May 08, 2013

अपन हिंदुस्तानी हैं शौकीन...


विंटेज कारों की दुनिया बहुत ही ख़ास होती है, सभी कारों के साथ एक से एक कहानी जुड़ी होती है। सब एक से एक दिलचस्प। ऐसी ही दुनिया में घूमते हुए एक विंटेज कार रिस्टोरर से सालों पहले मुलाक़ात हुई थी। दिल्ली के एक किनारे में बने एक फ़ॉर्महाउस में उनके वर्कशॉप पर उनसे बात हो रही थी, मैंने पूछा कि सबसे अनोखी कार कौन सी है उनके कलेक्शन में । तो उन्होंने बताया कि एक कार ऐसी थी जिसके लिए उन्होंने काफ़ी पैसे ख़र्च किए। ना सिर्फ़ पैसे बल्कि सौदे के लिए उन्होंने पुरानी रोल्स रॉयस तक दे डाली। ये सब एक कार के लिए जिसका  नाम था मिनर्वा। इसके बारे में आम भारतीय कार प्रेमियों को कम पता है क्योंकि ये बीसवीं शताब्दी की शुरूआत में कार बनाती थी। ऐसा नहीं कि ये कार बहुत ही ज़ोरदार हो, या इंजनीयरिंग का अद्भुत शाहकार हो । लेकिन अब दुनिया भर में इक्का-दुक्का कारें ही ऐसी बची थीं, ऐसे में ये कार बहुत ही नायाब बन गई थी।


कुछ साल पहले लुधियाना के सफ़र पर निकला था। साइकिल और होज़ियरी के लिए नामी इस शहर के साथ एक और ख़ास आंकड़ा जुड़ा था। वो था आबादी के अनुपात में देश में सबसे ज़्यादा मर्सेडीज़ कारों का। और ऐसे में एक से एक शख़्सियतों से मिलने का मौक़ा मिला। जिनमें से प्रॉपर्टी डीलर और बिज़नेसमेन तो आम थे। लेकिन एक बहुत बड़ी संख्या थी वैसे किसानों की जो बड़े किसान थे और मर्सेडीज़ का शौक पूरा कर रहे थे। उन्हीं में से एक शख़्स ने बहुत ही दिलचस्प बात बताई। उनके मुताबिक उनकी कार नॉर्थ इंडिया में अनोखी थी। मैंने जब उनकी कार देखी तो लगा कि आम सी क्लास मर्सेडीज़ है। मैंने पूछा कि इसमें क्या ख़ास है, ये तो सी क्लास है। तो उन्होंने जवाब दिया कि ये कार तो आम है लेकिन इसमें लगा इंजिन पूरे नॉर्थ इंडिया के किसी सी क्लास में नहीं। मैं लाजवाब हो गया। 

ये दोनों कहानी तब याद आई जब किसी ने सवाल किया कि इंपोर्टेड कारों को लेकर ऐसी दीवानगी क्यों है। और क्यों लोग तरह तरह के तिकड़म के ज़रिए इंपोर्टेड कारों को ख़रीदने में लगे रहते हैं और पकड़े भी जाते हैं। वो है एक्सक्लूसिविटी। गाड़ी तो आज हर इंसान ख़रीद रहा है, ऐसे में हम अलग औऱ ख़ास कैसे दिखें ...इसी सवाल का जवाब बहुतों के लिए इंपोर्टेड कार के तौर पर आती है। 

बुगाटी वेरोन-

कोई जाता है दुनिया में सबसे ताक़तवर कार की तरफ़। बुगाटी की वेरोन। वो कार जिसे बनाना ही शुरू किया गया इस आइडिया के साथ कि एक ऐसी कार बने जिसका इंजिन हज़ार हॉर्जोसपावर से ज़्यादा है और सबसे तेज़ कार बने। वेरोन इसी वजह से सबसे तेज़ चलने वाली कार बनी। भारत में शौकीनों के लिए इसका एक आंकड़ा काफ़ी था। टॉप स्पीड 407 किमीप्रतिघंटा। इसकी भारत में क़ीमत 16 करोड़ रु से शुरू होती है। वो भी एक्सशोरूम क़ीमत। यानि ऑन रोड होते होते क़ीमत में कुछ और शून्य जुड़ जाते हैं। 

हमर -
भारत में एसयूवी का अलग रोमांस है। और दुनिया भर में सबसे दमदार एसयूवी माना जाता है हमर को ही। हालांकि कंपनी बंद हो गई लेकिन अभी भी भारत में इस भारी भरकम एसयूवी के वर्ज़न बिकते दिख जाएंगे। जहां अमेरिका में आर्नोल्ड श्वार्ज़ेनेगर जैसे फौलादी ऐक्टर हमर के फ़ैन हैं ही...भारत में धोनी और हरभजन सिंह ने भी करोड़ से ऊपर की इस स्पोर्ट्य यूटिलिटी गाड़ी को ख़रीदा है। वैसे भारत में इंपोर्ट होने वाली सबसे लोकप्रिय कारों में से हमर एक है। जो पहले सिर्फ़ आर्मी के लिए बनाई गई थी और बाद में आम ग्राहकों केलिए इसे बनाया गया।       हाल में सीबीआई ने जो गाड़ियां पकड़ी हैं, उनमें भी हमर ज़रूर थी।


फ़ेरारी -

भारत में रफ़्तार के नाम पर सबसे पहले अगर किसी एक कार ब्रांड का नाम आता है तो वो है फ़ेरारी । फ़ेरारी की सवारी तो बाद में आई। बस ऑटो में भी फ़ेरारी के स्टिकर दिखते रहते हैं। शूमाकर से लेकर तेंडुलकर सभी स्पोर्ट्स आइकॉन इस कार के दीवाने रहे हैं। और भारत के अरबपतियों को भी पता है कि अगर ये कार नहीं है गेराज में तो उनका रुतबा अधूरा है। इसीलिए कंपनी ने भी भारत में बिक्री शुरू कर ही दी है। क़ीमत की शुरूआत मात्र ढाई करोड़ रु से। जो जाती है 4 करोड़ रु तक।

लैंबोर्गिनी-
भारतीयों को इटैलियन ब्यूटी कुछ ज़्यादा ही पसंद हैं। एक और इटैलियन महारथी जो सबकी फ़ेवरेट है वो है लैंबोर्गिनी। सस्ती ये भी नहीं है। 2 करोड़ रु से शुरू होती है। जाती है पांच करोड़ तक। लैंबोर्गिनी अवांतेडोर औऱ गलार्डो हर रईस हिंदुस्तानी के लिए ज़रूरी नाम बने हुए हैं। 

रोल्स रॉयस
भारत में अभी भी महाराजाओं के लिए प्यार गया नहीं है। और ये सबसे बड़ी वजह है रोल्स रॉयस से प्यार के पीछे। अभी भी रोल्स रॉयस को ख़रीदना रईस होने की सबसे बड़ी निशानी में से एक है। क़ीमत भले ही 3 से 6 करोड़ रु के बीच हो लेकिन अभी भी लोग इस कार के लिए 8 से 9 महीने इंतजार करने के लिए तैयार हैं। कंपनी ने भारत में वापसी के वक्त जिस बिक्री का अंदाज़ा लगाया था, बिक्री उसे कब का पार कर चुकी है।

बेंटली

कुछ ने इस कंपनी को रोल्स रॉयस के विकल्प के तौर पर देखा तो कुछ ने ज़्ज़्यादा स्पोर्टी लंगज़री कार के तौर पर। ये है बेंटली। ये कार भी भारत में करोड़ों की ही आती है। डेढ़ से तीन करोंड़ तक की कारें आती हैं बेंटली की। शाही के साथ स्पोर्टी अंदाज़ जोड़ने के लिए भारतीय रईसों को ये कार काफ़ी पसंद आती है।


इन सभी कारों को इंपोर्ट करना कुछ साल पहले तक लालफीताशाही में फंसने का रास्ता माना जाता था । लेकिन अब तस्वीर बदल चुकी है। दुनिया की लगभग हर नामी कार भारत में किसी ना किसी तरीके से आ चुकी है। कुछ अपनी कंपनी के शोरूम के ज़रिए तो कुछ ऑफिशियल इंपोर्टर के ज़रिए। तो ऐसे में जो भी शौकीन हैं उनके पास कई ज़रिए हैं अपनी मनपसंद कार को ख़रीदने का। तो जब ऐसी उपलब्धता है फिर क्यों आए दिन हम इंपोर्टेड कार के घोटाले की ख़बर देखते रहते हैं। तो इसमें एक बड़ी भूमिका है विदेशी कारों पर लगने वाले इंपोर्ट ड्यूटी की भी। भारत में इंपोर्ट होने वाली कार पर जो ड्यूटी देनी पड़ती है वो कार की क़ीमत को दुगना कर देता है। यानि पचास लाख की कार एक करोड़ की और एक करोड़ की कार दो करोड़ की। और इसी से बचने के कई तरीके देखे जाते हैं जब कारें पकड़ी जाती हैं। 


वैसे एक्सक्लूसिव कारों के लिए शौक कई बार मज़ेदार मोड़ ले लेता था। महंगी लग्ज़री कारों के लिए लोग लालायित रहते थे औऱ ऐसी कार पाने के लिए कई बार हास्यास्पद हद तक जाते थे। एक जाने माने गायक के ऊपर एक ऐसी ही कार इंपोर्ट करने वाली कंपनी ने केस कर दिया था। हुआ ये था कार इंपोर्टर ने एक चमचमाती पीली फ़ोक्सवागन बीटल जर्मनी से इंपोर्ट की थी। ये किसी ग्राहक के लिए था, जिसके नाम पर कार रजिस्टर हो चुकी थी, लेकिन डिलिवरी नहीं हुई थी। लेकिन जब नामी सिंगर ने कार टेस्ट ड्राइव के लिए मंगवाई तो इंपोर्टर ने कार को भेज दिया। और फिर जो हुआ हो तो ज़बर्दस्त कहानी बन गई। इंपोर्टर के मुताबिक उस सिंगर ने कार को फिर से अपने नाम रजिस्टर करवा कर रख लिया और कहा कि आप दूसरी कार इंपोर्ट कर लीजिए। जीहां ऐसी दीवानगी थी कारों के लिए और ऐसी कमी थी ऐसे शौकीनों के लिए इंपोर्टे कारों के लिए।


(कुछ महीने पहले छपा )

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