January 25, 2015

इटैलियन बेनेली की इंडियन एंट्री


इटैलियन गाड़ियों का ज़िक्र आते ही हमारे ज़ेहन में एक से एक दमदार और ख़ूबसूरत कारों, मोटरसाइकिलों और स्कूटरों की तस्वीर आती है। चाहे तेज़ तर्रार ख़बूससूरती हो फ़ेरारी या लैंबोर्गिनी जैसी सुपर कारों की, डुकाटी जैसी मोटरसाइकिल हों या फिर कूल दिखने वाले स्कूटर हों, चाहे वेस्पा हो या लैंब्रेटा, जिस ना सिर्फ़ आज के रफ़्तार प्रेमी पसंद करते हैं बल्कि पुराने ज़माने के हिंदुस्तानी भी। लेकिन इस फ़ेहरिस्त में बेनेली ऐसा नाम नहीं रहा है। ये भी एक मोटरसाइकिल ब्रांड है और और इस बीच में अगर बेनेली का नाम हम ले रहे हैं तो इसकी यही वजह है कि इस कंपनी ने भी दुनिया के दूसरे सबसे बड़े मोटरसाइकिल बाज़ार में आख़िरकार एंट्री मार ली है। 

सबसे पुरानी इटैलियन मोटरसाइकिल कंपनी ने ऐलान किया है कि वो भारत में अपनी पांच मोटरसाइकिल उतारने वाली है। TNT 302, TNT 600 GT, TNT 600i, TNT 899, TNT 1130 R 
यहां पर TNT का मतलब है Tornado Naked Tre । इनकी क़ीमतों का अभी ऐलान नहीं हुआ है, अभी औपचारिक लौंच का इंतज़ार है। कंपनी फ़िलहाल अपने डीलरशिप को अंतिम रूप देने में लगी है।

कंपनी की योजना है कि वो भारत में अगले 6-8 महीने में 20 डीलरशिप बनाएगी, जिनमें से आठ बड़े शहरों में तीन-चार महीनों में सबसे पहले डीलरशिप शुरू होंगे, जिनमें मौजूदा मेट्रो शहर शामिल हैं। ख़बर ये भी है कि कंपनी इन स्पोर्ट्स बाइक्स के साथ छोटी मोटरसाइकिलें उतारने की भी सोच रही है। 

सौ साल से पुरानी इस इटैलियन कंपनी फ़िलहाल चाइनीज़ कियानजियांग ग्रुप का हिस्सा है। अब वो भारत में डीएसके मोटोव्हील्स के साथ आई है। जो इन मोटरसाइकिलों को फ़िलहाल पुणे में असेंबल करेगी, बेचेगी और सर्विस-स्पेयर पार्ट का ज़िम्मा उठाएगी। 



* पुरानी छपी हुई है

January 23, 2015

मॉडर्न भी क्लासिक भी Continental GT

मोटरसाइकिलों का ये ऐसा सेगमेंट है जिससे बहुत से हिंदुस्तानी मोटरसाइकिल प्रेमी परिचित नहीं है। कैफ़े रेसर । कुछ सालों से एनफ़ील्ड अपनी इस मोटरसाइकिल को ऑटो एक्स्पो में पेश कर रही थी। लोगों में उत्सुकता तो थी लेकिन बहुत चुनिंदा बाइकप्रमियों में इस पर चर्चा देखने को मिल रही थी। लेकिन अब वक्त आ गया है कि इस नए तरीके की मोटरसाइकिल को नज़दीक से देखने का मौक़ा आ गया है। क्योंकि रॉयल एनफ़ील्ड ने अपनी कैफ़े रेसर बाइक कांटिनेंटल जीटी को लौंच कर दिया है। कंपनी का कहना है कि ये उसकी अब तक की सबसे हल्की, सबसे तेज़ और सबसे ताक़तवर बाइक है। क्लासिक स्पोर्ट्स बाइक कैटगरी में आने वाली कांटिनेंटल जीटी की दिल्ली में ऑन रोड क़ीमत 2 लाख 5 हज़ार रु रखी गई है। मुंबई में इसकी ऑन रोड क़ीमत 2 लाख 14 हज़ार रु रखी गई है। 
दरअसल 60 के दशक में बाइकप्रेमी अक़्सर वीकेंड पर छोटी रेस किया करते थे। जैसे अपने कॉफ़ी हाउस तक या एक से दूसरे कैफ़े तक। भले ही ये आम सड़कों पर या छोटी दूरी की रेस हों लेकिन सभी बाइकप्रेमी अपनी मोटरसाइकिलों को काफ़ी स्पोर्टी बनाते थे, वज़न कम रखते थे और बाइक को ज़्यादा से ज़्यादा तेज़ बनाने की कोशिश करते थे। तो रेस भी करे, अच्छी हैंडलिंग भी हो। अब इन्हें क्लासिक कह सकते हैं। तो उसी क्लासिक ट्रेंड को नए ज़माने के ग्राहकों के लिए तैयार किया गया है और नए ज़माने की इस क्लासिक बाइक की नई चैसी तैयार करने के लिए यूके की कंपनी से भी मदद ली है। इसमें लगा हुआ है सिंगल सिलिंडर 535 सीसी का इंजिन। कंपनी ने इसे ज़्यादा तेज़ बनाने के लिए बाइक की ईसीयू में तब्दीलियां की हैं। 
 हल्की, ताक़तवर और तेज़ होने के साथ कुछ और चीज़ेों होती थीं जो कैफ़े रेसर की पहचान होती थीं। वो थे इसके नीचे हैंडिलबार। जिससे स्पोर्ट्स बाइक की तरह बाइकर आगे झुककर राइड करते थे। टैंक थोड़ा छोटा होता था, सीट सपाट होती थी। आमतौर पर मोटरसाइकिलों के जो भी हिस्से ग़ैरज़रूरी हैं उन्हें हटा दिया जाता था। यही सब कुछ इस कांटिनेंटल जीटी में भी देखने को मिलेगा। 

January 19, 2015

Indian Bikes in India


-कौन सी बाइक ?
-इंडियन बाइक
-कितने की ?
-साढ़े छब्बीस से तैंतीस लाख रु 
-क्या ? कौन सी इंडियन बाइक कंपनी ऐसी महंगी बाइक लेकर आई है ? 
-इंडियन नाम है, लेकिन कंपनी अमेरिकन है । 
-अमेरिकन कंपनी और नाम इंडियन ?

तो ये बातचीत कई बार दुहराई गई, जब कुछ लोगों ने इस मोटरसाइकिल की शूटिंग करते हाइवे पर देखा या फिर इसे चलाने के बाद मेरे सहयोगियों ने जब मुझे अपने राइडिंग जैकेट और हेलमेट के साथ देख । और लगभग सभी बातचीत में इस बाइक का नाम काफ़ी पेचीदा मसला रहा। लेकिन इंडियन चीफ़ कहते ही बात सलट गई। ख़ैर दिलचस्प बाइक रही और इसकी सवारी भी। वैसे कहानी भी कम दिलचस्प नहीं रही है। इंडियन चीफ़ सौ साल से पुरानी कंपनी है। दरअसल एक वक्त था जब इंडियन चीफ़ का जलवा था। आते ही इस मोटरसाइकिल ने अपनी काबिलियत से सबको चकित कर दिया था। वैसे भी अंतर्राष्ट्ीय बाज़ार में उन गाड़ियों की इज़्ज़त तुरंत होती है जिसका प्रदर्शन मोटरस्पोर्ट में अच्छा हो। इंडियन के साथ ऐसा ही हुआ। शुरू होने के दस साल में कंपनी ने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। जब १९११ में आइल ऑफ़ मैन के नामी रेस में पहले तीन स्थान पर कब्ज़ा किया । और आने वाले पंद्रह बीस साल इस कंपनी के नाम रहे। जहां इसकी बाइक स्काउट काफ़ी नामी रही। लेकिन १९५३ में जाकर कंपनी का दिवाला निकल गया और फिर ये वापसी नहीं कर पाई। कई कंपनियों ने कोशिश की लेकिन कुछ नतीजा नहीं निकला। लेकिन इस ब्रांड का नाम शायद ऐसा था जो ख़त्म होने वाला नहीं था। इसीलिए बंद होने के आधी शताब्दी के बाद भी कोशिशें चालू रहीं इसे वापस ज़िंदा करने की। और उसी का नतीजा दिखा २०११ में जब पोलारिस कंपनी ने इंडियन को ख़रीदा, फिर से तैयार करना शुरू किया और तीन मोटरसाइकिलों को लौंच भी कर दिया।
इंडियन चीफ़ क्लासिक, इंडियन चीफ़ विंटेज और चीफ़टन। 
और ये तीनों भारत में भी लौंच हो गई हैं। लेकिन इस अमेरिकी विरासत क ेलिए पैसे भी काफ़ी मांगे जा रहे हैं। क्लासिक जहां साढ़े छब्बीस लाख रु में सबसे सस्ती इंडियन है वहीं ३३ लाख रु में चीफ़टन सबसे महंगी। ये क़ीमत रेंज किसी भी मोटरसाइकिल के लिए भारत में तो महंगा माना ही जाएगा। हालांकि कंपनी अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अपनी मोटरसाइकिलों के साथ अच्छा प्रदर्शन कर रही है। 
तो इनमें से एक को चलाने का मौक़ा मिला मुझे और उसे लेकर मेैं छोटे सफ़र पर निकला भी। लगभग पौने चार सौ किलो वज़न वाली मोटरसाइकिल इतने स्मूद तरीके से चलेगी इसका अंदाज़ा इसे चलाने का बाद ही मिल सकता है। इसमें लगे १८११ सीसी के इंजिन से निकलने वाला टॉर्क इतना ज़ोरदार होता है कि खुली सड़कों पर आप बस लंबी राइड पर जाना चाहेंगे। इसमें एबीएस जैसे फ़ीचर्स तो हैं ही, क्रूज़ कंट्रोल भी है। कारों की तरह आप इसके स्पीड को सेट करके आराम से लंबी राइड कर सकते हैं। हालांकि भारत में इसका मज़ा लेना मुमकिन नहीं जहां सड़कों पर सामने से कुछ भी आ सकता है। हैंडलिंग और राइड बहुत मज़ेदार लगेगी। ढेर सारा क्रोम इसे काफ़ी ठोस और स्टाइलिश लुक देता है। इसकी आवाज़ भी दमदार लगेगी और जापनी बाइक्स से बिल्कुल अलग। वैसे भारत में भी इस ब्रांड को जानने वाले कुछ बाइक प्रेमी हैं। लेकिन कंपनी फिलहाल कोशिश कर रही है यहां अपनी पैठ बनाने की। आने वाले वक्त में हम इसे भी हार्ली की तरह कुछ सस्ती बाइक्स लाते देख सकते हैं। कमसेकम भारत में प्रोडक्शन करके, जिससे इस पर लगने वाली ड्यूटी ख़त्म हो। 
इंडियन के बंद होने में और रीलौंच होने के बीच जो वक्त गुज़रा है उस दौरान मोटरसाइकिलों की दुनिया बहुत बदल चुकी है और इंडियन को अपनी पहचान वापस पाने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। इंडियन ख़ुद को पहली अमेरिकन बाइक कहती है। ज़ाहिर सी बात है कि इस दावे के निशाने पर हार्ली है, जिसने दुनिया भर में अमेरिकन बाइक के तौर पर नाम कमाया है। ऐसे में इंडियन को सबसे पहले उसी को चैलेंज करना था अगर उसे इस सेगमेंट में वापसी करनी है। कंपनी कह भी रही है अपने प्रचार में कि अब लोगों के पास विकल्प आ गया है। हालांकि भारत में ये बात कितनी सच होगी पता नहीं क्योंकि इसकी क़ीमत काफ़ी ज़्यादा है हिंदुस्तानी मार्केट के हिसाब से। 

January 17, 2015

ऑटोमैटिकल्ली Automatic ...

बहुत सालों पहले दिल्ली में एक म्यूज़ियम खुला था। अलग और ख़ास। प्रो बोनो पब्लिको के नाम से। ये म्यूज़ियम था विंटेज और क्लासिक कारों का। एक से एक ख़ूबसूरत, पुरानी और नायाब कारें यहां पर लगी हुई थीं। जिन कारों को अच्छे से रिस्टोर किया गया था, यानि एक-एक पार्ट पुर्ज़े को असल हालत रंग-रूप में रखा गया था। चमका कर और रंग-रोगन करके। वहीं पर था जब एक बहुत ही लाल रंग की ख़ुबसूरत और बहुत ही लंबी कार पर नज़र गई। ये कार थी शेवरले की बेलएयर। जैसे पुरानी फ़िल्मों में हीरो के पास हुआ करती थी। इस म्यूज़ियम को शुरू करने वाले दलजीत टाइटस, जो एक नामी वक़ील हैं उनसे बात हो रही थी तो पता चला कि शेवरले की ५० और ६० की दशक की कारों का उन्हें ख़ास शौक है। और उन्हीं में से एक थी ये कार भी। इसी बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि कैसे एक बार इसमें मैन्युल ट्रांसमिशन आया था यािन गियर वाला और लेकिन ग्राहकों ने इसे बिल्कुल ख़ारिज कर दिया और फिर ये सिर्फ़ ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन में आती थी। ये सुन कर बड़ा अटपटा सा लगा। दरअसल हिंदुस्तानी ग्राहकों और कार बाज़ार की ऐसी आदत है कि ये सुन कर दो मिनट के लिए सोच में पड़ा कि केवल ऑटोमैटिक कारें कैसे । वाकई ये मानने में पहले बहुत दिक्कत होती है कि मैन्युअल ट्रांसमिशन को कोई ख़ारिज क्यों करेगा। लेकिन दो मिनट के बाद ही लगा कि ये तो किसी और कार बाज़ार की कहानी है और वहां पर ज़रूरी नहीं कि भारत जैसे हालात हों। और ये सोच आम ही है भारत में । ऊंची क़ीमत, महंगा रखरखाव और ख़राब माइलेज, ये सब मुद्दे ऐसे हैं जिसके साथ ऑटोमैटिक कारों को कोई क्यों पसंद करेगा भारत में । सिर्फ़ इसलिए कि उन कारों को चलाना आरामदेह होता है। लेकिन अब जो ताज़ा आंकड़े आ रहे हैं उसके मुताबिक मूड कुछ बदला है। मारुति ने अपनी सेलीरियो को पेश किया है और कंपनी की माने तो आधी से ज़्यादा बिक्री सेलीरियो के ऑटोमैटिक कार की हो रही है। इस कार में मारुति ने ग्राहकों की उन चिंताओं को दूर करने की कोशिश की थी जो उन्हें ऑटोमैटिक कारों को ख़रीदने से रोकता है। दो मुद्दे तो अभी ही दिखे, कम क़ीमत और ज़्यादा माइलेज। हालांकि रखरखाव के मामले में क्या हाल है ये तो आगे देखेंगे। तो इस पैकेज को लोगों ने भी हाथोंहाथ लिया है और वो ख़रीद रहे हैं ऑटोमैटिक वेरिएंट ही। अब देश के ज़्यादातर शहरों में गाड़ियों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन ना तो ट्रैफ़िक मैनेजमेंट सही किया जा रहा है और ना सड़कों की योजना तरीके से हो रही है। ट्रैफ़िक बद से बदतर होता जा रहा है, ट्रैफ़िक नियम की तो पूछिए मत। ऐसे में क्लच और गियर बदलते बदलते हाथ और पैर की हड्डियां घिस रही हैं और दिमाग़ गरम हो रहा है। उन्हीं ग्राहकों ने अब सेलीरियो के साथ एक्सपेरिमेंट करने की सोची है। जिसमें दो मुद्दे ख़ास ध्यान रखे गए हैं। एक तो ऑटोमैटिक सेलीरियो और मैन्युअल सेलीरियो में मात्र ४० हज़ार रु का अंतर है, जबकि पहले मैन्युअल और ऑटोमैटिक में लाख-डेढ़ लाख रु का फ़र्क होता था। वहीं माइलेज पर भी फ़र्क नहीं पड़ा है। हालांकि अब तक ऐसी हालत नहीं थी। पहले तो बताया जा रहा था कि बाज़ार का मुश्किल से ४-५ फ़ीसदी हिस्सा ऑटोमैटिक कारों का है, अब कहा जा रहा है कि छोटी कारों में तो २-३ फीसदी ही है। हो भी क्यों नहीं ये सेगेमेंट ही है किफायत पसंद ग्राहकों का, बिना क्लच की कार का आराम तो चाहिए लेकिन कम क़ीमत पर। 
मारुति हो या ह्युंडै सभी कंपनियों ने अपने पास पहले भी ऑटोमैटिक विकल्प रखे थे। मारुति ने तो ज़ेन को उतारा था सालों पहले ऑटोमैटिक अवतार में। लेकिन पारंपरिक ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन महंगे थे और कम किफ़ायती भी। इसीलिए ग्राहक भले ही शोरूम जाकर ऑटोमैिटक कारों का पता करें, लेकिन ख़रीदते मैन्युअल ट्रांसमिशन ही थे। लेकिन अब ये तस्वीर बदलने वाली है।
सेलिरियो तो सिर्फ़ एक शुरूआत है। अभी तो और भी कई कारें आने वाली हैं इन्हीं ख़ासियत के साथ । सस्ती, किफ़ायती और आरामदेह ऑटोमैटिक विकल्प के साथ। कंपनियों को समझ में ये बात तो आ ही गई है कि भारती ग्राहक अब थोड़ा ज़्यादा आराम चाहते हैं। लेकिन हां, वो किफ़ायत भी नहीं छोड़ना चाहते हैं। इसलिए ऑटोमैटिक मैन्युअल ट्रांसमिशन का रास्ता खोजा गया जिससे सबसे बेहतर बैलेंस मिल सके। टाटा मोटर्स ने अपनी बोल्ट और ज़ेस्ट में इसी तकनीक का सहारा लिया है । जल्द ऑटोमैटिक मैन्युअल ट्रांसमिशन में ये कारें आएंगी। साथ में कहा जा रहा है कि सबसे सस्ती ऑटोमैटिक नैनो बनेगी। साथ में कई और कंपनियों ने अपनी अपनी ऑटोमैटिक कारों पर काम शुरू किया है उसे पहले से ज़्यादा आकर्षक पैकेज बनाने के लिए। 
देखना दिलचस्प होगा कि आनेवाले वक्त में कितना स्वरूप बदलेगा बाज़ार का, ग्राहक क्या ज़्यादा ऑटोमैटिक कारें ख़रीदेंगे, क्या हम अमेरिकी जापानी बाज़ार के रास्ते पर हैं जहां पर ऑटोमैटिक कारें कुल बिक्री का ८०-९० फ़ीसदी हैं। 

January 15, 2015

लेडीज़ फ़र्स्ट


"कोई लेडी ड्राइवर ही रही होगी” ये जुमला आजकल काफ़ी इस्तेमाल होता सुनाई देता है। ज़्यादातक मज़ाक उड़ाने के लिए और कई बार संजीदगी से। ये बहस कुछ साल पहले ज़्यादा नहीं सुनने को मिलती थी, लेकिन जैसे जैसे भारत में महिला ड्राइवरों की संख्या बढ़ती जा रही है, महिला ड्राइवरों पर चुटकुले भी बढ़ते जा रहे हैं । ठीक उसी तरह जैसे पश्चिमी देशों में सुनाई देते रहे हैं। जिन देशों में महिलाएं पहले से गाड़ियां चलाती आई हैं। इंटरनेट पर से लेकर यूट्यूब पर टहल जाइए और देखिए कि साइबर दुनिया भरी हुई है महिला ड्राइवरों के कार क्रैश, ग़लत पार्किंग या चुटकुलों से। ढेर सारे रीसर्च भी हुएं हैं लेकिन उनमें से कोई ऐसा आख़िरी जवाब नहीं मिला जिससे ये बहस ख़त्म हो...और बहस बरकरार है कि महिला ड्राइवर बेहतर हैं या पुरुष ? लेकिन भारत में बहुत सारी बहसों की तरह ये बहस भी थोड़ी टेढ़ी है। 

ऑटो एक्स्पो के ख़त्म होने के बाद आमतौर पर ऐसा ही होता है, ढेर सारे लौंच के बाद अचानक सूखा सा आ जाता है और वही देखने को मिला थोड़े दिनों तक । लौंच की संख्या कम इसलिए लिखने के लिए मसाला भी कम। लेकिन ऐसे में मेरे एक मित्र का सुझाव बड़े सही वक्त पर आया। उनका कहना था कि क्यों नहीं मैं वूमन्स डे के मद्देनज़र कुछ लिखूं जो बात करे बदलते समाज, वहां पर पहले से कहीं ज़्यादा रोल निभाती महिलाएं और उनकी सवारियों की। बाज़ार भी बदल रहा है इस हिसाब से। इस ऑटो एक्स्पो में ही हीरो मोटो की तरफ़ से एक बयान आया था कि महिला राइडरों मे ंभी मोटरसाइकिलों को प्रचलित करने की कोशिश करेगी कंपनी। आमतौर पर सभी दुपहिया कंपनियां महिलाओं के लिए स्कूटी को ही पेश करती आई हैं, क्योंकि आम धारणा यही है कि महिलाओं को गियर से समस्या होती है। इसी वजह से महिलाएं मोटरसाइकिल नहीं चलाती हैं, वो स्कूटर चलाना पसंद करती हैं। यही वजह है कि टीवीएस से लेकर, हीरो, यामाहा जैसी कंपनियों ने बहुत ही ध्यान से केवल महिला राइडरों को निशाने पर रख कर प्रोडक्ट उतारती हैं, उन्हीं के हिसाब से विज्ञापन तैयार होते हैं और ब्रांड एंबैसेडर भी प्रीती ज़िंटा से लेकर दीपिका पादुकोण तक रही हैं। और ये काम भी आया है। ऑटोमैटिक स्कूटरों को लड़कियों और महिला राइडरों ने हाथोंहाथ लिया है। स्कूटरों की बिक्री लगातार बढ़ती जा रही है। हालांकि कारों के मामले में बहुत जेंडर स्पेसिफ़िक पोज़िशनिंग नहीं देखने को मिलती है। पश्चिमी देशों में कई कारों या एसयूवी को कहा जाने लगता है कि ये महिलाओं की कार या लेडीज़ एसयूवी है। लेकिन भारत में फ़िलहाल वो हालत नहीं आई है। यहां पर हो ये रहा है कि कंपनियां महिला और पुरूष दोनों के हिसाब से फ़ीचर्स डाल रही हैं कारों में। वैसे थोड़े दिनों मे ंभारत में भी इस तरीके के सेगमेंट बनने लगेंगे जहां पर कुछ कारें सिर्फ़ महिलाओं की मानी जाएंगी। क्योंकि महिलाएं दिनोंदिन प्राइमरी ग्राहक होती जा रही हैं, यानि कार अपने लिए ख़रीद रही हैं। भारत में हम पहले से कहीं ज़्यादा महिलाएं ड्राइव कर रही हैं, दुपहिया राइड कर रही हैं। 
ये एक पहलू है। दूसरा पहलू सड़कों पर देखने को मिलता है। 

जहां सड़कों पर भी वैसे ही फ़्रिक्शन देखने को मिल रहे हैं जैसे समाज में। किसी महिला को तेज़ गाड़ी चलाते देखा नहीं कि तुरंत लाइन सुनाई देगा-  'ठोकेगी ये ‘ । लेडी ड्राइवर ने ओवरटेक किया नहीं कि उससे रेस लगना शुरु। पारंपरिक पुरुष ड्राइवरों को ये बात पचती नहीं रहती है कि कोई महिला कैसे उन्हें ओवरटेक कर रही है। ठीक वैसे ही जैसे ऑफिसों में महिलाओं के प्रमोशन की वजहों पर वो हमेशा कोई ना कोई सवाल उठाते हैं। सड़कों पर एक और समस्या है जो नॉर्थ इंडिया में मुझे ज़्यादा देखने को मिलता है। पता नहीं क्यों अभी भी महिला ड्राइवरों को देखना एक अजूबे की तरह होता है। ऐसा नहीं कि कम महिला ड्राइवर हैं, दिल्ली में ही अगर देखें तो। कुछ सुपरबाइक या दमदार एसयूवी चलाती महिलाएं तो वाकई दिलचस्प लगती हैं, वो किसी का भी ध्यान खींच सकती हैं। लेकिन यहां पर बात वहीं तक नहीं रहती है। घूरना एक आवश्यक सामाजिक रिवाज़ सा लगता है सड़कों पर। चाहे अधेड़ उम्र के अंकल हों जो तीन गाड़ियों के बीच से गाड़ी निकाल रहे हों, बावजूद इसके दूसरी कारों में झांकने का समय निकाल पा रहे हैं, चाहे पेट्रोल पंप पर खड़ा नौजवान ड्राइवर हो जो रियर व्यू मिरर में देखने की कोशिश करे कि पिछली कार में कटरीना कैफ़ बैठी है या हेमा मालिनी। या फिर रेड लाइट पर खड़ा ऑटोवाला हो जो नज़रों ही नज़रों में स्कूटी पर बैठी महिला को फ़ेसबुक फ़्रेंड रिक्वेस्ट भेजने की कोशिश कर रहा होता है। कई बार तो ऐसा होते ख़ुद देखा है मैंने, कि इन्हीं नज़रों से बचने के लिए महिला राइडर ने रेड लाइट जंप कर ली हो। कई महिला ड्राइवरों से बातचीत करने पर पता चला कि काले शीशे पर बैन लगने से उन्हें इतनी परेशानी होती है, भले ही सेफ़्टी को लेकर इन पर बैन लगा है लेकिन वो काले शीशे से राहत महसूस करती थीं। कुछ महिला ड्राइवरों को छोड़े दें तो एक औसत महिला ड्राइवर के लिए आम सड़कों पर ड्राइविंग एक ख़ूख़ार जगह सी लगती है, जैसे वो सहमी सहमी सी ड्राइव करती रहती हैं। आम  देर रात में ड्राइव करना मुश्किल होता है, कहीं रुक नहीं सकते और कहीं कार में कोई ख़राबी आ गई तो फिर आफ़त ही है। यानि महिलाओं के लिए ड्राइविंग का मतलब केवल स्टीयरिंग व्हील और गियर-ऐक्सिलेरिटर नहीं है। उनके दिमाग़ के डैशबोर्ड में और भी कई चीज़ें भरी होती हैं। और ये सब देखकर वो बहस फ़िलहाल भारत में बेमानी लगती है कि महिला ड्राइवर बेहतर या पुरुष ड्राइवर। दोनों के लिए सड़कों पर एक जैसा महौल बने तब तो पता चले कि कौन सेर है कौन सवा सेर। वैसे एक और मुद्दा है जिस पर ध्यान देना ज़रूरी है । भारत में दुनिया में सबसे ज़्यादा लोग सड़क हादसे में मारे जाते हैं, १ लाख ४० हज़ार के आसपास। और ये कोई रहस्य नहीं कि इनमें से ज़्यादातर हादसों में पुरुष ड्राइवर ही होते हैं, ऐसे में अगर भारत के मर्द ड्राइवर महिला ड्राइवरों का मज़ाक बनाते हैं तो इससे हास्यास्पद और कुछ नहीं हो सकता। 

January 13, 2015

KTM 390 की राइड BIC पर

एक राइड रेसट्रैक पर 

मोटरसाइकिलों को लेकर रेस ट्रैक पर गए काफ़ी दिन हो गए थे और ऐसे में जब कार्यक्रम बना तो फिर उत्सुकता बेचैनी में बदल गई । जहां पर इंतज़ार करने लगा कि कब मैं पहुंचू और चलाना शुरू करुं इस रेसट्रैक पर। और ये उत्सुकता इसलिए भी क्योंकि मुझे केटीएम की ड्यूक ३९० मोटरसाइकिल को चलाना था। इस मोटरसाइकिल को मैंने अभी तक ना के बराबर चलाया था। ख़ास मीडिया के लिए टेस्ट राइड वाली केटीएम ३९० को दिल्ली पहुंचते पहुंचते युग बीत गए थे इस वजह  से । अब जब मौक़ा मिला था तो उत्सुकता डबल थी क्योंकि इसे रेस ट्रैक पर चलाने का मौक़ा मिल रहा था। आमतौर पर गाड़ियों और मोटरसाइकिलों को ऐसे ट्रैक पर टेस्ट करने का मौक़ा कहां मिल पाता है। कुछ चुनिंदा अच्छी सड़कों पर इन्हें चला कर इनके प्रदर्शन को बहुत हद तक बारीकी से पढ़ा जा सकता है, लेकिन रेसट्रैक पर ही असल फ़र्क पता चलता है हैंडलिंग के मामले में। जहां पर देखते हैं कि ये प्रो़डक्ट कितनी बढ़िया पकड़ के साथ बेहतरीन हैंडलिंग दिखाती है और तेज़ से तेज़ जा सकती है। क्योंकि आम सड़कों पर बिना फ़िक्र मोटरसाइकिल से पूरी ताक़त निकालने की कोशिश नहीं कर सकते हैं। साथ में रेस ट्रैक की तरह मोड़ और कॉर्नर भी नहीं मिलते हैं जो हमारी राइडिंग क्षमता औऱ मोटरसाइकिल की काबिलियत को पूरा परख सके। तो इस राइड को देखें तो ऐसा ही कुछ आईडिया था इस ३९० को लेकर भी। 
दरअसल केटीएम भारत में मोटरसाइकिल राइडिंग के कल्चर को बढ़ावा देना चाहती है। कंपनी की पहचान अलग है और इसकी मोटरसाइकिलें भी थोड़ी अलग हैं। ये स्पोर्ट्स और सिटी के बीच की मोटरसाइकिलें भारतीय माहौल में काफ़ी फ़िट बैठती हैं, जहां पर आम सड़कों पर चलाना अपने आप में एडवेंचर से कम नहीं और शुद्ध स्पोर्ट्स बाइक को चलाना तो और भी चुनौती का काम है। ऐसे में केटीएम एक अच्छा कांबिनेशन देती है, रफ़्तार और व्यावहारिकता का। अपनी नेकेड लुक के साथ ये पावर और हैंडलिंग का अच्छा पैकेज दे रही है। इसी लिए ड्यूक २०० के बाद ३९० को लेकर भी ग्राहकों ने काफ़ी रुचि दिखाई। तो उन्हीं ग्राहकों के लिए कपनी ने इस राइड को आयोजित किया। ट्रैक डे। और यहां पर आने वाले राइडरों ने काफ़ी ख़ुशी भी दिखाई इसे लेकर। देश के कई शहरों से राइडर ग्रेटर नौएडा के रेस ट्रैक पर पहुंचे और बाइक भगाई। दिल्ली एनसीआर से साथ चंडीगढ़ और जम्मू से, यहां तक कि मुंबई से भी। तो इन्हीं राइडरों के बीच हमें भी मौक़ा मिला थोड़ी देर के लिए। मीडिया के लिए एक छोटा सा सेशन। 
मोटरसाइकिल को लेकर हम भी निकले, तेज़ भगाने की कोशिश की, गए भी। तेज़ तर्रार मोटरसाइकिल को लेकर रेसट्रैक के कोनों पर मुड़े भी। साथ में इंस्ट्रक्टर भी थे। जिन्होंने थोड़े बहुत टिप्स भी दिए। तो थोड़ी देर में जितने चक्कर काट सकते थे, काटे। मोटरसाइकिल के हैंडलिंग से इंप्रेस हुए। थोड़ा और वक्त होता तो और आनंद आता। क्योंकि इन ट्रैक पर जितने चक्कर काटते जाएं, प्रैक्टिस जितनी होती जाती है, और रोमांच बढ़ता जाता है। आप तेज़ से तेज़ जाने की कोशिश करते हैं और ज़्यादा तेज़ मोड़ने की कोशिश भी करते हैं। और यहां मौजूद राइडर्स भी वही कर रहे थे।
कंपनी ने इसी जगह ऐलान किया कि वो अपनी आरसी सीरीज़ भी जल्द भारत मे ंला रही है। केटीएम की वो मोटरसाइकिलें जो ख़ासतौर पर रेस ट्रैक के लिए तैयार होती हैं। ज़ाहिर है कंपनी को उम्मीद है कि जिस तरीके का उत्साह ग्राहकों में ऐसे ट्रैक डे को लेकर है, ऐसे में रेसिंग मोटरसाइकिलों का बाज़ार भारत में तेज़ी से बढ़ेगा।

January 11, 2015

मर्सेडीज़ जीएल

लग्ज़री एसयूवी सेगमेंट में मर्सेडीज़ की बड़ी कोशिश है जीएल क्लास में एएमजी अवतार। मर्सेडीज़ का पर्फोर्मेंस विंग है एएमजी, जिनकी कारें अब भारत में कई शहरों में दिखने लगी हैं। ये काफ़ी तेज़ तर्रार स्पोर्टी  कारें होती हैं जो अपने रेगुलर काउंटरपार्ट से काफ़ी ताक़तवर और तेज़ होती हैं, साथ में काफ़ी महंगी भी।
जैसे आम जीएल मिलती है लगभग 72 लाख की एक्स शोरूम क़ीमत के साथ वहीं नई जीएल 63 आई है 1 करोड़ 66 लाख रु की मुंबई एक्स शोरूम क़ीमत के साथ। तो क़ीमत जानने के बाद देखते हैं कि तेज़ तर्रार होने का दावा करने वाली जीएल 63 के आंकड़े क्या कहते हैं। तो इसमें लगा है 5.5 लीटर V8 BITURBO इंजिन, इससे ताक़त मिलती है लगभग साढ़े पांच सौ बीएचपी की और साथ में 760 एनएम का टॉर्क। और ये आंकड़ें पढ़ने में बहुत ज़ोरदार ना हो लेकिन सड़क पर ये बहुत धांसू कहे जाएंगे। वैसे तकनीकी तौर पर इसे सबसे ताक़तवर एसयूवी का ख़िताब तो मिलेगा ही। सौ की रफ़्तार पकड़ने में इसे लगेंगे पांच सेकेंड से भी कम, और टॉप स्पीड है 250 किमीप्रतिघंटा। तो इस कार में इस रफ़्तार के साथ सुरक्शा के भी कई इंतज़ाम हैं। तो फ़िलहाल इसके लौंच की जानकारी है।


*पुरानी छपी हुई है। 

January 09, 2015

DSK Hyosung GT250 R


नए अवतार में आ गई है ह्योसंग GT 250 R । जिन मोटरसाइकिलों को चाहिए कुछ और विकल्प उनके लिए आ रहे हैं कुछ और विकल्प । डीएसके कंपनी ने ह्योसंग की GT 250 R को नए रंग-रूप में ग्राहकों के सामने पेश किया है। 2 लाख 76 हज़ार (एक्स शोरूम पुणे) की क़ीमत पर ।
इस नए लौंच के साथ बेहतर स्टाइलिंग का दावा है, ग्राफ़िक्स नए डिज़ाइन के नज़र आएंगे और साथ में नया स्टाइलिश हेडलैंप भी है। यहां पर तीन नए रंगों का विकल्प भी मिलेगा।

हाल फ़िलहाल में २०० सीसी से बड़ी मोटरसाइकिलों के सेगमेंट जिस तरीके का ऐक्शन देखने को मिल रहा है वहां पर कोई भी कंपनी आराम से नहीं रह सकती । ना सिर्फ़ नए प्रो़डक्ट आते जा रहे हैं बल्कि काफ़ी आकर्षक क़ीमत पर भी आ रहे हैं और ऐसे में ह्योसंग को नया करना भी ज़रूरी था। 
कंपनी ने यही किया भी है। तो इन नई जानकारियों के बाद पुरानी जानकारी दे देते हैं इस मोटरसाइकिल के बारे में । इसमें लगा है 249 सीसी की V Twin ऑयल कूल्ड इंजिन। इसकी ताक़त है 28 बीएचपी की और इसका टॉर्क है 22 एनएम का। 5 स्पीड ट्रांसमिशन है और इसकी टॉप स्पीड जाती है 140 किमी प्रति घंटे की। 

January 07, 2015

Vespa S


स्कूटरों का बोलबाला देख कर दिल ख़ुश हो जाता है आजकल। भले ही एक से एक तेज़ तर्रार मोटरसाइकिलों ने हिंदुस्तानी सड़कों पर धूम मचा रखी हो, भले ही माचो और तेज़ तर्रार फ़ील के साथ आने वाली बाइक्स ने यंगस्टर्स को दीवाना बना रखा है लेकिन उन सब के बावजूद देसी सड़कों को सबसे ज़्यादा रंगीन अगर किन्हीं सवारियों ने बना रखा है तो वो हैं स्कूटर। चारों ओर से रंग-बिरंगे स्कूटर दौड़ते भागते नज़र आ जाते हैं और लगता है कि ये अलग क़ौम तैयार हो चुकी है।  स्कूटर प्रेमियों और स्कूटर सवारों की। छोटे-मझोले स्कूटर, रंग-बिरंगे डिज़ाइन वाले स्कूटर। और उन्हें चलाने वाले भी एक तसल्ली वाले मूड में नज़र आते हैं, जो केवल ज़रूरत के लिए स्कूटर नही चुन रहे, कहीं ना कहीं वो मोटरसाइकिल छोड़कर एक नया चुनाव कर रहे हैं। और इसी क़ौम को थोड़ा और रंगीन कर रही है जानी पहचानी वेस्पा।


 कंपनी जिसने भारत में स्कूटर को लाइफ़स्टाइल सेगमेंट में ले जाने के लिए कमर कसा हुआ है। वो एक के बाद एक स्कूटर लेकर आ रही है जो शौकीनों के लिए ख़ास सवारी कही जाएगी। हाल ही में कंपनी ने एक और प्रोडक्ट लौंच किया जिसका नाम है वेस्पा एस। ये हाल में जो वेस्पा स्कूटर लौंच हुए हैं, उनसे बिल्कुल अलग है। कंपनी ने पहले तो वेस्पा १२५ उतारी थी एलएक्स और वीएक्स अवतार में । लुक और फ़ील के हिसाब से ये पारंपरिक वेस्पा लग रही थी और साथ में हाल फ़िलहाल में स्कूटरों में जो डिज़ाइन चल रहे हैं उसी लीक पर डिज़ाइन की हुई सवारी थी। 

लेकिन वेस्पा एस के साथ कंपनी ने थोड़ा अलग करने की कोशिश की है। इसका लुक मौजूदा दोनों स्कूटरों से बिल्कुल अलग है। जिसमें सबसे ख़ास दो चीज़ें लग रही हैं एक तो इसमें इस्तेमाल हुआ क्रोम और इसका चौकोर हेडलैंप। अब एक हेडलैंप किसी भी गाड़ी या सवारी का लुक किस हद तक बदल सकता है ये समझने के लिए वेस्पा एस को देखना ज़रूरी है। इस हेडलैंप के साथ स्कूटर पुराने ज़माने का नया पैकेज लगता है। एक बहुत अलग तरीके का स्टाइल स्टेटमेंट देने वाला स्कूटर। स्पोर्टी भी और रेट्रो भी। कुछ ख़ास तरह के स्कूटरप्रेमियों की इसमें दिलचस्पी हो सकती है।

 इसमें भी लगा है १२५ सीसी का इंजिन और इसकी ताक़त ठीक ठाक १० बीएचपी के लगभग है। यहां पर इसकी राइड का ज़िक्र करें तो ये सटीक और सिंपल तरीके से भागती है। स्कूटरों से जैसी ताक़त की उम्मीद होती है ये पूरा करता है और हैंडलिंग में ख़ुश करता है। अच्छी संतुलित राइड। ब्रेकिंग भी अच्छी है। इन सब मामलों में जो मौजूदा स्कूटर हैं उन्हें अच्छी टक्कर देती है ये सवारी। लेकिन इसका सेगमेंट वो नहीं, ये तो शौकीनों की चीज़ हैं। दिल्ली में लगभग ७५ हज़ार रु की एक्सशोरूम क़ीमत का यही तो मतलब है। और ऊपर से चार चटख़ रंग में । तो इसकी क़ीमत और लुक इसे चुनिंदा ग्राहकों की फेवरेट बनाएंगे। देखते हैं बिक्री कैसी होती है। लेकिन ये तय है कि स्कूटरों में भी एक लाइफ़स्टइल सेगमेंट फल फूल रहा है। 

*पुरानी छपी हुई है। 

January 05, 2015

रिनॉ क्विड जब चलाई मैंने...

आमतौर पर कभी ऐसा नहीं होता है। होने की संभावना भी कम है। कारों की दुनिया में घूमते टहलते इतने साल हो चुके हैं लेकिन इतने सालों में कभी भी नहीं देखा कि कौंसेप्ट कार जो वाकई कौंसेप्ट कार हैं वो ऐसे सामने आएं, हमारे हाथ लगें और उन्हें चलाने का मौक़ा भी मिले। कौंसेप्ट कारें आम तौर पर कंपनियों का विज़न डॉक्यूमेंट होती हैं, कार डिज़ाइनरों की क्रिएटिविटी का एक कोलाज होता है। जिनमें बहुत सी कल्पनाओं और अंदाज़े की भविष्यवाणियां होती हैं। यानि वो गाड़ियां जो आने वाले दिनों की कारों और उनके फ़ीचर्स की बात करें, अंदाज़ा लगाएं और उनको एक कार में समेट कर लाए। यही वजह है कि ज़्यादातर कार जो कौंसेप्ट अवतार में हमारे सामने आती हैं वो चलने की हालत में नहीं होती हैं। हालांकि कई बार कार कंपनियां थोड़ी चालाक़ी दिखाती हैं और उन कारों को कौंसेप्ट के तौर पर ले आती हैं जो दरअसल प्रोडक्शन में उतरने को तैयार होती हैं लेकिन कंपनी अपने कांपिटिशन को बताना नहीं चाहती हैं कि वो इस कार को जल्द लौंच करने वाली है । लेकिन वो अपवाद हैं। उनका ज़िक्र ऐसे ही कर दिया। दरअसल ये सब भूमिका इसलिए क्योंकि मैं आपको बताना चाहता हूं कि पहली बार मेैंने एक कौंसेप्ट कार चलाई । वो जो वाकई कौंसेप्ट कार है। रिनॉ की क्विड। ये कब आएगी बाज़ार में, आएगी भी कि नहीं ये पता नहीं। वो कार जिसे आप देखें तो पहली नज़र में ही लगेगा कि ये कोई फ़िल्मी स्पेस शिप है या बच्चों की कोई खिलौना कार है जो अचानक किसी तरीके से बड़ी हो गई है। अंदर से देखेंगे तो लगेगा कि किसी टाइम मशीन में चले गए हैं जिसमें बैठ कर किसी भी युग में जा सकते हैं। और रिनॉ ने इसे दिल्ली के ऑटो एक्स्पो में दर्शकों के सामने पेश किया था। और उसके बाद मुझे वाकई पता नहीं था कि इसे चलाने का मौक़ा मिलने वाला है। 
दरअसल रिनॉ कार कंपनी की भारत एंट्री कोई धमाकेदार नहीं रही है, महिंद्रा के गठजोड़ और लोगन के ख़ात्मे के बाद भी कंपनी अपनी कारों के साथ कोई बहुत बड़ा धमाका नहीं कर पाई थी। लेकिन वो सभी समीकरण बदल गए। जब कंपनी ने अपनी डस्टर एसयूवी सवा सात लाख रू में लौंच कर दी। इस एसयूवी ने भारत में रिनॉ को स्थापित कर दिया है। अभी भी कार बिक रही है। और इस फ्रेंच कार कंपनी के लिए अचानक भारत की अहमियत काफ़ी बढ़ गई है। कंपनी की और भी कारें हैं भारत में, कई आने वाली भी हैं। कंपनी इसी सिलसिले में लंबा गेम खेलने की तैयारी में है। नहीं तो यूरोप के बाहर पहली बार अपनी कौंसेप्ट कार को लाना, दिल्ली ऑटो एक्स्पो में और ऊपर से भारतीय पत्रकार को इसे चलाने देने का मतलब यही है कि कंपनी इस देश में पैठ बनाना चाहती है। सभी को बताना चाहती है कि वो यहां आ चुकी है और भारत को लेकर गंभीर है। जिसके लिए उन्होंने चुनी है वो क्विड जिसे डिज़ाइन करने में कई भारतीय पहलू शामिल किए गए। भारतीय डिज़ाइनर ने इसके डिज़ाइन में शिरकत की, भारतीय रंग को शामिल किया। 

यही सब सोचते हुए मैं क्विड में बैठा। छोटी एसयूवी नुमा गाड़ी। कैसे भी मुश्किल रास्तों पर चलने का दावा करते चौड़े, बड़े टायर। फ़्यूचरिस्टिक चेहरा-मोहरा और  आंखें। गाड़ी में ग्रे और पीले रंग का दिलचस्प मेल दिखा। चटख़ रंगरोगन। वहीं कार का दरवाज़ा जो पंख की तरह, ऊपर की ओर खुलता है, वो अंदर की अनोखी दुनिया में ले जाता है। सीटों की दो क़तारें। लेकिन दिलचस्प बात ये कि ड्राइवर सीट बीच में। उसके दोनों तरफ़ एक एक सीटें चिपकी थीं। यानि यार-दोस्त या फ़ैमिली एक साथ झुंड में जाने का अहसास होता है। मानो दोस्त लोग कंधों में हाथ टिकाए चले जा रहे हैं । इसके पीछे भी सीट की एक क़तार है। तो ड्राइवर को कार के बीचोबीच एक स्टीयरिंग व्हील मिलता है, जो किसी रेस कार या प्लेन का छवि देता है। दो तीन नॉब जो कार को स्टार्ट या बंद करने के लिए थे। गियर बदलने के लिए थे । साथ में बाईं तरफ़ एक छोटा स्क्रीन जिसकी भूमिका काफ़ी दिलचस्प थी। वो फ़्लाइंग कंपैनियन यानि उड़न दोस्त का भेजा वीडियो दिखाता है। दरअसल इस कार की छत पर एक छोटू हेलिकॉप्टर को फ़िट किया गया है। तकनीकी तौर पर वो एक क्वॉडकॉप्टर है, कैमरे के साथ । जिसे उड़ा दीजिए और आगे के ट्रैफिक से लेकर अनजान रास्तों को पढ़ कर आपको वीडियो भेज देगा। ये सबसे ज़बर्दस्त फ़ीचर लगा हमें कौंसेप्ट का लेकिन बदकिस्मती से वो आज हमारे सामने नहीं आया था। 
तो फिर हमने इस कार को चलाया भी। इकलौती कार हो तो संभाल कर चलाना लाज़िमी था। चूंकि कौंसेप्ट कार है इसलिए इसे सिर्फ़ चलने लायक बनाया गया है। तो ऐसा नहीं था कि बहुत धांसू ़ड्राइव हो, बहुत धीमी और थोड़ी दूरी की ड्राइव रही। लेकिन कौंसेप्ट कार होने की वजह ये यही काफ़ी थी। वैसे भी कार के अंदर की आवाज़, इसकी चाल और रफ़्तार सब बता रही थी कि ये एक कौंसेप्ट कार है। कार के अलग अलग हिस्से से आने वाली आवाज़ें बता रही थीं कि किसी भी कार को तैयार करने से पहले हरेक हिस्से की कुछ ना कुछ कहानी होती है, शायद वही बताने की कोशिश कर रही थी कार मुझे। 

January 03, 2015

हौंडा ऐक्टिवा 125

हौंडा टू व्हीलर्स ने एक नई सवारी पेश की थी दुपहिया बाज़ार में, ये अहम लौंच है या नहीं, इसके बारे में तो बाद में ही पता चलेगा। लेकिन सवारी को चलाना तो ज़रूरी था, ये समझने के लिए कि बेस्टसेलर को और बेहतर कैसे किया जा सकता है। जिस एक्टिवा को सालों से हमने स्कूटर बाज़ार पर राज करते देखा है, यही नहीं, हाल के वक्त में बेस्टसेलर मोटरसाइकिलों को भी पछाड़ दिया। 
तो पहली बार बल्कि हौंडा टू व्हीलर्स ने 125 सीसी का स्कूटर उतारा है। और स्कूटर को देखें तो इसमें अलग से ज़िक्र है इसके इंजिन का। इसका नाम ही दिया गया है, ऐक्टिवा 125। जिसे चलाने के लिए निकला दिल्ली की गर्म सुबह में। मौसम ने तो कहानी थोड़ी गड़बड़ कर दी थी लेकिन फिर भी इतनी दूरी चला ही लिया कि इस नए पैकेज की शुरूआती राइड के बारे मे जानकारी दी जा सके। 

पहले लुक के बारे में बताएं तो बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं लगेगा आपको मौजूदा ऐक्टिवा और नए ऐक्टिवा में। लेकिन नज़दीक जाएं तो इसके अगले हिस्से में लगे क्रोम से लगेगा कि कुछ अलग और नया है। फिर किनारे से देखें तो पता चल जाएगा कि ये ऐक्टिवा 110 नहीं, 125 है। 

इसके अलावा इंस्ट्रुमेंटेशन साफ़ सुथरा और गंभीर लगेगा। स्विच और प्लास्टिक बढ़िया लुक और फ़िनिश वाले लगेंगे। 
और इसमें हौंडा के चिर परिचित फ़ीचर्स तो हैं ही। जैसे कंबाइंड ब्रेकिंग सिस्टम, और 190 एमएम का फ़्रंट डिस्क ब्रेक। साथ में डिजिटल मीटर, मेटल बॉडी, ट्यूबलेस टायर वगैरह।

राइड की बात कर लेते हैं, जो इस सेगमेंट में सबसे बेहतरीन में से एक कही जाएगी। ऐक्टिवा 125 अपने सवा सौ सीसी इंजिन, मेटल बॉडी और बनावट के साथ संतुलित राइड देती है। इसकी ताक़त 8.6 बीएचपी की है। कंपनी का दावा ये भी कि ज़्यादा ताक़त के बावजूद इसकी माइलेज सेगमेंट में सबसे बेहतर भी है, जो 59 किमीप्रतिलीटर का मापा गया है।
चुस्त भी लगी और ब्रेकिंग काफ़ी सटीक भी। 

ऐक्टिवा 125 दो वेरिएंट में है, स्टैंडर्ड 52,447 रु में और डीलक्स वेरिएंट 58156 रु में।
अब इस क़ीमत के साथ एक बात तो महसूस की जा सकती है कि जो ऐक्टिवा लेना चाहते हैं, वो इस नए ऐक्टिवा की ओर ज़रूर जा सकते हैं। किफ़ायती है ही, क़ीमत भी ज़्यादा नहीं और राइड के मामले में आरामदेह है ही, साथ में बड़े इंजिन का बोनस भी.

*Ctrl+C और Ctrl+V ना करें । पुरानी छपी हुई है। 

January 01, 2015

मॉडर्न ख़ानाबदोश, जो छुट्टी के बाद वापस नहीं गया...


अपनी भागती दौड़ती ज़िंदगी में से कुछ दिन निकाल कर हम-आप छुट्टी पर जाते हैं, वेकेशन पर जाते हैं, नई नई जगहें देखते हैं, लोगों और परंपराओं से परिचय होता है, और फिर ख़ुश होकर वापस अपनी ज़िंदगी, अपने काम पर वापस आ जाते हैं। दोस्तों की क़िस्से सुनाते हैं, फ़ोटो दिखाते हैं और फिर कुछ दिनों में फिर से वो जोश ठंडा पड़ जाता है। फिर हम अगली छुट्टी के सपने देखने लगते हैं। लेकिन सोचिए अगर हम ऐसी किसी छुट्टी पर निकलें और फिर बिना काम पर वापस आए अगली छुट्टी पर निकलें और फिर अगली। वैसे सोच भी लिया तो हमें ये भी पता होता है कि नौकरी, परिवार और ईएमआई के फेरों के साथ ये फ़िल्मों में हो सकता है असल ज़िंदगी में नहीं। लेकिन एक शख़्स ऐसे हैं जिनकी असल कहानी फ़िल्मी कही जा सकती है। 
नाम है इनका जेन्स जेकब, जर्मनी में पैदा व्यवसायी हैं। इनका सपना था दुनिया देखना, अलग अलग लोगों,  संस्कृतियों और परंपराओं को देखना-महसूस करना। तो उन्होंने इस सपने को सपना नहीं रहने दिया।  
अपनी 1965 मॉडल की फोक्सवागन कॉम्बी कार ली और निकल गए दुनिया घूमने। अपनी इस पचास साल पुरानी सवारी को जेकब प्यार से ब्लूई पुकारते हैं। और ब्लूई को उन्होंने अपनी ज़रूरतों के हिसाब से बदल भी दिया है। इसमें एक छोटी रसोई बनाई है, पानी की टंकी है, टायर और टूल भी। साथ में कुछ किताबें भी।


जन्स जेकब ने अपने लंबे सफ़र को शुरू तो अकेला किया था लेकिन अब उनके साथ उनकी पत्नी सिंथिया भी चल रही हैं। जिनसे वो दुबई में मिले थे। ये जोड़ी अब तक 26 देश घूम चुकी है। 60 हज़ार किलोमीटर से ऊपर का सफ़र। नीदरलैंड, बेल्जियम, फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, ग्रीस, तुर्की, दुबई, ओमान, ईरान और फिर भारत भी। 

अब ये जोड़ी भारत घूमने के बाद नेपाल और तिब्बत की योजना बना रही है और सफ़र वहीं नहीं रुकेगा। आगे सफ़र इंडोनेशिया और वियतनाम की ओर रुख़ करने वाला है। 
तो सोचिए आप भी कब निकल रहे हैं ऐसे सफ़र के लिए। 


*पुरानी छपी हुई है।