August 27, 2011

कैसे करें धरती को रीचार्ज



बगल की सीट पर बैठी मां कह रही थी ''पिछले दो-तीन सालों में ही इतनी गाड़ियां बढ़ गई हैं, मालूम नहीं आगे क्या होगा। ये सब तुम्हारे प्रोग्राम की वजह से हुआ है, सब देखदेखकर गाड़ी ख़रीद रहे हैं...'' तो भरी दुपहरी की इस ट्रैफ़िक से परेशान माताजी को कोई वजह नहीं मिली तो लपेट लिया मुझे ही। लेकिन कई बार कई लोगों से मैंने लगभग ऐसी ही आलोचना या ताना ज़रूर सुना है। कि हम हैं पसंद सिर्फ़ तेज़ रफ़्तार, ताक़तवर और तेल पीने वाली गाड़ियां।  और ख़ासकर जो भी पर्यावरण के इलाक़े में काम करने वाले मेरे जानकार हैं,या फिर कई नवपरिचित, जो ग्लोबल वार्मिंग से चिंतित हैं। ख़ैर । जिनके लिए जवाब कई बार सफ़ाई की शक्ल लेने लगता है लेकिन अब लगता है कि तस्वीर बदलने वाली है।

दरअसल अभी तक केवल भारत ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ईको फ्रेंडली गाड़ियों के दो पहलू पर नज़र जाती रही है। एक तो उन्हें एक कॉम्प्रमाइज़ के तौर पर देखा जाता था, समझौते के तौर पर। अगर आप पर्यावरण के बारे में फ़िक्रमंद हैं तो फिर आपको ईको-फ्रेंडली कार ख़रीदनी चाहिए, जिसके लिए ना सिर्फ़ आपको आम कारों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा क़ीमत चुकानी होगी, साथ में वो कम ताक़तवर भी होगी।
और ये उदाहरण केवल भारत का ही नहीं रहा। जहां पर रेवा बनती रही है। जो छोटी है, मंहगी है और हाल हाल तक नेटवर्क भी बहुत तगड़ा नहीं रहा। यही नहीं भारत के अलावा भी ये कई देशों में बिकती थी लेकिन अब यूके में इसकी बिक्री बंद है। वहीं ईको फ्रेंडली के नाम पर दो जापानी कंपनियों हौंडा और टोयोटा ने हाइब्रिड कारों को भारत में उतारा तो लेकिन क़ीमत ऐसी रही जिसे देखकर ग्लोबल की जगह मगज़-वार्मिंग हो जाए।
ख़ैर आज की जो सच्चाई है उससे भी रूबरू हो जाते हैं। आज पर्यावरण पर लोगों की चिंता कहीं ज़्यादा बढ़ चुकी है। लोग जागरुक हो चुके हैं और साथ में प्रकृति के गुस्से को कहीं नज़दीक से देख पा रहे हैं, चाहे वो सुनामी हो, ज्वालामुखी हो या फिर धरती के तापमान में बढ़ोत्तरी । ऐसे में दुनिया वाले ये तो समझ ही रहे हैं कि अब नहीं तो फिर कभी नहीं। कार कंपनियां भी ये सच्चाई समझ चुकी हैं। और इसीलिए हम आने वाले कुछ सालों में ढेरों ईको-फ्रेंडली गाड़ियां देखने वाले हैं। वो कारें जो केवल बिजली से चलेगी, वो जो बिजली और तेल से चलेगी और वो भी जो चलेगी तो पारंपरिक ईंधन से ही लेकिन ढेर सारा माइलेज देगी।

लेकिन फ़िलहाल केवल ईको फ्रेडली गाड़ियों की बात करें तो कुछेक चुनिंदा कारों का ज़िक्र मैं ज़रूर करना चाहूंगा। जिनमें से एक निसान की लीफ़ है। ये एक ऐसी इलेक्ट्रिक कार है जो बड़े पैमाने पर बाज़ार में उतरी है। अमेरिका, -जापान और यूरोप में भी। और ख़ास बात ये कि लगभग आम कारों जैसे इस मॉडल की बैट्री एक चार्ज में लगभग 175 किमी की रेंज का वायदा करती है । यानि पहले के 80 किमी के मुक़ाबले ये एक बड़ी उपलब्धि है। और पेट्रोल से तुलना पर इसकी माइलेज 40 किमीप्रतिलीटर से ऊपर आती है।

वैसे ही एक समय में इलेक्ट्रिक कारों को ख़त्म करने के आरोप को झेलने वाली जेनरल मोटर्स फिर से भरोसा कर रही है एक हाइब्रिड इलेक्ट्रिक कार पर। इस कार का नाम है वोल्ट। 90 के दशक में जेनरल मोटर्स ने भी इलेक्ट्रिक कारें बनाई थी लेकिन फिर उस प्रोजेक्ट को बीच में ही छोड़ दिया गया था। अब रिसेशन के बाद वोल्ट में शेवरले और जेनरल मोटर्स को अपनी भविष्य नज़र आ रहा है। इस कार की भी बिक्री चालू हो चुकी है।
एक और अहम घटना इसी से जुड़ी मुझे लगती है वो है पोर्शे की जीटी 3 एस। ये एक ऐसी हाइब्रिड होगी जो असल स्पोर्ट्स कारों को मात देगी। हालांकि कई इलेक्ट्रिक स्पोर्ट्स कौंसेप्ट और भी पेश हुए हैं ग्लोबल मार्केट में। जैसे निसान की ही ईएस फ़्लो है, जो स्पोर्ट्स कारों की तरह 5 सेकेंड में 100 की रफ़्तार पकड़ लेती है। लेकिन पोर्शे की तरफ़ से ऐसी कोशिश एक बयान है कि कैसे आने वाले वक़्त में घोर स्पोर्ट्सकार प्रेमी भी ईकोफ़्रेंडली मोड में जाने वाले हैं।
इसके अलावा आपको शायद याद हो कि कई मोटरस्पोर्ट्स ईवेंट में अब बायो-फ़्यूल का इस्तेमाल होने लगा है। जैसे मुझे याद है कि फ़ोक्सवागन की एक रेसिंग सीरीज़ है विदेशों में , शिरोको कप। जिसमें फ़ोक्सवागन शिरोको कारें भागती हैं, जैसे भारत में पोलो कप है । तो दो साल पहले जब पोलो कप का पहला नज़ारा देखने मैं पहुंचा था तो वहां पर कंपनी ने एक बहुत ही दिलचस्प पहल के बारे में भी ऐलान किया था। और वो था बायोगैस पर शिरोको कप। आमतौर पर मोटरस्पोर्ट्स को प्रदूषण फैलाने वाला खेल माना जाता है। लेकिन फोक्सवागन के इंजीनियरों नें विकसित कर लिया था वो रेसिंग इंजिन जो भाग सके बायो-गैस पर। जैसे भारत में बायोगैस से स्ट्रीटलाइट्स जलते हैं।
तो अभी तक ईंको फ्रेंडली कारें पेज थ्री डिनर के दौरान बातचीत के  लिए अच्छा टॉपिक होती रही हैं, अगर आपके पास है तो अख़बारों के सप्लीमेंट में अपनी फ़ोटो छपवाने के लिए बड़ी काम की होती । यानि एक स्टेटमेंट के तौर पर। लेकिन अब हाल फ़िलहाल में रिसेशन, तेल के क़ीमतों और ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए लगभग सभी बड़ी ग्लोबल कार कंपनियां बनाने में लगी हैं एक से एक ईको फ्रेंडली कारें। और सबसे दिलचस्प बात ये कि इन कारों की अहमियत सभी समझ रहे हैं। और लग रहा है कि आने वाला कल थोड़ा बेहतर औऱ साफ़ होगा।
(प्रभात ख़बर में प्रकाशित)

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