February 12, 2013

Cars on Fire ....


जब नई टेक्नॉलजी से कारें ज़्यादा से ज़्यादा सेफ़ बन रही हैं फिर क्यों जल रही हैं कारें ?

एक बार फिर से हमने दिल्ली में एक ख़बर देखी है, अगर बारीकी से देखें तो दिल दहलाने वाली। दिल्ली के बीचोबीच गुलाबी बाग के एक सीएनजी स्टेशन पर खड़ी एक कार के बोनेट के भीतर से धुआं निकलना शुरु हो गया। किसी देखने वाले ने कहा कि छोटा धमाका हुआ किसी ने कहा नहीं हुआ। लेकिन उसके बाद जो भी हुआ वो सबने देखा। धुआं आग की लपटों में बदला और कार पूरी तरह से धू-धू कर जलने लगी। सीएनजी स्टेशन पर हड़कंप मच गया। वहां सीएनजी भरवाने आईं कार-ड्राइवरों में खलबली मच गई और वो अपनी अपनी कारों को लेकर बाहर की ओर भागे। कार ड्राइव कर रही महिला की किस्मत अच्छी थी कि वो वक्त रहते कार से बाहर निकल आई और बच गई। और बाकियों की किस्मत अच्छी थी कि कार में आग लगने के बावजूद सीएनजी स्टेशन को कोई नुकसान नहीं पहुंचा और एक दुर्घटना बड़ा हादसा बनने से बच गई। कार में आग लगने की ये कोई पहली घटना नहीं थी  और अब दिल्ली के आसपास के इलाकों की बात करें तो अनोखी भी नहीं रही है। आए दिन कार में आग लगने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। और कई बार जानलेवा भी। जब कार में आग इतनी तेज़ी से लगती है कि कार के अंदर बैठे सवारों को निकलने का वक्त भी नहीं मिला। और जब ध्यान से देखें तो ये घटनाएं वाकई ज़्यादा होने लगी हैं।
जिस ज़माने में हम बड़े हुए थे उस दौरान गाड़ियों में आग लगने की घटनाएं शायद ही ऐसे सुनने को मिलती थीं। और वो याद करके सवाल उठता है ज़हन में कि आख़िर क्यों कारें इतनी असुरक्षित होती जा रही हैं। ऐसा नहीं कि अख़बारों और टीवी चैनल्स की वजह से ये संख्या ज़्यादा लगती है । सड़कों पर चलते हुए आपको हफ़्ता-दस दिन में एक ना एक गाड़ी जली हालत में सड़क किनारे दिख जाती है। जो एक चौंकाने वाली सच्चाई है। ऐसा कैसे हो रहा है कि एक तरफ़ कारें पहले से ज़्यादा सुरक्षित तो हो रही हैं, ब्रेक, एयरबैग, ट्रैक्शन कंट्रोल, बेहतर बॉडी और क्रेश टेस्टिंग के साथ, लेकिन दूसरी ओर एक बहुत ही बुनियादी सवाल का जवाब अब भी नहीं मिल पा रहा है। कारों में लगने वाली आग। याद होगा कि नैनो में लगी आग ने उसकी छवि कितनी ख़राब की। लेकिन सच्चाई है कि हर कंपनी की कार में आग लग रही है।

कई बार तो रिपोर्ट आती है कि कार का सेंट्रल लॉकिंग सिस्टम ही लॉक हो जाता है। यानि पैसेंजर आग लगने की हालत में अंदर से दरवाज़ा नहीं खोल पाते और अंदर फंस कर जान गंवा देते हैं। हालांकि इस घटना को कई कार के इंजीनियर ग़लत भी बताते हैं। उनके हिसाब से सेंट्रल लॉकिंग आग लगने की हालत में भी लॉक नहीं होती और लोग किसी और वजह से फंसते हैं । जानकार मानते हैं कि कारों के अंदर प्लास्टिक का इस्तेमाल हद से ज़्यादा बढ़ गया है और ऐसे में एक आग फैलने की रफ़्तार बहुत बढ़ जाती है। चाहे वो बोनेट के भीतर हो या डैशबोर्ड। कार कंपनियां कई बार कहती है कि लोकल बाज़ार से सीएनजी किट फिट करवाने से आग लगती है, कई सीएनजी लगाने वाली कंपनियां कहती हैं ऑथोराइज़्ड फिटिंग सेंटर से फिट ना करवाने से आग लगती है। कई बार कार ग्राहकों पर लापरवाही का आरोप लगता है, कि ध्यान से मेंटेनेंस ना करने पर आग लग जाती है। हालांकि जिस घटना का मैंने पहले ज़िक्र किया उस कार मालिक का दावा था कि पिछले हफ़्ते ही उसने कार की सर्विसिंग करवाई थी।
लेकिन यहां पर आरोप-प्रत्यारोप के बीच जो मुद्दा ठोकर खा रहा है वो है कारों में आग। यानि सरकार को इस मुद्दे पर अब पहले से कहीं गंभीरता से सोचना चाहिए। क्यों आग की घटनाएं बढ़ी हैं, किसकी ग़लती है ? क्या सुरक्षित इंजीनियरिंग की अनदेखी हो रही है ? क्या कंपनियां सस्ती और असुरक्षित पार्ट-पुर्ज़े लगा रही हैं ? क्या ग्राहक वाकई लापरवाही ख़ुद कर रहे हैं और अपनी जान से खेल रहे हैं ? और ये मामला केवल सीएनजी एलपीजी का नहीं, क्योंकि बाकी आम पेट्रोल-डीज़ल कारें भी तो पहले से कहीं ज़्यादा आग पकड़ रही हैं। तो सवाल सबकी सुरक्षा का है...जवाब का बहुत समय से इंतज़ार है।

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