May 04, 2013

कौन करेगा ओवरटेक R8 V10 plus को ?


"कार में लगे सवा पांच लीटर इंजिन से ताक़त निकलती है साढ़े पांच सौ हॉर्सपावर की। सौ की रफ़्तार ये पकड़ लेती है मात्र साढ़े तीन सेकेंड में"

दुनिया के बाकी देशों में या कहें ज़्यादातर देश में रेस ट्रैक पर जाने का अपना अलग रोमांच होता है। जहां पर ड्राइवर या रेसर अपनी और अपनी गाड़ी का काबिलियत को परखता है, या परखती है। जहां पर गाड़ियों को उनकी आख़िरी सीमा तक खींचा जा सके, टॉप स्पीड का असली मतलब समझा जाए। लेकिन हाल में मैंने महसूस किया कि भारत में रेस ट्रैक पर जाने का एक बोनस और है। वहां पर कुछ एक्स्ट्रा निश्चिंतता मिलती है। जैसे ये कि सड़क ठीक होगी, अचानक कोई गड्ढा नहीं मिलेगा, ये भी कि उल्टी साइड से कोई गाड़ी लेकर नहीं आ जाएगा आपको लघु हार्ट अटैक देने के लिए। थोड़ी व्यंग्य के तौर पर आपको ये पंक्तियां महसूस होंगी लेकिन पिछले हफ़्ते वाकई मैं ऐसा ही महसूस कर रहा था मैं, जब मैं एक नई कार को चलाने के लिए दिल्ली से सटे ग्रेटर नौएडा के फॉर्मूला वन ट्रैक पर पहुंचा था। ये कार थी ऑडी की नई आर 8 । ये ऑडी की सबसे ख़ास स्पोर्ट्स कार है। दो दरवाज़ों वाली और दो सीटों वाली। जो बनी है ख़ासतौर पर रफ़्तार के लिए। हालांकि ये कार पहले से भारत में मौजूद थी। लेकिन इस रोमांचक कार को थोड़ा और रोमांचक बनाया है, ये है ऑडी वी 10 प्लस। वी 10 का मतलब ये इंजिन 10 सिलिंडर  वाला इंजिन है। इसमें प्लस का मतलब कुछ ऐक्स्ट्रा  ताक़त से है। कार में लगे सवा पांच लीटर इंजिन से ताक़त निकलती है साढ़े पांच सौ हॉर्सपावर की। सौ की रफ़्तार ये पकड़ लेती है मात्र साढ़े तीन सेकेंड में। सोचिए शून्य से सौ की रफ़्तार साढ़े तीन सेकेंड में। लेकिन इसकी दुनिया सौ तक ही सीमित नहीं रहती है। ये 317 किमीप्रतिकिमी तक जाती है, यानि इसकी टॉप स्पीड। ये सब आंकड़े इसलिए बता रहा हूं क्योंकि अगर सबसे पहले इसकी क़ीमत बता देता तो आपके ज़ेहन में सवाल आता कि आख़िर ऐसा क्या है इस कार में जो इसकी क़ीमत लगभग सवा दो करोड़ तक पहुंच जाए। जी हां इसकी महाराष्ट्र एक्स शोरूम क़ीमत है दो करोड़ छह लाख रु। लगा ना आपको कि आख़िर ऐसा क्या होता है कि इन कारों की क़ीमत करोड़ों में चली जाती है। 



चलिए इसमें सबसे बेसिक वजह तो है इन कारों पर लगने वाली ड्यूटी जो इन्हीं सुपर-महंगी कार बनाती है। लेकिन इसके अलावा भी इनकी क़ीमत हमेशा से ज़्यादा होती है। जिसके पीछे एक ही सोच होती है, कार को कैसे ज़्यादा से ज़्यादा तेज़ और ज़्यादा से ज़्यादा सुरक्षित बनाया जाए। और ये दो पैमाने ऐसे हैं जो किसी भी इंजीनियर के  लिए किसी तिलिस्म से कम नहीं, जिसका संतुलन करना बहुत मुश्किल होता है। और ऐसा संतुलन आपको हरेक ऐसी स्पोर्ट्स कारों में दिखेगा चाहे हो ऑडी हो, मर्सेडीज़ हो, फ़ेरारी हो या लैंबोर्गिनी। इसीलिए बहुत सी कारों को देखकर लगता है कि सिर्फ़ बाज़ार के लिए एक प्रोडक्ट नहीं बनाया गया है, फ़िज़िक्स के नियमों से लड़ते हुए एक मास्टरपीस भी बनाया गया । जो बेतहाशा भागती है, कितनी भी तेज़ रफ़्तार में बिना हिचके मुड़ती है और कितनी भी तेज़ रफ़्तार से अचानक सटीक रुकती भी है । कार में इस्तेमाल हरेक पार्ट-पुर्ज़े इसी मक़सद से चुने और लगाए जाते हैं। और इन सबके बाद इन्हें चलाना एक अलग अनुभव होता है, जहां पर इनकी काबिलियत का जितना टेस्ट हम कर रहे होते हैं उतना ही टेस्ट ये कारें हमारी कर रही होती हैं। और वैसा ही महसूस कर रहा था मैं बुद्घा इंटर्नैशनल सर्किट पर। साढ़े पांच सौ हॉर्सपावर की कार की ताक़त का मज़ा लेते हुए, बिना इस फ़िक्र के कि करोड़ों की इस कार को कोई स्क्रैच ना लगा दे या कोई ओवरटेक करने के लिए हॉर्न ना मारे। 

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