैं, साथ में इसे ज़्यादा कूल बनाने के लिए इसमें बोस का नामी प्रीमियम म्यूज़िक सिस्टम भी फिट किया गया है।
अगर कोलियोस को मै एक स्टैंडअलोन गाड़ी के तौर पर देखूं तो ये एक अच्छी प्रीमियम क्लास एसयूवी कही जाएगी, लेकिन इसकी क़ीमत और इसके भारत में नए ब्रांड को फ़िलहाल भारतीय ग्राहकों की कई कसौटियों पर खरा उतरना होगा। और कंपनी कहीं ना कहीं इसके लिए तैयार भी लग रही है। वैसे फ्रेंच में क्या मुहावरा है ये तो नहीं पता लेकिन हिंदी में तो सोना तप कर कुंदन ही बनता है, और हो सकता है कंपनी को इस पर भरोसा भी हो...
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1 comment:
kranti ji ....new tata safari merlin ka bahut dino se wait hai hume....please uske baare me batayein....ya fir uska koi vikalap bta dein.....agar kuch nayi pictures available hon to kuch baat hi alag ho jayegi...thoda hume bhi wait karne k liye hosla badh jayega
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