September 05, 2011

खेलेंगे G(55) जान से ....



पहले मज़ाक में कहते थे लेकिन आज की ये सच्चाई है। केवल भारत की नहीं, दुनिया भर  के लोग अब यही पूछ रहे हैं। कितना माइलेज देती है - जिस सवाल से हम हिंदुस्तानी हर गाड़ी को दागते हैं। मारुति ने तो ऐड की पूरी सीरीज़ चला दी इसी सोच के साथ और मुझे तो वो पसंद है ही, मुझे यकीन है आपमें से ज़्यादातर को वो ऐड मज़ेदार लगे ही होंगे जिसमें से एक विजय माल्या की तरह दीखने वाला मालदार इंसान, एक लग्ज़री यॉट ख़रीदने आया है और वो पूछता है कि -कितना देती है, या फिर वो आर्मी जनरल जो रशियन टैंक के माइलेज के बारे में पूछता है कि कितना देती है। कुल मिलाकर ये सच्चाई मान ली गई है कि हम हिंदुस्तानी हर चीज़ में वैल्यू देखते हैं, वो वैल्यू पैसा-वसूल फ़ैक्टर हो सकता है या फिर ब्रांड और लोगो हो। और ये सवाल हर पहलू को कवर करता है। मारुति 800 से लेकर रोल्स रॉयस तक के लिए। 
वैसे ही अमेरिकी ग्राहकों के बारे में ये मानी हुई सच्चाई है कि उन्हें छोटी चीज़ें तो पसंद ही नहीं। यहां तक कि चॉकलेट और बर्गर के साइज़ भी ऐसे होते हैं कि उनमें से एक का नाम है डेथ बाई चॉकलेट । और यही पसंग लागू होती है कारों के मामले में भी। वो तो हाल की तेल क़ीमतों और रिसेशन ने उनका मूड बदला है और अब वो भी छोटी किफ़ायती कारों की ओर आ रहे हैं। नहीं तो हाल हाल तक भीमकाय एसयूवी को छोड़ने में अमेरिकियों के दिल के हज़ारों टुकड़े हो रहे थे, भले ही एक-एक गाड़ी ऐसी जो पूरा तेल का कुआं पी जाए। 
जो हाल अमेरिका का था वही आजकल चीन का हो गया है। चीनी ग्राहक भी अब बड़ी बड़ी गाड़ियों के ज़बर्दस्त फ़ैन हो गए हैं। स्पोर्ट्स यूटिलिटी वेह्किल से लेकर लग्ज़री गाड़ियां तक । जैसे मर्सेडीज़ ने दिलचस्प आंकड़ा दिया कि वहां पर कंपनी की बिक्री एक उल्टे पिरामिड की तरह है। यहां पर मर्सेडीज़ की सबसे मंहगी कारें, सबसे ज़्यादा बिक रही हैं और सबसे सस्ती मर्सेडीज़ सबसे कम। और केवल एक नहीं लगभग सभी बड़ी कार कंपनियों के डिज़ाइनर इसी सोच के साथ काम कर रहे हैं कि दुनिया के सबसे तेज़ी से बढ़ते  इस बाज़ार के ग्राहकों के लिए सबसे अहम है साइज़ । 

लेकिन आज की ये बातचीत कहां से शुरू हुई। दरअसल हाल ही में मैंने चलाई एक बहुत ही दिलचस्प एसयूवी। जिसका नाम है मर्सेडीज़ G -55 AMG । भारत में ये करोड़ रुपए से थोड़ी मंहगी है। 
एक बहुत ही दिलचस्प एसयूवी। दिखने में आपको पुराने ज़माने की जीप जैसी लगेगी, बनावट, डिज़ाइन और सीट के मामले में। शेप की बात करें तो हो सकता है बोलेरो की याद आए। लेकिन सिर्फ यहीं तक। आगे के आंकड़ें इसके कुछ ज़्यादा ही धमाकेदार हैं । साढ़े पांच लीटर का इंजिन जिसकी ताक़त है 507 हॉर्सपावर की। और जब ये स्टार्ट होती है तो लगता है सड़क को रौंदने वाली है। और जब इसे ड्राइव करना शुरू किया तो लगा कि कोई और ही आत्मा घुस आई है इस रेट्रो सी दीखने वाली जीपनुमा एसयूवी में । ख़ैर इसे लेकर दौड़ाने में ख़ूब मज़ा तो आया क्योंकि इसकी हैंडलिंग आम एएमजी कारों की तरह नहीं है, इसलिए मोड़ने के दौरान इसके पहिए ऑस्ट्रिया के सेल्फेल्डेन के उस वादी में हल्ला मचा रहे थे। लेकिन असल मज़ा आया सड़कों पर। जहां पर भले ही बहुत तेज़ ना चलाया हो लेकिन इसकी आवाज़ ने अचानक मुझे ख़ास बना दिया। और लुक ने लोगों की नज़रें घुमा दीं। ताक़त ऐसी जो माहौल को हिला दे। 
और ऐसे ही वक्त में साथ  में मौजूद मर्सेडीज़ के इंजीनियर ने बताया कि ये गाड़ी कुछ ख़ास ग्राहकों की पसंदीदा गाड़ी हैं। शेख़ों की। वो ग्राहक ऐसे होते हैं जो केवल गाड़ी की साइज़ के ऊपर फ़ैसला नहीं लेते। खाड़ी के देशों के सुपर-रिच को सुपर गाड़ियां ही पसंद आती हैं, जिनकी क़ीमत को ख़ास होती है , साथ में ताक़त के ऊपर भी उनका काफ़ी ज़ोर होता है।  रफ़्तार, ताक़त और सबसे ख़ास एक्सक्लूसिविटी। जिसे वो शान से निकले बुर्ज-अल-अरब की तरफ़। 
कहने का मतलब कि गाड़ियों में पसंद के मामले में भी हर देश के ग्राहकों का एक ख़ास धर्म होता है। जिस पर तमाम आर्थिक और सामाजिक बदलावों का असर पड़ता रहता है। और गाड़ियां केवल अपने ड्राइवरों के बारे में बयान नहीं देतीं, वो उस देश, समाज और वक्त के बारे में भी बहुत कुछ कहती हैं।

(प्रभात ख़बर में पब्लिश्ड)

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