December 31, 2014

इमोशनल अपील


आज का वक्त ऐसा आ गया है जब कारों और मोटरसाइकिलें बहुत हद तक एक जैसे हो गए हैं। अगर तकनीकी और आंकड़ों के हिसाब से देखें तो बहुत हद तक मिलते जुलते। जैसे किसी एक सेगमेंट को ले लीजिए, तो वहां पर इंजिन की क्षमता, बीएचपी से लेकर गाड़ी की माइलेज वगैरह एक जैसे ही नज़र आएंगे। अंतर होगा, लेकिन मामूली। ऐसा नहीं जो क्रांतिकारी हो और आपके ख़रीद के फ़ैसले को बदल दे, या फिर यूएसपी बन जाए। कुछेक ही प्रोडक्ट आजकल ऐसे होते हैं जिनके पास ऐसे एक्सक्लूसिव फ़ीचर्स होते हैं और वो फ़ीचर्स भी जल्द बाकी कंपनियां ले आती हैं। ऐसे में हम कोई प्रोडक्ट क्यों ख़रीदते हैं इस फ़ैसले को किसी नंबर और मीटर पर  नापना बहुत आसान या सीधा काम नहीं है। इसमें काफ़ी हद मार्केटिंग और ब्रांडिंग की चाशनी फैली रहती है और बहुत हद तक इन सबके नतीजतन हमारा फ़ैसला इमोशनल भी हो जाता है। अपने आसपास किसी से भी पूछिए तो जड़ में जो वजहें आती हैं वो कई बार आती हैं जिसे क़ीमत या बीएचपी में समझना मुश्किल है। बहुत हद तक फ़ैसला आ जाता है उसी प्वाइंट पर कि कार को देख कर हम कैसा महसूस कर रहे हैं, गाड़ी के साथ क्या महसूस कर रहे हैं। तो वही बात कि सवारियों की ख़रीदारी में जहां समझदारी का रोल होता है बहुत सा हिस्सा उसकी अपील से जुड़ा भी होता है। ख़ैर ये सब मैं सोच रहा था जब ऑडी की एक कार चलाने का हाल में मौक़ा आया था। और ये सोच इसलिए आ रही थी, क्योंकि मैं सोच रहा था कि इसे चलाने की मुझे ज़्यादा इच्छा क्यों नहीं हई थी अब तक। और इसके पीछे कोई ठोस लॉजिक वाली वजह नहीं थी। ऑडी की टीटी कूपे। दो दरवाज़ों वाली छोटी स्पोर्टी कार जो मुख्य तौर पर स्पोर्टी छोटी कार के तौर पर आती है। हाल में इसके नए किट यानि एस लाइन कही जाने वाले किट की वजह से ऑडी चाहती थी कि मैं इसे चला कर देखूं कि कैसा है ये नया पैकेज। और ये भी समझूं कि कैसा प्रदर्शन होता है इसका। कितनी रोमांचक है ये कार। ऑडी टीटी को अगर देखें पहली नज़र में बहुत अलग सी कार लगेगी, छोटी स्पोर्ट्स कार तो लगेगी ही, क्योंकि है तो टू सीटर ही, पीछे दो सीटें को बस ख़ानापूर्ती के लिए ही हैं। इस छोटे आकार के साथ जो चीज़ सबसे पहले आपके ज़ेहन में जाएगी वो है इसकी बनावट, इसका लाइन। ये किसी भी एंगिल से शार्प या तीखी बनावट वाली कार नहीं लगेगी। हेडलैंप से लेकर टेललैंप तक, छत से लेकर बंपर तक, सबकुछ गोलाई लिए है। जो मेरे पसंद का नहीं है, हालांकि ढेरों कार प्रेमी हैं जिन्हें ये पसंद है डिज़ाइन। ख़ैर। कार को मैंने चलाना शुरु किया और इसको इंजिन की ताक़त औऱ हैंडलिंग ने समां तो बांधा। तेज़ और हल्की कार, बढ़िया हैंडलिंग और ठोस सस्पेंशन से लैस। जितना इसे चलाता गया, उतनी रोमांचक ये कार लगती गई। इसका छोटा आकार औऱ इसका 211 हॉर्सपावर की ताक़त मुझे मज़ेदार लग रही थी।  इसका इंजिन 1984 सीसी की था। तो पैकेज शानदार लग रही थी। और चूंकि ये ऑडी टीटी कूपे का एस लाइन वर्ज़न था तो अंदर ज़्यादा शाही था, सीटें ज़्यादा आरामदेह। कुल मिलाकर ड्राइव का अनुभव अच्छा हुआ और रोमांचक लगा। तो फिर सोचा कि इसका लुक मुझे ज़्यादा पसंद नहीं था शायद इसलिए अपील नहीं करती थी ये कार पहले। लेकिन आजके प्रदर्शन से तो अच्छी ही लग रही थी। और फिर दिल के बाद बारी आई एक दिमाग़ी एंगिल की। वो है इसकी क़ीमत लगभग 56 लाख रु। औऱ फिर बिंदू वहीं जाकर विश्राम करने चली गई। अगर आपको ये कार दिल से अच्छी है तभी लेंगे आप, नहीं तो इस बजट में कई और तरीके के विकल्प मौजूद हैं।

*पुरानी छपी हुई है। 

December 29, 2014

असली बाइकर नक़ली बाइकर

बार बार उन्हें बाइकर बुलाया जाता है तो बुरा लगता है। असल बाइकर ऐसे थोड़े ही ना होते हैं। बहुतों को जानता हूं, जो दिल से और जीने के तरीके में बाइकर हैं। ख़ुद मैं भी उनमें से हूं जो ये मानते हैं कि बाइक पर लंबी राइड जीवन के लगभग हर तरीके की परेशानी को दूर कर देती है। और ऐसे में जब बिना हेलमेट के, सैकड़ों के झुंड में देर रात सड़कों पर, लोगों को परेशान करते हुए, बाइक भगाते नौजवानों को देखता हूं तो फिर बुरा लगता है। उन्हें देखकर ये नहीं लगता है कि वो इस सवारी का मज़ा लेने के लिए निकले हैं। साफ़ लगता है कि वो भड़ास निकालने के लिए निकले हैं सड़कों पर। उनके सामने पुलिस वालों को भी एक तरीके से बेबस देखता हूं। एक जिप्सी में दो पुलिस वालों के सामने से एक साथ 50 मोटरसाइकिलें निकलें तो फिर किसी को भी संभालना मुश्किल लगेगा ही। और कौन उनसे उलझे वाले भाव से वो दूसरी ओर देखने लगते हैं। कौन उन्हें हेलमेट के लिए पूछे और कौन रेडलाइट जंप करने पर सवाल करे। और ऐसे में नतीजा ये होता है कि बाइकसवार हुड़दंग मचाते चलते हैं और जो लोग उनके रास्ते में आते हैं परेशान होते रहते हैं। और सबसे ज़्यादा ये हुड़दंग देखने को मिलता है किसी ना किसी त्यौहार के दौरान। जहां पर मानो लाइसेंस मिल जाता है सब बाइकसवारों को कुछ ना कुछ स्टंट करने का। और जब तक पुलिस वालों पर नहीं पड़ती वो उन्हें घेरते भी नहीं। पहले तो पुलिस नज़रअंदाज़ करती रही, फिर टीवी चैनलों पर लगातार विज़ुअल दिखाने पर दबाव बढ़ा और फिर पुलिस ने कार्रवाई करनी शुरू की। और पिछली बार तो हद ही हो गई, जब एक बाइकसवार की पुलिस की गोली से मौत ही हो गई। कुछ वक्त पहले घटना सामने आई है जहां पर पुलिस वालों ने लगभग 400 बाइकसवारों को पकड़ा, 250 मोटरसाइकिलों को ज़ब्त किया। इसकी भी तस्वीर काफ़ी अजीबोगरीब थी, पुलिसवालों को ऐसे डंडे बरसाते देखा गया कि समझ नहीं आ रहा था कि पुलिस करना क्या चाहती है इनके साथ। लाठी के चोट लिए नौजवान भी बिलबिलाते दिखे। ख़ैर, इस सबके बाद इन सभी नौजवानों की काउंसेलिंग भी करवाई गई। दिल्ली पुलिस ने तमाम धर्मगुरूओं को बुला कर इन नौजवानों को समझाने के लिए कहा। उन्होंने अपने अपने संदेश दिए। बाद में इनके मां-बाप को बुलाया गया, उनसे बात की गई और कहा गया कि अपने बच्चों को सिखाएं संभालें। इन क़दमों से लगा कि पुलिस कुछ तो रास्ते पर है इस समस्या से निपटने में। लेकिन अनुशासन एक बार में तो बनता नहीं है। रोज़ रोज़ की आदत ही अनुशासन में बदलेगी । तो पहले तो पुलिस को नियमों के पालन के लिए ज़ोर लगाने की ज़रूरत है, जिससे नियमों को तोड़ना किसी को भी आसान ना लगे। एनफ़ोर्समेंट की कमी नियम-क़ानून को बेमानी बना देते हैं। और हर बार बाइकसवारों को हुड़दंग के बाद यही देखने को मिलता है। दूसरे पुलिस को इन नौजवानों से निपटने के लिए इनसे बात करनी होगी, केवल कड़ाई से तो ये उम्र रुकने वाली होती नहीं है। ऐसे में ज़रूरत है कि उनसे पुलिस किसी ना किसी तरीके से एक संवाद भी बनाए, उनसे बात करे और समझाए कि केवल नियम के लिए नहीं अपनी जान की सुरक्षा के लिए भी सेफ़्टी ज़रूरी है। और ये भी कि असल बाइकर अपनी बाइक से प्यार तो करते ही हैं, बाकी सवारों की इज़्ज़त भी करते हैं।

*पहले छपी हुई है। 

December 27, 2014

टोयोटा कोरोला ऑल्टिस


दुनिया में सबसे ज़्यादा बिकने वाली सेडान कार टोयोटा कोरोला ऑल्टिस अपने ग्यारवहें जेनरेशन में। और इसमें बदलाव बाहर से लेकर अंदर तक देखने को मिल सकता है। सबसे पहले जो चीज़ आपको इसमें नई दिखेगी वो बाहर ही दिखेगी। कंपनी ने 
ऑल्टिस के चेहरे मोहरे को बदला है। जिसमें बड़ी भूमिका है इसके नए फ़्रंट ग्रिल को नया देखेंगे, साथ में एलईडी लाइट्स भी नए हैं। इसके अलावा आप देख सकते हैं इसके 16 इंच के अलॉय और क्रोम से चमकता ये पैकेज। 

कार के अंदर भी इसे आप ज़्यादा प्रीमियम होते देख सकते हैं। जहां पर कार्बन पियानो ब्लैक से ये आकर्शक लगेगी, स्टीयरिंग माउंटेड कंट्रोल। डोर हैंडिल के भीतर क्रोम है।  कार के व्हीलबेस को 100 एमएम बढ़ाया गया है।  वहीं आराम के लिए कुछ फ़ीचर्स का ज़िक्र करना ज़रूरी है। जहां पर इसमें लगे हैं रेन सेसंर, वहीं 7 इंच एलसीडी स्क्रीन के साथ नैविगेशन जिसमें यूएसबी और ब्लूटूथ की कनेक्टिविटी है और इसमें ऑडियो भी है। 

पिछली सीट पर आराम के लिए कुछ ख़ास नयापन है। पिछली सीट को रिक्लाइन करने की सुविधा है, जो इस सेगमेंट में नहीं देखने को मिलता है। साथ में पिछली सीट पर लेगरूम भी बढ़ाया गया है। पिछली सीट पर रीडिंग लाइट, सनशेड और पावर सॉकेट दिया गया है। समझ सकते हैं कि इस सेगमेंट में कहानी पिछली सीट पर ही हिट होती है,क्योंकि ऐसी कारों के ग्राहक पीछे ही बैठते हैं। तो वहां पर ज़्यादा आराम और फ़ीचर्स के साथ इसे आकर्षक पैकेज बनाने की कोशिश की है। 
पेट्रोल वर्ज़न वाली कोरोला ऑल्टिस में लगा है 1.8 लीटर वीवीटीआई इंजिन। इसमें एक सीवीटीआई और एक मैन्युअल वर्ज़न का विकल्प है। वहीं इसमें से एक विकल्प है 1.4 लीटर डी4डी इंजिन भी। 

वहीं सुरक्शा के लिए इसमें रियर कैमरा लगा है, डिस्प्ले ऑडियो स्क्रीन के साथ
और बाक़ी के फ़ीचर्स है वो जो आमतौर पर इस सेगमेंट की कारों में होते हैं, जैसे ब्रेक असिस्ट ईबीडी और एबीएस के साथ। और साथ इमोबलाइज़र भी। 

आख़िर में इसकी क़ीमत आपको बता देते हैं। यहां पर पेट्रोल कोरोला की एक्सशोरूम क़ीमत शुरू हो रही है 11.99 लाख रु से और जाती है 16.89 लाख रु तक।   वहीं डीज़ल वर्ज़न की एक्सशोरूम क़ीमत 13.07 से 16.68 लाख रु के बीच है। 


*पुरानी छपी हुई है। 

December 25, 2014

Harley Street 750

हार्ली की नई नवेली स्ट्रीट 750 को कुछ वक्‍त पहले चलाई थी। सोचा एक बार फिर से उस राइड को आपके लिए याद करूं। भारत में कंपनी ने इसे लौंच कर दिया है पिछले ऑटो एक्स्पो के वक्त । एक शांत शनिवार की सुबह को राइड के लिए चुना गया था। मोटरसाइकिल चलाने के लिए मौसम बिल्कुल फ़िट । और हम भी अपने राइडिंग गियर के साथ फ़िट हो गए थे। और तैयार थे स्ट्रीट 750 को चलाने के लिए । 
हार्ली डेविडसन की ये मोटरसाइकिल कई मामले में अहम है भारतीय मोटरसाइकिल बाज़ार के लिए भी और ख़ुद कंपनी के लिए भी। पहली बार जहांं कंपनी ने इतना छोटा इंजिन तैयार किया है, (नई स्ट्रीट सीरीज़ में कंपनी ने 500 और 750 सीसी के इंजिन तैयार किए हैं, जिनमें से फ़िलहाल 750 भारत में लौंच हुई ), साथ ही ये एयरकूल्ड इंजिन नहीं लिक्विड कूल्ड हैं। इसके अलावा जो चीज़ नई है इसके लिए वो है, भारत में इसका प्रोडक्शन। जो हार्ली के इतिहास मे ंपहले नहीं हुआ था। ज़ाहिर है भारत में बड़ी बिक्री की उम्मीद कर रही है कंपनी। और इसके लिए कंपनी ने सबसे पहला क़दम तो कंपनी ने काफ़ा ज़ोरदार उठाया है। इस मोटरसाइकिल की क़ीमत के साथ, जो शुरू हो रही है 4 लाख 10 हज़ार से। इसके साथ ये सबसे सस्ती हार्ली मोटरसाइकिल बाइक हो गई है।



तो भारत में बनी इस मोटरसाइकिल को चलाने के लिए हम तैयार थे और लेकर फिर निकल पड़े इसे सड़कों पर। बिल्कुल नई बाइक की पहली राइड। 

स्ट्रीट 750  में लगा है 749 सीसी की लिक्विड कूल्ड इंजिन, जिससे 65 एनएम टॉर्क आता है। आंकड़ों के हिसाब से तो स्ट्रीट 750  के पास अच्छे नंबर हैं, लेकिन क्या ये नंबर सड़क पर वैसे लगते हैं कि नहीं। शुरूआती सवारी में ही लगा कि स्ट्रीट एक ताक़तवर सवारी है। मज़ेदार और दमदार। सुबह सुबह खुली सड़कों पर भागने में इसने कोई कोताही नहीं दिखाई और भरपूर ताक़त के साथ भागी। अगर ख़ाली और सुरक्षित ट्रैक मिले तो फिर 150 की रफ़्तार तक ये बहुत आराम से चली जाती है। किसी स्पोर्ट्स बाइक की तरह नहीं लेकिन तेज़ी और चुस्ती से। यही नहीं इसकी हैं़डलिंग भी काफ़ी अच्छी लगी। तेज़ रफ़्तार में आड़े तिरछे रास्तों पर मुड़ते हुए कभी भी हिचक नहीं लगी। इंप्रेसिव। 
आम तौर पर हार्ली डेविडसन की मोटरसाइकिलें भारी भरकम सी होती हैं जिन्हें धीमी रफ़्तार में चलाना उतना आरामदेह नहीं होता, भारी शहरी ट्रैफ़िक के बीच संभालना थोड़ा मुश्किल होता है, लेकिन स्ट्रीट 750  की बात करें तो ये बाकियों से हल्की हैंडलिंग वाली है, शहरी ट्रैफ़िक में चलते हुए इसे संभालना किसी भी हल्की बाइक के बराबर ही लगा। गाड़ियों के बीच से निकालना मुश्किल नहीं लगा। 
लेकिन हां, बाइक बड़ी मोटरसाइकिलों की तरह ही गर्म होती है, गर्मी के मौसम में इसे चलाना बहुत आरामदेह नहीं होगा लगता है। वहीं इसकी आकार लंबे लोगों जैसे मेरे लिए बहुत आरामदेह नहीं है। बाइक मौजूदा सुपरलो और आयरन जैसे आकार की लगेगी। हां अगर औसत हिंदुस्तानी लंबाई है तो फिर फ़िट होगी आपके लिए। 
तो इस राइड को ख़त्म करके लगा कि हार्ली ने कुछेक छोटी कमियों को छोड़ एक तेज़ तर्रार बढ़िया बाइक बनाई है, अच्छी क़ीमत पर लौंच किया है। एक ज़ोरदार पैकेज जो हार्ली के लिए अच्छी ख़बर है भारत में।

* पहले छपी हुई है।

December 23, 2014

फ़ोर्ड एकोस्पोर्ट रीकॉल


कंपनी के मुताबिक़ एकोस्पोर्ट पेट्रोल के दोनों वेरिएंट्स, एक लीटर ईकोबूस्ट और १.५ लीटर इंजिन, में फ़्यूल और वेपर लाइन में जंग लगने का डर देखते हुए कंपनी वर्कशॉप में बुलाकर उन्हें ठीक करेगी। वहीं एक और समस्या है जिसे कंपनी इसी रीकॉल में ठीक करने की बात कर रही है, वो है टॉपएंड टाइटेनियन ऑप्शन में साइड एयरबैग ठीक से खुलने के लिए वायरिंग की समस्या को ठीक करना। फोर्ड ग्राहकों को लिख रही है कि वो पता करें और स्थानीय फोर्ड डीलर से संपर्क करें, जहां बिना ग्राहक के ख़र्चे के बदलाव किए जा सकें।  शुरुआत में भी फ़ोर्ड ने अपनी एकोस्पोर्ट के डीज़ल वर्ज़न का रीकॉल किया था। हालांकि वो लौंच के आसपास का रीकॉल था तो संख्या ९७२ यानि हज़ार से कम कारों की थी। वो डीज़ल वर्ज़न में ग्लो प्लग की समस्या था। वहीं कंपनी ने हाल में अपनी ३ हज़ार से ज़्यादा फ़िएस्टा का भी रीकॉल किया था।

इस रीकॉल का तब से इंतज़ार चल रहा था जब ऑस्ट्रेलिया में फ़ोर्ड ने भारत में बनी एकोस्पोर्ट को रीकॉल करने का ऐलान किया था। वहां पर साइड एयरबैग की समस्या बताई गई थी।
भले ही रीकॉल को लेकर कंपनियों की सांस अब वैसी नहीं फूलती जैसे पहले फूलती थी। कंपनियां गाड़ियों को बुलाने में पहले बहुत ज़्यादा बचती थीं, बदनामी के डर से वो या तो छुप कर कारों को ठीक करती रही हैं या फिर ग्राहकों को अपने हाल पर छोड़ती रही है। लेकिन अब कंपनियों की तरफ़ रीकॉल का ऐलान पहले से ज़्यादा होता है। भले ही कंपनियां रीकॉल से वैसा कतराती ना हों, ग्राहक डरते ना हों लेकिन भारत में बन कर एक्सपोर्ट होने वाली गाड़ियों की क्वालिटी को तो डबल चेक करने की ज़रूरत है ही अगर दुनिया भर में मेक इन इंडिया जैसी कोशिशों को सफल करना है। 
अगर आपके पास भी फ़ोर्ड एकोस्पोर्ट है तो फिर ये ख़बर है आपके लिए। कंपनी ने भारत में 20,752 फोर्ड EcoSport को रीकॉल करने का ऐलान किया है। इन गाड़ियों में कुछ ऐसी समस्याएं थीं जिन्हें ठीक करने के लिए कंपनी अब अपने ग्राहकों को लिखने वाली है। कंपनी ने एक प्रेस रिलीज़ करके जानकारी दी है कि जनवरी 2013 और सितंबर 2014 के बीच कंपनी के चेन्नई प्लांट में बनी EcoSport का चेकअप किया जाएगा। इसे वॉलंटरी रिकॉल बताया जा रहा है। ग्राहकों की समस्या के मद्देनज़र ये क़दम उठाए जा रहे हैं। 

December 22, 2014

यूनिकाॅर्न ने बदला रूप

हौंडा मोटरसाइकिल ने अपनी नई मोटरसाइकिल उतार दी है। हौंडा की 163 सीसी वाली नई CB यूनिकॉर्न । नए रंग-रूप में । 
हाल फ़िलहाल में कंपनी ने अपने मोटरसाइकिल पोर्टफ़ोलियो को बड़ा किया है और इसमें शुरूआती सेगमेंट से लेकर डेढ़ सौ सीसी वाले सेगमेंट में भी नयापन ज़रूरी था। इस साल कंपनी ने चार लौंच किए हैं। जिनमें स्कूटर और छोटी मोटरसाइकिल से लेकर लाखों की गोल्डविंग भी रही है। तो कंपनी ने अपनी जानी पहचानी यूनिकॉर्न को रिफ्रेश करने की कोशिश की है।  इसकी स्टाइलिंग और डिज़ायन में बदलाव किए हैं। और हाल फिलहाल में सभी स्कूटरों में जिस HET टेक्ऩॉलजी का इस्तेमाल किया थो वो इसमें भी डाला है, माइलेज बढ़ाने के लिए। कंपनी का दावा है कि हौंडा राइडिंग कंडिशन में इसकी माइलेज अब 62 किमीप्रतिलीटर हो गई है। चार रंगों में फ़िलहाल आई है और इसके दो वेरिएंट हैं। स्टैंडर्ड वेरिएंट जिसकी क़ीमत है 69, 350 रु और CBS वेरिएंट 74,414 रू । दोनों दिल्ली में एक्स शोरूम क़ीमत है। 
यूनिकॉर्न स्टैंडर्ड 69 हज़ार रु यूनिकॉर्न CBS वेरिएंट 74 हज़ार रु (दिल्ली में एक्स शोरूम क़ीमत)

हौंडा अपनी रणनीति के मामले में काफ़ी आक्रामक हो चुकी है। एंट्री सेगमेंट में अपनी युगा को लेकर वो जोश में है, जिसके कई अलग अलग वर्ज़न उतारे जा चुके हैं। कंपनी ने ऐसे ही बड़ी मोटरसाइकिलों के सेगमेंट में भी अपने प्रोडक्टस को रिफ्रेश किया है। और अभी तक हौंडा के लिए बेस्टसेलर रहे स्कूटरों को भी कंपनी ने उसी आक्रामकता के साथ नया किया है। 
HMSI यानि हौंडा मोटरसाइकिल्स और स्कूटर इंडिया लिमिटेड की फ़ैक्ट्री से निकलने वाली सबसे पहली मोटरसाइकिल रही है यूनिकॉर्न । ज़ाहिर है कंपनी के लिए ख़ास है ये। जो अपनी स्मूद राइड के लिए जानी जाती है। नए जेनरेशन की टेस्ट राइड करने का वक्त आ गया है

December 21, 2014

चलने का हक़ लीजिए वापस

दिल्ली पुलिस की कोशिश, फ़ुटपाथ पर क़ब्ज़े की तस्वीर भेजिए 8750871493 नबर पर 

ये वो वक्त है जब आपको थोड़ा ज़ोर लगाना पड़ेगा, क्योंकि आपको जिस आदत, सोच और सामाजिकता को बदलना है, वो सालों से जमी, बहुत पुरानी गहरी सोच है। ये दूसरों के साथ ख़ुद को बदलने का भी वक़्त है। चलने का और चलने देने का वक़्त है। इसे बदलने के लिए कोशिश भी लंबी ही होगी, क्योंकि ये हमारी आदत में गहरा बैठ गया है। जब हम गाड़ी चलाना शुरू करते हैं तो पैदल यात्रियों को रुकावट मानते हैं और ये भूल जाते कि जब हम पैदल निकलते हैं तो गाड़ियों की मनमानी कितना परेशान करती है। और इस फ्रिक्शन के बीच तनाव इतना बढ़ जाता है कि पैदल और गाड़ी वाला दोनों ही आपा खो देते हैं। बिना ये समझे हुए कि हमारी ट्रैफ़िक व्यवस्था एक ऐसे दुश्चक्र में चला गया है जिसे रोकना बड़ी चुनौती है। इसी का नतीजा है कि हर दिन की शुरुआत अब सड़कों पर "दिखाई नहीं देता" "अंधा है क्या" "किनारे क्यों नहीं चल सकता है" "ख़ुदकुशी का शौक़ है क्या " जैसे डायलोग से होती है। और शुरुआत ऐसी होगी तो पूरा दिन कैसा होगा इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अब थोड़ी तसल्ली से देखिए तो पता चल जाएगा कि ये दुश्चक्र दरअसल काफ़ी सीधा सरल है। 
"साल 2013 में दिल्ली में कुल 749 पैदल यात्रियों ने अपनी जान गंवा दी, सड़क हादसों में मारे जाने वालों में से 41 फ़ीसदी पैदल यात्री हैं "

पहला हिस्सा है फ़ुटपाथ। भर की सड़कों को देखें तो आपको पता चलेगा कि कहीं पर भी फ़ुटपाथ नहीं हैं। फ़ुटपाथ हैं भी तो या तो उन पर रेहड़ी वालों ने क़ब्ज़ा कर लिया है या कूड़ेदान में इस्तेमाल हो रहा है या फ़ुटपाथ इतने ऊंचे हैं कि चढ़ना और उतरना नामुमकिन या फिर ऐसी टूटी फूटी हालत में है जिसपर चलना नामुमकिन होता है। तो इसका नतीजा - पैदल सड़कों पर।
दूसरा हिस्सा ये कि जब पैदल सड़कों पर चलेंगे तो गाड़ियां कहां जाएंगी ? और यहीं पर आकर ऐसा तनाव और ऐसी टकराव होती है जो हम रोज़ झेलते हैं। और इस टकराव का नतीजा क्या होता है ? सालाना 15 हज़ार के आसपास पैदल यात्रियों की मौत। जिसमें ये समझने वाली बात है कि इन मौत के पीछे केवल गाड़ियों की ग़लती नहीं होती है। ग़लती चाहे ड्राइवर की हो, पैदल यात्री की हो या फिर प्रशासन की, नतीजा भुगतते हैं पैदल यात्री ही। सबसे असुरक्षित रोड यूज़र इसीलिए कहा जाता है इन्हें।
तीसरा हिस्सा ये कि सड़क पर दिन पर दिन बढ़ते ख़ौफ़ और असुविधा के चलते लोग अब हर क़ीमत पर पैदल चलने से बच रहे हैं। कार नहीं तो स्कूटर का इस्तेमाल कर रहे हैं। अब सुबह की सैर से लेकर सब्ज़ी लाने तक के लिए मिडल क्लास कार या स्कूटर पर जा रहा है। यानि पैदल यात्री ये मान बैठे हैं कि अब सड़क पर उनकी जगह नहीं रही है। लेकिन उन लोगों का क्या जिनकी मजबूरी है पैदल चलना, देश की तीस फ़ीसदी आबादी। जिसके पास अपनी कार या टू व्हीलर नहीं है। उनका क्या ? उनका हश्र हम देख ही रहे हैं।
 
हाल ही में दिल्ली में पैदल यात्रियों की मौत के आंकड़े आए हैं। जो चौंकाने वाले है, लेकिन कम ही लोग चौंक रहे हैं। साल 2013 में दिल्ली में कुल 749 पैदल यात्रियों ने अपनी जान गंवा दी। दिल्ली की ट्रैफ़िक, ग़ैरज़िम्मेदार ड्राइवर, लोगों की लापरवाही और ख़राब रोड डिज़ाइन ने साढ़े सात सौ परिवारों को ज़िंदगी भर का दुख दे दिया। और सोचिए दिल्ली में हालत कितनी ख़राब है कि सड़क हादसों में मारे जाने वालों में से 41 फ़ीसदी पैदल यात्री हैं। जबकि देश भर में ये औसत दस फ़ीसदी से कुछ ही ऊपर है।
अब दिल्ली ट्रैफ़िक पुलिस कुछ कोशिश कर रही है। पुलिस ने लोगों से फिर से फ़ुटपाथ पर हक़ जताने की अपील की है। और ये भी कहा है कि जहां भी फ़ुटपाथ पर किसी तरीके की बनावटी रुकावट, क़ब्ज़ा या पार्क की गई गाड़ियां देखें उसे नज़रअंदाज़ ना करें। उसके फ़ोटो खींचे और ट्रैफ़िक पुलिस के फ़ेसबुक पेज या वाट्सऐप पर भेजें। इसलिए लिए मोबाइल नंबर भी दिया गया है 8750871493 ।
ज़रूरत है सभी शहरों में अभी से इस तरह की मुहिम शुरू की जाए, लोगों की सोच बनाई जाए। अगर आज हम ये कोशिश नहीं करेंगे तो फिर आने वाले कल में ये समस्या ऐसी शक्ल ले लेगी जिसका अंदाज़ा लगाना आज से कुछ साल पहले नामुमकिन था।
कुछ लोगों ने पैदल चलने की कोशिश की है राहगिरि के नाम से और देश के कई हिस्सों में रविवार की सुबह अब गाड़ियों का चलना बंद करवा कर शहर के किसी एक कोने में पैदल चल रहे हैं। सभी शहरों में चलने की ऐसे हक़ को वापस लेने की ज़रूरत है, और दिन के चंद घंटे नहीं, चौबीस घंटे।

Ctrl+C और Ctrl+V ना करें । कहीं ना कहीं छपी हुई है।

गाड़ी शाही- सर्विस नहीं


भारत में लग्ज़री कारों की बिक्री कैसे बढ़ रही है ये किसी से छुपा नहीं है। सड़कों पर मर्सेडीज़, बीएमडब्ल्यू और ऑडी की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि एक वक्त में इन कंपनियों की हर कार को शाही कार मानने वाली सोच भी अब जाती नज़र आ रही है। और ना सिर्फ़ आम लोगों में ये सोच झलक रही है बल्कि ग्राहकों में भी। अब इन कारों के ग्राहक भी ख़ुद वैसा शाही महसूस नहीं कर रहे हैं।

पिछले एक साल में लग्ज़री कारों की बिक्री लगभग दुगनी बढ़ी है। 2013 में लगभग 16 हज़ार कारें बिकी थीं, वहीं इस साल 35 हज़ार से ऊपर कारें, ज़ाहिर है इस बढ़ोत्तरी का दबाव कंपनियों के डीलरशिप और वर्कशॉप पर भी दबाव बढ़ा है। और इस दबाव का असर ग्राहकों की संतुष्टि पर भी पड़ा है जिसे मापने का काम करती है जे डी पावर एशिया पेसिफिक। जिसके 2014 के लग्ज़री सेगमेंट के कस्टमर सर्विस इंडेक्स स्टडी में यही बातें सामने आई हैं। 

कंपनी ने लग्ज़री कारों के 257 ऐसे ग्राहकों से बात की, जिनमें एक से दो साल पुराने मर्सेडीज़, ऑडी और बीएमडब्ल्यू ग्राहक थे। स्टडी में पूछा गया कि सर्विस की क्वालिटी, गाड़ी के पिकप, सर्विस एडवाइज़र, सर्विस फेसिलिटी और सर्विस की शुरूआत से। इन सब पैमानों के लिए अलग अलग अंक दिए गए थे और सभी कंपनियों को कुल हज़ार प्वाइंट के स्केल पर मापा गया। और इस पैमाने पर पिछले साल के मुक़ाबले ग्राहकों कम संतुष्ट हैं। सर्विसिंग की शुरूआत और फेसिलिटी को लेकर ग्राहक सबसे नाख़ुश थे। जिन रेटिंग में पिछले साल के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा गिरावट दर्ज की गई।

इन सबका मतलब ये है कि ग्राहकों को सर्विसिंग के लिए अब पहले से ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ता है। सर्विस होकर गाड़ी तैयार होने में भी वक्त ज़्यादा लगता है। ग्राहकों को इस देरी के बारे में सही जानकारी नहीं दी जाती।

इस स्टडी में नंबर एक पर मर्सेडीज़ रही, दूसरे पर बीएमडब्लूय और तीसरे पर ऑडी रही। 

*Ctrl+C और Ctrl+V ना करें । कहीं ना कहीं छपी हुई है