रीकॉल का कैसा मतलब निकाला जाता है मीडिया में ....ये सवाल अभी हाल में आया..इस सवाल की टाइमिंग सही रही, हाल फिलहाल के रीकॉल के ऐलानों को देखते हुए, उन ऐलानों पर बनने वाली ख़बरों के देखते हुए...और ऊपर से ये सवाल आया किसी कार निर्माता की तरफ़ से...तब जवाब देते वक्त लगा कि कार रीकॉल के सवाल पर अभी भी हमारी राय काफ़ी बंटी हुई है, चाहे वो मी़डिया हो, आम ग्राहक हो या फिर कार निर्माता ही क्यों ना हों....ग्लोबल स्तर पर रीकॉल के मामले में इतनी मारामारी देखी हमने टोयोटा को लेकर, जिस कंपनी को लाखों गाडि़यों का रीकॉल करना पड़ा, चाहे एक्सिलिरेटर की शिकायत आई हो या ख़राब कार्पेट की। वहीं कुछ महीने पहले जब सालों से मिडसाइज़ सेडान सेगमेंट में राज करने वाली हौंडा सिटी का एकाधिकार ख़त्म हुआ था,नंबर एक का ताज छिना तो तुरंत उसका रिश्ता हाल में ऐलान हुए हौंडा सिटी कारों के रीकॉल से जोड़ दिया गया। और यहां पर सवाल ये उठता है कि रीकॉल के बारे में हमारी समझ कैसी है और उस समझ का असर क्या होता है।
आमतौर पर अमेरिकी बाज़ार में बहुत ठोस सुरक्षा और ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं। जहां अगर कारों में कोई छोटी गड़बड़ी भी हो तो फिर हज़ारों कारों का रीकॉल होना कोई अनोखी बात नहीं ...शायद ही कोई कंपनी ऐसी है जिसकी गाड़ियां वापस नहीं बुलाई गई हो। जहां इसे कार कंपनियों का ज़िम्मेदार रवैया माना जाता है वही लग्ज़री गाड़ियों के रीकॉल जैसे बीएमडब्ल्यू के हाल के रीकॉल पर सवाल भी उठाए ज़रूर जाते हैं।
वैसे यहां पर मैं वो मोटे कनफ़्यूज़न को दूर कर दूं जो कई लोगों के मुंह से सुना था, कि कार को वापस बुलाना मतलब गाड़ी वापस लेना नहीं है...कार कंपनियां कार को वापस वर्कशॉप में बुलाकर खराब पार्ट-पुर्ज़ा बदलती हैं, पूरी कार नहीं।
भारतीय कार कंपनियों में फ़िलहाल रीकॉल का डर साफ़ देखा जा सकता है। पहले भी कई कारों के कुछ पार्ट कंपनियों ने ख़ुद बुलाकर बदले थे। लेकिन रीकॉल का नाम नहीं दिया था। लेकिन हाल में हौंडा और मारुति ने थोड़ी हिम्मत तो दिखाई है। हौंडा को अपनी सिटी के इंजिन के एक स्प्रिंग को बदलने के लिए वापस बुलाना पड़ा और मारुति को अपनी कारों के इंजिन के एक बोल्ट को बदलने के लिए गाड़ियां बुलानी पड़ी तो कंपनी बाकायदा ऐलान किया। वहीं टाटा मोटर्स ने नैनो में बदलाव के लिए आफ़र तो दिया, कि एक्स्ट्रा सुरक्षा के लिए नई फिटिंग ग्राहक मुफ़्त करवा सकते है लेकिन तुरंत ही ये भी प्रेस नोट जारी कर दिया कि वो रीकॉल नहीं।
कार रीकॉल पर बहस इन्हीं दो सिरों पर झूलती रहेगी। इसके एक सिरे पर तो ग्राहकों के साथ धोखा होगा । चूंकि कार कंपनी सार्वजनिक तौर पर किसी ख़ामी को स्वीकार नहीं करतीं तो उनकी ज़िम्मेदारी नहीं बनती और ऐसे में कई बार ग्राहकों को अपने ख़र्चे पर ख़राब हिस्सा बदलवाते और वर्कशॉप का चक्कर लगाते देखा है हमने।
दूसरी तरफ़ जहां ये समझना ज़रूरी है कि कारों का प्रोडक्शन कोई एक दो पुर्ज़े के बनने से नहीं होता, हज़ार हिस्से जुड़कर कार बनती है। जिनमें से कई हिस्से बाहरी कंपनियां भी बनाती हैं। ऐसे में किसी पार्ट बनाने वाली कंपनी की ग़लती से किसी ख़ास लॉट में गड़बड़ी होना नामुमकिन नहीं। तो फिर ऐसे में ज़रूरत है उस जागरूकता कि जिससे कार निर्माता अपने ख़राब प्रोडक्शन के लिए जवाबदेह हों, ज़िम्मेदार हों। लेकिन साथ में कंपनियों को वो भरोसा भी मिलना चाहिए मीडिया और ग्राहकों से कि वो खुलकर अपनी ग़लती माने। आने वाले वक्त में उम्मीद है कि कंपनियां ज़्यादा पारदर्शिता से अपनी ग़लतियों को सुधारने की कोशिश करेंगी और ग्राहकों के हक़ नहीं मारे जाएंगे।
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