आप तो वहीं हैं ना जो टीवी पर माइलेज बताते रहते हैं...आपके बताने पर ही मैंने स्कौर्पियो ली थी लेकिन मज़ा नहीं आ रहा...और ये लाइन मुझे टेंशन देने के लिए काफ़ी होता, पहले भी बातों के ऐसे थप्पड़ खा चुका था मैं । लेकिन आज नहीं क्योंकि आज मैं कुछ बहुत ही दिलचस्प सवारियों के साथ खड़ा था, जिसे देखकर ही वो सज्जन बीच सड़क पर गाड़ी रोककर मैदान में उतरे थे। वो सवारियां जो शौकीनों की सवारी का अगला लेवल है। ये हैं पोलैरिस की ऑफ़ रोडिंग सवारियां।
ऑफ़ रोडिंग का मतलब तो साफ़ है कि रोड से हटके। यानि उन जगहों के लिए जहां सड़कें नहीं बनी हैं, ऊबड़-खाबड़ जंगली रास्ते, मुश्किल बर्फ़ीले रास्ते। ये कौंसेप्ट हमारे लिए थोड़ा एलियन है, या कहें कि इस पर कभी ज़्यादा ध्यान हमने दिया नहीं। भले ही अब भारत की सड़कों का एक बड़ा हिस्सा, बनावट और समतल होने के मामले में दुनिया भर बड़े देशों की बराबरी करता हो लेकिन उन हाईवे से बाहर जो सड़क निकल कर आती है, वो ऑफ़रोडिंग से कम नहीं, जहां पर हमारी आपकी सस्ती-टिकाऊ गाड़ियां तो चल ही जाती हैं, तो ऐसे में ऐसे कौंसेप्ट के बारे में हम क्यों सोचेंगे। ख़ैर मेरे जैसों को तो ज़रूरत भी नहीं। हां विदेशियों की ज़रूरतें अलग होती हैं, लाइफ़स्टाइल अलग होता है, जिसके लिए उन्होंने ये बाइक्स और गाड़ियां तैयार कीं। खेतों में काम करने के लिए, रेत में जाने के लिए, बर्फ़ पर चलने के लिए, जंगली रास्तों पर तेज़ भागने के लिए और आर्मी के इस्तेमाल के लिए।
बड़े-बड़े चौड़े पहिए जो कीचड़ से लेकर रेत में पकड़ बनाए रखे, हल्की बॉडी जो किसी भी मुश्किल हालत में बोझ ना बने इंजिन के लिए, मज़बूत सस्पेंशन जो तमाम तरीके की उछल-कूद को बर्दाश्त कर सके। और ऊपर से इंजिन जिसकी प्राथमिकता, मुश्किल से मुश्किल रास्तों में बेहतर पावर और टॉर्क देने की है माइलेज नहीं।
जैसे एटीवी, ऑल टेरेन वेह्किल जिसे कहते हैं क्वाड बाइक भी। वो इसलिए क्योंकि ये चार पहियों की बाइक होती है, हैंडिल के साथ। रेत, मिट्टी, पत्थर पर आराम से भागती है। इसके कई वर्ज़न भारत में लौंच हुए हैं।
वहीं रेंजर गाड़ियां होती हैं, स्टीयरिंग व्हील के साथ, दो लोगों के साथ, सामान रखने के लिए जगह के साथ। इसके भी कई अवतार आए हैं।
साथ में आई हैं स्नो-मोबील। अब ये उन देशों के लिए बहुत ज़रूरी हैं जहां साल के ज़्यादातर हिस्से में बर्फ़ जमी होती है। बर्फ़ पर कोई भी सवारी चलाना हमेशा से बहुत पेचीदा काम रहा है, ऐसे में ये सवारियां बहुत काम में आती हैं।
वैसे है तो ये शौकीनों के शौकीन के लिए। जहां पर इनका ना तो रजिस्ट्रेशन होता है और ना ही लाइसेंस की ज़रूरत होती है, आम सड़कों पर इन्हें चला भी नहीं सकते हैं। और इन सबका मतलब ये कि आप इन्हें भगा सकते हैं, अपने प्राइवेट फ़ार्महाउस में या किसी रिज़ॉर्ट में ।
या आप वो न्यू एज किसान हो, जैसे वो भाई जो इस कॉलम की शुरूआत में मिला था। करोड़ों की ज़मीन का मालिक जो अपनी खेतीबाड़ी के सुपरवाइज़री के लिए पसंद कर सकता है ये एटीवी।
ये गाड़ियां फ़िलहाल भारत में कुछ रिज़ॉर्ट्स और प्राइवेट फ़ार्म हाउसों में देखने को मिलती हैं। और उसी चुनिंदा ग्राहकों के लिए पोलैरिस भारत आई है। और आई है कुछ नए ग्राहक बनाने के लिए भी। क्योंकि कंपनी ने ऐलान किया है कि अगले 3-5 सालों में कंपनी भारत में असेंबली प्लांट लगाएगी, और आरएंडडी सेंटर भी खोलेगी। इन सबका मतलब ये कि फ़िलहाल जो सवारियां 2 से लेकर 20 लाख रु की लौंच हुई हैं, वो सस्ती भी हो जाएंगी। तब हो सकता है कि मैं ख़रीद लूं ऐसी सवारी , जिसे अपने गांव ले जा सकूं। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक मैं याद करूंगा अपनी इसी राइड को जो मैंने की थी। ख़ासकर RZR की, जिसे लेकर मैं मिट्टी और कीचड़ में भागा था । कितना मज़ा आया था ये बयान करने के लिए मेरे पास फ़ौंट नहीं है इस कंप्यूटर में :)
(Published in Prabhat Khabar)
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