बार बार उन्हें बाइकर बुलाया जाता है तो बुरा लगता है। असल बाइकर ऐसे थोड़े ही ना होते हैं। बहुतों को जानता हूं, जो दिल से और जीने के तरीके में बाइकर हैं। ख़ुद मैं भी उनमें से हूं जो ये मानते हैं कि बाइक पर लंबी राइड जीवन के लगभग हर तरीके की परेशानी को दूर कर देती है। और ऐसे में जब बिना हेलमेट के, सैकड़ों के झुंड में देर रात सड़कों पर, लोगों को परेशान करते हुए, बाइक भगाते नौजवानों को देखता हूं तो फिर बुरा लगता है। उन्हें देखकर ये नहीं लगता है कि वो इस सवारी का मज़ा लेने के लिए निकले हैं। साफ़ लगता है कि वो भड़ास निकालने के लिए निकले हैं सड़कों पर। उनके सामने पुलिस वालों को भी एक तरीके से बेबस देखता हूं। एक जिप्सी में दो पुलिस वालों के सामने से एक साथ 50 मोटरसाइकिलें निकलें तो फिर किसी को भी संभालना मुश्किल लगेगा ही। और कौन उनसे उलझे वाले भाव से वो दूसरी ओर देखने लगते हैं। कौन उन्हें हेलमेट के लिए पूछे और कौन रेडलाइट जंप करने पर सवाल करे। और ऐसे में नतीजा ये होता है कि बाइकसवार हुड़दंग मचाते चलते हैं और जो लोग उनके रास्ते में आते हैं परेशान होते रहते हैं। और सबसे ज़्यादा ये हुड़दंग देखने को मिलता है किसी ना किसी त्यौहार के दौरान। जहां पर मानो लाइसेंस मिल जाता है सब बाइकसवारों को कुछ ना कुछ स्टंट करने का। और जब तक पुलिस वालों पर नहीं पड़ती वो उन्हें घेरते भी नहीं। पहले तो पुलिस नज़रअंदाज़ करती रही, फिर टीवी चैनलों पर लगातार विज़ुअल दिखाने पर दबाव बढ़ा और फिर पुलिस ने कार्रवाई करनी शुरू की। और पिछली बार तो हद ही हो गई, जब एक बाइकसवार की पुलिस की गोली से मौत ही हो गई। कुछ वक्त पहले घटना सामने आई है जहां पर पुलिस वालों ने लगभग 400 बाइकसवारों को पकड़ा, 250 मोटरसाइकिलों को ज़ब्त किया। इसकी भी तस्वीर काफ़ी अजीबोगरीब थी, पुलिसवालों को ऐसे डंडे बरसाते देखा गया कि समझ नहीं आ रहा था कि पुलिस करना क्या चाहती है इनके साथ। लाठी के चोट लिए नौजवान भी बिलबिलाते दिखे। ख़ैर, इस सबके बाद इन सभी नौजवानों की काउंसेलिंग भी करवाई गई। दिल्ली पुलिस ने तमाम धर्मगुरूओं को बुला कर इन नौजवानों को समझाने के लिए कहा। उन्होंने अपने अपने संदेश दिए। बाद में इनके मां-बाप को बुलाया गया, उनसे बात की गई और कहा गया कि अपने बच्चों को सिखाएं संभालें। इन क़दमों से लगा कि पुलिस कुछ तो रास्ते पर है इस समस्या से निपटने में। लेकिन अनुशासन एक बार में तो बनता नहीं है। रोज़ रोज़ की आदत ही अनुशासन में बदलेगी । तो पहले तो पुलिस को नियमों के पालन के लिए ज़ोर लगाने की ज़रूरत है, जिससे नियमों को तोड़ना किसी को भी आसान ना लगे। एनफ़ोर्समेंट की कमी नियम-क़ानून को बेमानी बना देते हैं। और हर बार बाइकसवारों को हुड़दंग के बाद यही देखने को मिलता है। दूसरे पुलिस को इन नौजवानों से निपटने के लिए इनसे बात करनी होगी, केवल कड़ाई से तो ये उम्र रुकने वाली होती नहीं है। ऐसे में ज़रूरत है कि उनसे पुलिस किसी ना किसी तरीके से एक संवाद भी बनाए, उनसे बात करे और समझाए कि केवल नियम के लिए नहीं अपनी जान की सुरक्षा के लिए भी सेफ़्टी ज़रूरी है। और ये भी कि असल बाइकर अपनी बाइक से प्यार तो करते ही हैं, बाकी सवारों की इज़्ज़त भी करते हैं।
*पहले छपी हुई है।
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