October 24, 2011

its (E)on...


तो पिछली बार की कहानी से आगे की बात आज करता हूं। वो इसलिए क्योंकि बीते हफ़्ते ह्युंडै ने अपनी ईयौन लौंच कर दी है, और हफ़्ता ख़त्म होने से पहले मुझे इस कार को उदयपुर में टेस्ट ड्राइव करने का भी मौक़ा मिला। जिसके बाद इस कार के सबसे चर्चित पहलू के बारे में और बारीकी से सोच पाया। पहले इसकी क़ीमत और फ़ीचर्स। ईयौन भारत में ह्युंडै की सबसे छोटी और सबसे सस्ती कार है। 814 सीसी के इंजिन वाली ईयौन के छह वेरिएंट आए हैं, 2 लाख 69 हज़ार रु से 3 लाख 71 हज़ार रु के एक्सशोरूम क़ीमत के साथ। कई ऐसे फ़ीचर्स के साथ जो 800 सीसी सेगमेंट में आम नहीं हैं, जिनमें से एक लगा मुझे एडजस्टेबल स्टीयरिंग, बहुत आरामदेह आगे की सीटें। इसका आकार बड़ा है अपने सेगमेंट के हिसाब से। ह्युंडै की वैल्यू-फॉर-मनी डिज़ाइन के तरीके ने इस कार में कई प्रैक्टिकल जगहें भी निकाली है, डैश के ऊपर, बड़ा ग्लव-बॉक्स, पानी के बॉटल के लिए जगह वगैरह। लगेज स्पेस भी बेहतर लगेगी अपने सेगमेंट से। लेकिन उदयपुर से आबू रोड की तरफ़ हाइवे पर इसे लेकर निकला तो फिर याद आ गया कि इसमें लगा है 814 सीसी इंजिन, जिसकी ताक़त सिर्फ़ 55 बीएचपी की है। इसे लेकर मैं निकला था उदयपुर से आबू रोड पर। बहुत अच्छा-ख़ूबसूरत हाईवे लेकिन उल्टी दिशा से आने वाली गाड़ियों से भरी। लेकिन ज़्यादा दिक्कत नहीं रही क्योंकि ये कार आराम-आराम से रफ़्तार पकड़ती है और सौ की रफ़्तार तक जाते-जाते वक्त लगाती है, साफ़ था कि बनावट, ड्राइव और फ़ीचर्स इस कार को एक शहरी कार बनाते हैं, हाईवे की गाड़ी नहीं।


इस कार को ध्यान से देखकर, बारीकी से जांचकर ये लगा कि मीडिया में या ज़्यादातर पत्रकारों के बीच इस कार को लेकर जो धारणा थी वो सही नहीं थी। दरअसल इसके इंजिन क्षमता के ऊपर कुछ ज़्यादा ही ध्यान जा रहा था, जिसे देखकर ये सोचना बहुत स्वाभाविक था कि सभी इसकी तुलना मारुति 800 या ऑल्टो से होगी। और चूंकि मारुति 800 अब मेट्रो से निकल चुकी है, सब यही सोच रहे थे कि ईयौन आते ही खेल ख़त्म कर देगी ऑल्टो को। इसके पीछे ह्युंडै के डिज़ाइन और इंजीनियरिंग पर भरोसा भी था और साथ में ये सच्चाई भी कि ऑल्टो अब पुरानी हो चुकी है। लेकिन मुझे ये लगा कि ये तुलना थोड़ी ग़लत है। ईयौन ऑल्टो को पीटने के लिए नहीं बनी है, ऑल्टो ख़रीदने वालों की उम्मीदें और ज़रूरतें कुछ और होती है, वो वैल्यू फॉर मनी के पुजारी होते हैं।
अगर हम देखें ईयौन की क़ीमत तो पता चलेगा कि ये लगभग वही है जो मौजूदा सैंट्रो की है। इयौन आ रही है 2.69 से 3.71 लाख रु के दिल्ली, एक्सशोरूम क़ीमत में, और सैंट्रो आती है 2.80 से 3.95 लाख रु के बीच। और इस क़ीमत से ये समझना आसान है कि कंपनी कहीं ना कहीं इसे सैंट्रो के विकल्प के तौर पर देख रही है, जिसे भारत में आए अब 13 साल हो गए हैं। ऊपर से ईयौन की एआरएआई से मापी माइलेज भी 21.4 किमीप्रतिलीटर की आई है। यानि ईयोन एक तरीके से सैंट्रो की रिप्लेसमेंट हो सकती है, लेकिन कंपनी ने इस बात से इंकार किया है। कंपनी सैंट्रो को बंद नहीं कर रही है, और ये देखना दिलचस्प होगा कि जो ग्राहक हज़ार सीसी की सैंट्रो ख़रीदने निकलेंगे वो क्या 800 सीसी की ईयौन को लेना चाहेंगे ?

October 21, 2011

किधर गई Kizashi !!


हाल ही में उदयपुर गया था...ईयौन के टेस्ट ड्राइव पर..और उदयपुर से आबू रोड पर ड्राइव करते हुए एक और कार की याद आई ...जिसे इसी रूट पर चलाया था...और फिर सोचा कि कहां गई वो कार...फिर खोज कर निकाला मैंने जो उस कार के बारे में पहले पहल लिखा था...वही शेयर कर रहा हूं...




सबसे महंगी मारुति
दिल्ली से उड़ते वक्त ही लगा कि ये फ़्लाइट कोई आम फ़्लाइट नहीं होने वाली है। पहले तो जेट -लेट फिर जब उदयपुर पहुंचे तो फिर हमें लटका दिया गया झीलों के इस शहर के आसमान मेंक्योंकि कोई वीवीआईपी उड़ान भरने वाले हैं...पायलेट ने बताया हवा में लटकने से ईंधन ख़त्म होने वाला है तो तेल भराने हम अहमदाबाद पहुंचे और फिर उतरे उदयपुर । और इन सबके बाद लगा कि फ़्लाइट कैसे आम हो सकती थी जबकि जिस कार को चलाने हम पहुंचे थे वो इतनी ख़ास थी।
जिस कंपनी ने हिंदुस्तानियों को पहली पीपल्स कार दीकार रखना और ना जाने कितनों को (जिनमें मैं भी शामिल हूंकार चलाना सिखाया...जो किफ़ायती और पैसा वसूल कार बनाने के लिए जानी जाती है। वो लेकर आ रही है एक लग्ज़री कारयानि मैं चलाने वाला था सबसे महंगी मारुति। जिसका नाम है किज़ाशी।
पहली बार किज़ाशी को कई ऑटो एक्स्पो पहले देखा थातब एक कौसेंप्ट कार थी। पिछले साल के एक्स्पो में एक ख़ूबसूरत कार बन कर तैयार खड़ी दिखी। और उदयपुर से माऊंट आबू की तरफ़ जाती सड़क पर मेरी पहली किज़ाशी ड्राइव हुई। ख़ूबसूरती और डिज़ाइन में काफ़ी आकर्षक लगी किज़ाशी। आकर्षकआरामदेहख़ूब जगह से साथये मस्ती भर ड्राइव भी महसूस करवा रही थी। पहले मैंने मैन्युअल ट्रांसमिशन वाली किज़ाशी चलाई और फिर आटोमैटिक। मैन्युअल बेहतर लगी। धीरे धीरे कार ने रंग पकड़ा और लगा कि तेज़ रफ़्तार मेंमोड़ पर और घुमावदार रास्तों पर बहुत संतुलन और पकड़ के साथ भाग रही थी। ड्राइव हल्की थी लेकिन विश्वास के साथ। कार वैसे बड़ी भी हैकई फ़ीचर्स भी हैंसेफ़्टी से लेकर आराम के। लेकिन उन मामलों में कोई क्रांतिकारी नयापन नहीं लगेगा। मेरे लिए सबसे दिलचस्प बात एक ही थी वो ये कि कार मारुति सुज़ुकी की है।
कंपनी ने जिस तरीके से जिस सेगमेंट में कार को पेश करने की बात की हैयानि क़ीमत और पोज़िशनिंग के हिसाब से। वो काफ़ी पेचीदा मामला है। पहले तो इसमें 2400 सीसी का इंजिन हैजो कैम्री औऱ अकॉर्ड जैसी कारों में लगे इंजिन के बराबर है। फिर ये एक सीबीयू होगीयानि पूरी तरह से बनी बनाई इंपोर्ट होती है। और जो कारें पूरी बनी इंपोर्ट होती हैं उन पर कस्टम ड्यूटी 110 फीसदी के आसपास होता है। यानि अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में जो क़ीमत है उससे दुगनी। तो फिर क़ीमत के हिसाब से भी कैम्री और अकॉर्ड जैसी। फ़िलहाल अंदाज़ा 16-19 लाख रु का लगाया जा रहा है। लेकिन इंजिन और क़ीमत के अलावा दो मुद्दे और भी हैं। एक तो इसका साइज़बनावट और फ़ीचर्स । किज़ाशी उन दोनों कारों से छोटी है और इसे देखकर लगता है कि ये हौंडा सिविककोरोला आल्टिस और शेवरले क्रूज़ के सेगमेंट में ज़्यादा बेहतर तरीके से फिट होती है । तो थोड़ा तकनीकी कन्फ़्यूज़न इसका था। लेकिन इसके साथ और सवाल है जो इन सब पर भारी है...वो ये कि क्या हिंदुस्तानी ग्राहक मारुति कार के लिए इतने पैसे देंगे
?कई सालों पहले एक सीरीज़ शुरू की थी हमने...कूल करियरजिसके एक एपिसोड के लिए मैं मिला फ़ैशन डिज़ाइनर रवि बजाज से। बात निकलते-निकलते डिजाइनर कपड़ों की क़ीमतों पर पहुंची तो उन्होंने कहा कि इस डिज़ाइनर इलाक़े में या कहें ऐसे प्रीमियम वाले मार्केट में इमेज बड़ी ख़ास चीज़ होती है और उसी हिसाब से क़ीमत भी। कोई भी डिज़ाइनर पहले सस्ते कपड़ों का रेंज नहीं लाता है। पहले मंहगे से शुरू करता है और बाद में कभी सस्ता रेंज । नहीं तो ब्रांडिंग वैसी नहीं बनेगीएक्सक्लूसिविटी कहां से आएगी। कारों का ये सेगमेंट भी मुझे ऐसा ही लगता है। इस सेगमेंट के ग्राहक केवल लग्ज़री कार से ज़्यादा ख़रीदते हैं एक इमेज और एक स्टेटमेंट को। और अभी तक के गुणा-भाग में ये मुश्किल लग रहा है मारुति के लिए किज़ाशी के साथ।
* Published
(वैसे आपको बता दूं कि पिछले महीने 14 किज़ाशी बिकी थी)

The Curious Case of Pratap Singh Thakur ;)


एनडीटीवी के प्रताप सिंह ठाकुर ने देश की सबसे नामी रैली रेड-डी-हिमालया में जीत हासिल की है। प्रताप, अपने नैविगेटर अमित गोसाईं के साथ स्टॉक कार, एक्सपर्ट कैटगरी में पहले पोज़ीशन पर रहे। 13वीं रेड डी हिमालया रैली के तहत इस साल 6 दिन में 2000 किमी का सफ़र तय करना था, जिस दूरी को छह लेग में बांटा गया था। शिमला से शुरू होकर, मंडी, चंबा होते हुए रैली जम्मू कश्मीर में जाती है और द्रास, करगिल के रास्ते हिमालय की गोद में दौड़ने वाली इस रैली को देश की सबसे मुश्किल रैली कहा जाता है। इस साल एक्सट्रीम और एडवेंचर कैटेगरी के लिए दो रुट तय किए गए थे, जिसकी शुरूआत 11 अक्टूबर को हुई थी। इस रैली में कुल पांच कैटेगरी होती है एक्स्ट्रीम कैटेगरी में दो कारों और एक बाइक्स की रैली होती है, वहीं एसयूवी और कारों के लिए एडवेंचर ट्रायल रेस होती है। एक्सट्रीम कैटगरी में सुरेश राणा और अश्विन नाइक की जोड़ी ने जीत हासिल की।

October 10, 2011

5 डबल ओह ( हिंदी में )



जब ज़रूरत पूरी हो जाती है तब शौक की शुरूआत होती है। ये बात इस बार दोनों पार्टियों पर लागू हो रही है।ग्राहकों पर भी और कंपनी पर भी। महिंद्रा, एक ऐसी गाड़ी कंपनी थी जिसकी गाड़ियां थीं तो बहुत नामी लेकिन वो नाम था ऑफ़रोडर गाड़ियों की वजह है, यानि ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर चलने वाली ठोस सवारी। फिर कंपनी को फिर ज़रूरत थी एक अर्बन, शहरी एसयूवी की, यानि स्कोर्पियो की। और उसे कंपनी ने बख़ूबी पूरा किया, अपनी पहचान बदलने के लिए। और अब कंपनी कुछ शौकीनों के ज़रिए अपने शौक पूरे कर रही है। नई XUV 500 लाकर। वहीं ग्राहक हो रहे हैं शौकीन नई एसयूवी के। ख़ैर। महिंद्रा ग्लोबल बाज़ार के लिए लेकर आई है अपनी नई XUV । तमाम नए फ़ीचर्स, आकार और इंजीनियरिंग का इस्तेमाल, और धनबाद से लेकर न्यूयॉर्क तक के ग्राहकों के लिए, जो विदेशी गाड़ियों में लगभग स्टैंडर्ड हो गए हैं। जैसे ESP , जो गाड़ी की स्टेबिलिटी बनाए रखता है। वहीं ABS है EBD के साथ। हिल डिसेंट कंट्रोल भी है, मुश्किल ढलानों से आराम से उतरने के लिए। यानि मुश्किल हालात में संतुलन और पकड़ बनाने के लिए तमाम इंतज़ाम कर दिए हैं कंपनी ने इसमें। साथ में मोनोकॉक डिज़ाइन। यानि कार की बॉडी अलग अलग हिस्सों में ना बन कर एक ही बार में बनती है। इसमें लगा इंजिन जाना पहचाना है, एम-हॉक सीरीज़ का 2.2 लीटर इंजिन, जिससे ताक़त 140 हॉर्सपावर की मिलती है।

महिंद्रा लगभग 4 सालों से इस एसयूवी पर काम कर रही थी। जिससे वो दुनिया भर में एक मल्टीटैलेंटेड एसयूवी बनाने वाली कंपनी के तौर पर पहचानी जाए। और आख़िरकार वही सवारी आई है, जिसके लिए कंपनी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। नाम भी इसका ऐसा ही चुन कर रखा है, जिसमें एक्स और 5 को कंपनी अपने लिए लकी मानती है।
फ़िलहाल क़ीमत इनविटेशनल है, यानि लुभाने के लिए, यानि कुछ महीनों के लिए। दिल्ली में इसकी एक्स शोरूम क़ीमत 10 लाख 80 हज़ार से 12 लाख 88 हज़ार के बीच। यानि रोड टैक्स वगैरह लगाने के बाद भी इसकी ऑनरोड क़ीमत ज़रूर ऐसी होगी जो परेशान करेगी टाटा आरिया जैसी गाड़ियों को बल्कि उन सभी गाड़ियों को जो इस क़ीमत में आ रही हैं।
हालांकि महिंद्रा की स्कोर्पियो हिट तो बहुत है लेकिन कई लोगों से इसके अंदर की जगह की शिकायत ज़रूर सुनने को मिलता है। इस नई एसयूवी के साथ वो शिकायत ज़रूर दूर हो गई है। लेकिन कंपनी कह रही  है कि वो एक्सयूवी से बड़ी एसयूवी नहीं बनाएगी, क्योंकि वो इलाका महिंद्रा अपनी कोरियन कंपनी सैंगयौंग के लिए छोड़ रही है जो पहले ही अपनी एसयूवी के लिए जानी जाती है। इस सेगमेंट इस एंट्री ने वाकई हलचल मचाई है क्योंकि एसयूवी का बाज़ार लगातार बढ़ा है भारत में, और 10 से 16-17 लाख रू वाले सेगमेंट में एसयूवी ना के बराबर हैं, टाटा आरिया को छोड़कर। वहीं ये सफ़ारी और स्कोर्पियो वाले सेगमेंट से भी कुछ ग्राहकों को भी खींच लेगी क्योंकि उस सेगमेंट में लंबे समय से ग्राहक कुछ नए का इंतज़ार कर रहे हैं। जिसमें सबसे ज़्यादा इंतज़ार दो ही गाड़ियों का हो रहा था, एक तो आ ही गई और दूसरी जिसका अभी तक टेस्ट ही चल रहा है, टाटा की नई सफ़ारी मर्लिन का। जिसकी तस्वीर उम्मीद है कुछ हफ़्तों में साफ़ हो जाएगी और 2012 की शुरुआत तक आ जाएगी। और आने वाले मई तक ये दोनों गाड़ियां बहुत मस्त भागेंगी, क्योंकि उसके बाद इसी सेगमेंट में रेनॉ की डस्टर आएगी, जिसकी क़ीमत का अंदाज़ा काफ़ी कम लगाया जा रहा है। तो देखते हैं सस्ती स्पोर्ट्स यूटिलिटी वेह्किल का स्पोर्ट कितना रोमांचक होता है।

*Already Published  

October 02, 2011

No Surprise Syndrome ...


भूमिका पार्ट-1: चकित होने का भाव कैसे आता है ? मेरे हिसाब से ये प्रोसेस कुछ ऐसा होता है...मन को कुछ अच्छा लगता है, जिसे वो चुनता है और फिर उस चाकित्य के विषय के बारे में दिमाग़ जानकारियां इकट्ठा करने लगता है, और विषय की जटिलता और सादगी के आयाम को जोख कर मेरे चकित होने की इंटेसिटी तय होती है। शायद ऐसा ही कुछ होता है। 
मेरे लिए क्यों अहम है, आप अगर ये सवाल करें, तो मैं कहूंगा कि हम सबके लिए है। एक संवेदना जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए काफ़ी ज़रूरी है, मुझे लगता है कि ये हमें अपने अंदर के बच्चे को जगाए रखने में मदद करता है, मन फ्रेश रहता है । और इसी सोच से तय एजेंडा के तहत हर दिन नई-नई चीज़ों से चकित होता रहता हूं, कई बार बलधकेल कई बार अनायास। 

भूमिका पार्ट-2: ईमानदारी से कहूं गाड़ियों की दुनिया से इतने साल से जुड़ा हूं, लेकिन हाल-फ़िलहाल में नई गाडियों को देखकर चकित होने की फ्रीक्वेंसी मेरी काफ़ी कम होती जा रही थी। जिस पर पहला रिएक्शन तो मेरा ये था कि उम्र जब तीस पार हो जाती है तो मन का सीपीयू स्लो हो जाता है। हो सकता है ऐसा हुआ हो, लेकिन एक और बड़ी वजह लगी बाद में ( यक़ीन मानिए उम्र को झुठलाने के लिए बहाना नही है ये) । 
आज की तारीख़ में जब हम नई गाड़ी की बात करते हैं तो उसके नएपन का पैमाना क्या होता है। दरअसल पैमाने और नमूने में बहुत दूरी नहीं होती। जैसे पिछले मॉडल और नए मॉडल के बीच में नएपन का भेद। पिछले का फ्रंट ग्रिल टेढ़ा था, तो नए का मेढ़ा। पुराना स्टीयरिंग षटकोणीय था तो नया अष्टावक्र। पिछले की माइलेज 16.00000 थी तो नया मॉडल दे रहा है 16.0547579 किमी प्रति लीटर। और बीएचपी में 0.6789 का अभूतपूर्व उछाल। इस कार में सीट 56 एंगिल से मुड़ती है तो पिछले मे 32 एंगिल से । पहले 2 एयरबैग अब 90 एयरबैग, पहले सीट पर मसाज की सुविधा थी तो इस मॉडल में आपकी पीठ खुजलाने की भी सुविधा है। मोटरसाइकिलों में तो पूछिए ही मत। कंपनियों की माने तो हर एक नए स्टिकर से बाइक की माइलेज दुगनी और रफ़्तार तिगुनी होती जा रही है। बदलाव के नाम पर स्टिकर्स, कुछ और स्टिकर्स, जगह बच गई तो फ़ेयरिंग, एलईडी लाइट, मेंहदी, चंदन का लेप और थोड़ा आंवला। अद्भुत। 
ईमानदारी से कहूं कि इन सब का लेखाजोखा देते हुए ख़ुद को ऑटोमोबील पत्रकार से ज़्यादा मुनीम महसूस करता हूं। और ये एक बड़ी वजह है नो-सरप्राइज़ सिंड्रोम की। सालों से गाड़ियों की दुनिया में हम इंप्रोवाइज़ेशन देख रहे हैं, क्रांतिकारी इंवेशन नहीं। और भारत में तो इस असेंबली लाइन मानसिकता आजकल कुछ ज़्यादा ही दिख रही है।

मुद्दा : हुआ यों कि मैं पहुंचा हुआ था मर्सेडीज़ के म्यूज़ियम में । वहां पर खड़ी थी दुनिया की पहली ऑटोमोबील। सवा सौ साल पहले कैसी गाड़ी बनी थी ये देखकर चकित होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था मेरे पास। गोटलीब डेमलर और कार्ल बेंज़ की बनाई गाड़ियों को देखकर मज़ा आता है, पहली नज़र में लगता है कि कोई छोटी बग्घी है जिसके घोड़े कहीं बांधे गए हैं। इंजिन का आकार इतना बड़ा, स्टीयरिंग की जगह। सबकुछ मज़ेदार। 
साथ में ये जानना कि दुनिया की पहली लॉरी जब तैयार की थी डेमलर कंपनी ने तो उसका काम क्या था। जो तस्वीर थी वो तो बता रही थी बियर का ट्रांसपोर्टेशन । जिसे देखकर अचानक मौजूद सभी लोगो में ताज़गी की लहर दौड़ गई । 
फिर चकित हुआ उस मड फ़्लैप को देखकर जो कि लगी थी एक कार में पहली बार। जिससे कि पहिए से कीचड़ उछलकर ना लगे। वहीं मौजूद जर्मन कैमरापर्सन जिसका नाम था हैरल्ड उसने बड़ी दिलचस्प बात बताई, जर्मन अभी भी मडफ़्लैप के लिए जो शब्द इस्तेमाल करते हैं उसका मतलब है घोड़े की लीद से बचाने वाली पट्टी । 
इस म्यूज़ियम में घूम कर लगा कि गाड़ियों के बारे में हम जैसा सोचते हैं, महसूस करते हैं वो किसी आम यूरोपियन से कितना अलग होता है। क्योंकि कुछ राजा-महाराजाओं को छोड़ दें तो ज़्यादातर हिंदुस्तानियों के लिए कार उनके सेंसिबिलिटी का हिस्सा बनी एंबैसेडर, फ़िएट और मारुति 800 के बाद। जिनमें से तीनों अपने शाश्वत रंग-रूप में जैसी थीं वैसी ही रहीं। जबकि यूरोप में लोगों ने कारों को एक एक क़दम बढ़ाते देखा है। बड़ी से बड़ी चीज़ें जैसे इंजिन और सुरक्षा से लेकर छोटे-छोटे बदलाव, लैंप और मडफ़्लैप तक। और ये किसी भी कुंठा के तहत की गई तुलना नहीं थी, एक ऑब्ज़र्वेशन था, क्योंकि हमने गाड़ियों के विकास का एक दूसरा ही साइकिल देखा है। 
इन्हीं सभी गाड़ियों को देखते हुए एक वक्त ऐसा आया जब मन में सेकेंड के आधे हिस्से में ही गाड़ियों के सवा सौ साल के सफ़र की पूरी फ़िल्म गुज़र जाती है। तमाम रोल्स, मर्सेडीज़, फेरारी और नैनो, सामने से आकर निकल जाते हैं, बताते हुए कि हमने एक लंबा सफ़र तय किया है, लंबी कहानी है ये, लेकिन पिक्चर अभी बाकी है। 

*Published

October 01, 2011

Ohhh its XUV500 (double Oh) !!

कुछ बेसिक जानकारियां महिंद्रा XUV 500 के बारे में ......

2.2litre mHawk diesel engine 

140bhp with 330Nm torque

6-speed transmission 

0-60kmph in 5.4 seconds

15.1 kms per litre (ARAI-certified).

W6- Rs.10.80 Lacs

W8 -Rs.11.95 Lacs 2WD model 

 W8 All Wheel Drive (AWD) Rs.12.88 Lacs


3 variants & 7 shades