कहानी इवोक की
एक नई सवारी और एक नया दिन था मेरे लिए, जब सामने थी मेरे रेंज रोवर इवोक। एक नामी ब्रांड की चर्चित एसयूवी। जो भारत में आजकल काफ़ी दिखने लगी है। तो इस गाड़ी को लेकर मैं निकला मिट्टी वाले उबड़ खाबड़ वाले रास्ते पर। और वहां पर ये गाड़ी मस्त होकर भागना शुरू हो गई। और ख़ास बात ये रही कि जब इसे सड़क पर लेकर गया तो भी उतने ही अच्छे से भागी। यानि मिट्टी में एक एसयूवी और सड़क पर कार की तरह। फिर लगा कि 52 से 58 लाख रु की क़ीमत में अगर ऐसा मज़ा नहीं आएगा तो किन गाड़ियों में आएगा। लेकिन ये गाड़ी है दरअसल शौकीनों के लिए। जो इतने पैसे ख़र्च करें इवोक को ख़रीदने के लिए। अब ये कहना ग़लत नहीं होगा कि इस मुख्य बनावट ऐसी है जो इसे ड्राइवरों के लिए ज़ोरदार बनाएगा। पिछली सीट उतनी आरामदेह और जगह वाली नहीं जैसे हम इस कीमत की गाड़ियों में देखते हैं। तो ऐसे में शौक़ीन ही तो इसे लेंगे जिन्हें ऐसी गाड़ियों को चलाने का मन करता है। हां इसकी क़ीमत का तो मसला ही अलग है।
लेकिन कई बार कहानी जितना हम सोचते हैं उससे लंबी चली जाती है। यानि जहां से शुरू करने की सोचते हैं वहां से भी पीछे जाना पड़ता है। जैसे रेंज रोवर की गाड़ी चलाते हुए मुझे महसूस हुआ। दरअसल पिछले दिनों मुझे मौक़ा मिला रेंज रोवर की नई गाड़ी इवोक चलाने का। ये एक एसयूवी है, जैसे कि रेंज रोवर की सभी गाडियां होती हैं। और इस गाड़ी का कैसे परिचय करवाया जाए अपने दर्शकों से, यही सोच रहा था। सोच इसलिए क्योंकि इस ब्रांड को लेकर लोगों में कई तरीके की उत्सुकता है। उत्सुकता इसलिए क्योंकि जब से टाटा ने इस ब्रांड को ख़रीदा है लोग इसके बारे में सुन तो रहे हैं लेकिन इसकी कहानी साफ़ नहीं हो पा रही थी। इसी वजह से लग रहा था कि इसकी कहानी को केवल इस कार के ज़रिए नहीं समझाया जा सकता है, इसके इतिहास में जाना पड़ेगा। ऐसे में ज़ाहिर सी बात है कि इस ब्रांड के अब तक के सफ़र को देखना पड़ेगा, वो भी रेंज रोवर के नहीं लैंड रोवर के इतिहास को जिसकी शुरूआत हुई थी 1948 में। क्योंकि यही है वो कंपनी जो रेंज रोवर बनाती है।
दूसरे विश्वयुद्द के बाद अमेरिकी जीप की लोकप्रियता ऐसी थी जिसे चुनौती देना मुश्किल था। जीवन मुश्किल हो रहा था और हालात पेचीदा। गा़ड़ियों की उपलब्धता कम थी और पार्ट-पुर्ज़े की मारामारी अलग। ऐसे में एक ब्रिटिश शख़्स इस चिंता में पड़े थे कि कैसे ऐसी गाड़ी तैयार हो जो जीप का विकल्प हो सके । जिनका नाम था मॉरिस विल्क्स । विल्क्स परेशान थे क्योंकि उनकी ज़िंदगी जीप पर चल रही थी और उन्हें डर था कि इस गाड़ी के ना होने पर क्या होगा। और यही सोचते हुए उन्होंने तैयार किया डिज़ाइन लैंड रोवर का। एक जीप नुमा यूटिलिटी वेह्किल जो किसी भी माहौल में, कैसे भी रास्ते पर चल सके। किसी भी ज़रूरत के लिए। चाहे किसान इससे खेती करना चाहें या ऑफ़रोडिंग के शौकीन इसे मिट्टी कीचड़ में भगा सकें। और गाड़ी इन सब माहौल में ना सिर्फ चली बल्कि दौड़ी। धीरे धीरे इस गाड़ी ने अपनी काबिलियत की वजह से दुनिया भर में नाम कमाया। दुनिया के सबसे मुश्किल रास्तों पर ये गाड़ी भागी। लैंड रोवर प्रेमियों ने ना सिर्फ़ इसे मिट्टी कीचड़ में भगाया, बल्कि पहाड़ियों से लेकर बर्फ़ीली जगहों तक में ले गए। कितने ही देश की सेना ने इसका इस्तेमाल किया। लोगों के इस भरोसे के साथ कंपनी फलती-फूलती गई। कंपनी अगले क़दम के तौर रेंज रोवर लेकर आई। यानि वो एसयूवी जिनमें कार जैसे फीचर्स थे। 1970 से बनने वाली रेंज रोवर ढेर सारे फीचर्स से लैस आरामदेह एसयूवी बनी। कंपनी के लिए ये बेस्टसेलर साबित हुई। वक्त बदला ज़रूरतें बदलीं और इन सबके साथ कंपनी ने अपने प्रोडक्ट भी बदले। कंपनी के सामने हालांकि चुनौतियां भी बढ़ती गईं। जहां पर कंपनी बिकी, बिकी और फिर बिकी। एक वक्त में रोवर कंपनी के अंदर रहने वाला ये ब्रांड बीएमडब्ल्यू के पास गया। फ़ोर्ड ने भी इस ब्रांड को ख़रीदा। आख़िरकार अब ये टाटा के पास चली आई है। और जब से आई है, इसकी किस्मत चमकी है।
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