सुपर 2013
अगर सबकुछ अपनी रफ़्तार से चला और वो लौंच देखने को मिले जिनकी योजना थी तो साल 2013 मोटरसाइकिलों के लिए भी एक ख़ास साल रहेगा। वो भी बड़ी मोटरसाइकिलों के इलाक़े में, वो मोटरसाइकिलें जिन्हें लोग शौक की वजह से ख़रीदते हैं ज़रूरत के लिए नहीं। पिछले दो-तीन सालों में, ख़ास तौर पर हार्ली डेविडसन के भारत आने के बाद हमने भारतीय लाइफ़स्टाइल बाइकिंग में ठोस तब्दीलियां देखी हैं। कंपनी ने लगभग दो साल में दो हज़ार के आसपास मोटरसाइकिलें बेची हैं। और ये संख्या केवल इस कंपनी के बारे में नहीं बता रहा है बल्कि बाज़ार के बारे में भी बता रहा है, ग्राहकों के बारे में भी । वो मोटरसाइकिलें, जिसका सबसे सस्ता मॉडल साढ़े पांच लाख रु के आसपास शुरू होता है, जो सिर्फ़ क्रूज़र बाइक्स बनाती है, उसने क्या ऐसा किया जो सही था। तो इसमें कंपनी की सभी कोशिशों को याद करना पड़ेगा, जिनमें अच्छे प्रोडक्ट, भारतीय बाज़ार के मद्देनज़र सस्ते प्रोडक्ट, आकर्षक पेमेंट स्कीम से लेकर ठोस आफ़्टर सेल्स सर्विस नेटवर्क की कवायद भी थी। इस कंपनी के अभी तक के प्रदर्शन से कुछ चीज़ें साफ़ हुई हैं, बाज़ार थोड़ा ऑर्गनाइज़्ड दिख रहा है। पहले लाखों की मोटरसाइकिलों का बाज़ार बहुत उहापोह में दिखता था। कुछेक पॉकेट्स में और चुनिंदा शहरों में। ये भी साफ़ हुआ है कि अगर भरोसा दिलाया जाए तो हिंदुस्तानी ग्राहक लाखों रुपए मोटरसाइकिल पर ख़र्च करने से नहीं डरेंगे। 2013 के बारे में बात करते हुए इस पुरानी कहानी का ज़िक्र करना इसलिए ज़रूरी था क्योंकि एक बड़ा ब्रांड जो इस साल भारत में अपने प्रोडक्ट ला सकती है, उसके लिए हार्ली का सफ़र एक बड़ी सीख हो सकता है। ये वो कंपनी है जिसने भारत में आने का ऐलान 2012 की शुरूआत में ही कर दिया था। ब्रिटिश मोटरसाइकिल कंपनी ट्रायंफ़। कंपनी ने ना सिर्फ़ ऐलान किया था भारत में एंट्री के बारे में बल्कि मोटरसाइकिलों की फ़ाइनल लिस्ट और उनकी क़ीमतों का ऐलान भी कर दिया। लेकिन 2012 के भीतर लौंच का वायदा पूरा नहीं कर पाई। जो अच्छी शुरूआत नहीं कही जा सकती है। लेकिन उम्मीद यही है कि इस साल भी आ जाए वक्त पर तो ज़्यादा नुकसान नहीं होगा। ये एंट्री मुझे इसलिए भी ख़ास लग रही है क्योंकि ट्रायंफ़ मोटरसाइकिल कंपनी हार्ली से जुदा है। केवल अमेरिकी और ब्रिटिश कंपनी की बात नहीं है।
ट्रायंफ़ का पोर्टफ़ोलियो कहीं ज़्यादा विस्तृत है। जहां हार्ली केवल क्रूज़र मोटरसाइकिलें बनाती है वहीं ट्रायंफ़ के पास हर तरीके की मोटरसाइकिलें हैं जो ना सिर्फ़ ग्राहकों को विकल्प देंगी बल्कि ग्राहकों को नए कौंसेप्ट से परिचित भी करवाएगी। यानि अब तक हम हिंदुस्तानी मोटरसाइकिल प्रेमी दो तरीके की बड़ी मोटरसाइकिलों को जानते हैं सुपरबाइक्स और क्रूज़र। लेकिन ट्रायंफ़ ने अपने पत्ते सही खोले तो ग्राहक उसकी टूरिंग मोटरसाइकिलों को पहचान पाएंगे, क्लासिक सिटी स्पोर्ट्स बाइक जान पाएंगे, ऑफ़ रोड मोटरसाइकिलें भी देख पाएंगे। लेकिन उन सबके लिए ग्राहक जाएं इससे पहले कंपनी को अपनी तरफ़ से गंभीरता दिखानी पड़ेगी, ठोस रणनीति और नेटवर्क के साथ । लेकिन सवाल ये है कि क्या कंपनी कर पाएगी ये सब ? जवाब वही जानती है कि कितना आत्मविश्वास है और भारतीय बाइकरों पर विश्वास है। लेकिन केवल एक कंपनी ही साल को ख़ास नहीं बनाएगी भारतीय बाइक बाज़ार को। ये सिर्फ़ एक सिरा है। बाकी प्रोडक्ट और भी हैं।
जिस सेगमेंट के बढ़ने का इंतज़ार मैं कई सालों से कर रहा था वो अब दिख रहा है। यानि किफ़ायती मोटरसाइकिलों और सुपरबाइक्स के बीच के सेगमेंट में इस साल कई एंट्री हम देख सकते हैं। वैसे इस सेगमेंट में हाल में जो गतिविधियां दिखी हैं वो बता रही हैं कि ये सेगमेंट काफ़ी ज़ोरों से बढ़ रहा है। और इसके अगले चैप्टर इस साल देखेंगे। जैसे हौंडा की तरफ़ से हमने ढाई सौ सीसी की मोटरसाइकिल देखी सीबीआर 250 के तौर पर, फिर 150 सीसी की स्पोर्ट्स बाइक आई। अब इस साल हौंडा की 500 सीसी वाली नई सीबीआर हम देख सकते हैं, जिसे कंपनी ने अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पेश किया था। वहीं एक सीनियर बाइक आ सकती है केटीएम की तरफ़ से। केटीएम ने अपनी 200 सीसी की ड्यूक को काफ़ी इंतज़ार करवाने के बाद भारत में पेश किया था और अब वो लेकर आ रही है अपनी ड्यूक 390। देखते हैं कि इसकी क़ीमत क्या होती है। वैसे इनके अलावा भी कुछ मोटरसाइकिलों की फेहरिस्त है। और इनकी क़ीमत 4 लाख रु के इर्दगिर्द रह सकती है।
तो इन सब मोटरसाइकिलों के लौंच की वजह से साल 2013 को शायद वो साल पुकारा जा सकता है जब लाइफ़स्टाइल बाइकिंग भारतीय बाइकर्स के लाइफ़स्टाइल का हिस्सा बने।
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