हाल ही में उदयपुर गया था...ईयौन के टेस्ट ड्राइव पर..और उदयपुर से आबू रोड पर ड्राइव करते हुए एक और कार की याद आई ...जिसे इसी रूट पर चलाया था...और फिर सोचा कि कहां गई वो कार...फिर खोज कर निकाला मैंने जो उस कार के बारे में पहले पहल लिखा था...वही शेयर कर रहा हूं...
सबसे महंगी मारुति
दिल्ली से उड़ते वक्त ही लगा कि ये फ़्लाइट कोई आम फ़्लाइट नहीं होने वाली है। पहले तो जेट -लेट , फिर जब उदयपुर पहुंचे तो फिर हमें लटका दिया गया झीलों के इस शहर के आसमान में, क्योंकि कोई वीवीआईपी उड़ान भरने वाले हैं...पायलेट ने बताया हवा में लटकने से ईंधन ख़त्म होने वाला है तो तेल भराने हम अहमदाबाद पहुंचे और फिर उतरे उदयपुर । और इन सबके बाद लगा कि फ़्लाइट कैसे आम हो सकती थी जबकि जिस कार को चलाने हम पहुंचे थे वो इतनी ख़ास थी।
जिस कंपनी ने हिंदुस्तानियों को पहली पीपल्स कार दी, कार रखना और ना जाने कितनों को (जिनमें मैं भी शामिल हूं) कार चलाना सिखाया...जो किफ़ायती और पैसा वसूल कार बनाने के लिए जानी जाती है। वो लेकर आ रही है एक लग्ज़री कार, यानि मैं चलाने वाला था सबसे महंगी मारुति। जिसका नाम है किज़ाशी।
पहली बार किज़ाशी को कई ऑटो एक्स्पो पहले देखा था, तब एक कौसेंप्ट कार थी। पिछले साल के एक्स्पो में एक ख़ूबसूरत कार बन कर तैयार खड़ी दिखी। और उदयपुर से माऊंट आबू की तरफ़ जाती सड़क पर मेरी पहली किज़ाशी ड्राइव हुई। ख़ूबसूरती और डिज़ाइन में काफ़ी आकर्षक लगी किज़ाशी। आकर्षक, आरामदेह, ख़ूब जगह से साथ, ये मस्ती भर ड्राइव भी महसूस करवा रही थी। पहले मैंने मैन्युअल ट्रांसमिशन वाली किज़ाशी चलाई और फिर आटोमैटिक। मैन्युअल बेहतर लगी। धीरे धीरे कार ने रंग पकड़ा और लगा कि तेज़ रफ़्तार में, मोड़ पर और घुमावदार रास्तों पर बहुत संतुलन और पकड़ के साथ भाग रही थी। ड्राइव हल्की थी लेकिन विश्वास के साथ। कार वैसे बड़ी भी है, कई फ़ीचर्स भी हैं, सेफ़्टी से लेकर आराम के। लेकिन उन मामलों में कोई क्रांतिकारी नयापन नहीं लगेगा। मेरे लिए सबसे दिलचस्प बात एक ही थी वो ये कि कार मारुति सुज़ुकी की है।
कंपनी ने जिस तरीके से जिस सेगमेंट में कार को पेश करने की बात की है, यानि क़ीमत और पोज़िशनिंग के हिसाब से। वो काफ़ी पेचीदा मामला है। पहले तो इसमें 2400 सीसी का इंजिन है, जो कैम्री औऱ अकॉर्ड जैसी कारों में लगे इंजिन के बराबर है। फिर ये एक सीबीयू होगी, यानि पूरी तरह से बनी बनाई इंपोर्ट होती है। और जो कारें पूरी बनी इंपोर्ट होती हैं उन पर कस्टम ड्यूटी 110 फीसदी के आसपास होता है। यानि अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में जो क़ीमत है उससे दुगनी। तो फिर क़ीमत के हिसाब से भी कैम्री और अकॉर्ड जैसी। फ़िलहाल अंदाज़ा 16-19 लाख रु का लगाया जा रहा है। लेकिन इंजिन और क़ीमत के अलावा दो मुद्दे और भी हैं। एक तो इसका साइज़, बनावट और फ़ीचर्स । किज़ाशी उन दोनों कारों से छोटी है और इसे देखकर लगता है कि ये हौंडा सिविक, कोरोला आल्टिस और शेवरले क्रूज़ के सेगमेंट में ज़्यादा बेहतर तरीके से फिट होती है । तो थोड़ा तकनीकी कन्फ़्यूज़न इसका था। लेकिन इसके साथ और सवाल है जो इन सब पर भारी है...वो ये कि क्या हिंदुस्तानी ग्राहक मारुति कार के लिए इतने पैसे देंगे
?कई सालों पहले एक सीरीज़ शुरू की थी हमने...कूल करियर, जिसके एक एपिसोड के लिए मैं मिला फ़ैशन डिज़ाइनर रवि बजाज से। बात निकलते-निकलते डिजाइनर कपड़ों की क़ीमतों पर पहुंची तो उन्होंने कहा कि इस डिज़ाइनर इलाक़े में या कहें ऐसे प्रीमियम वाले मार्केट में इमेज बड़ी ख़ास चीज़ होती है और उसी हिसाब से क़ीमत भी। कोई भी डिज़ाइनर पहले सस्ते कपड़ों का रेंज नहीं लाता है। पहले मंहगे से शुरू करता है और बाद में कभी सस्ता रेंज । नहीं तो ब्रांडिंग वैसी नहीं बनेगी, एक्सक्लूसिविटी कहां से आएगी। कारों का ये सेगमेंट भी मुझे ऐसा ही लगता है। इस सेगमेंट के ग्राहक केवल लग्ज़री कार से ज़्यादा ख़रीदते हैं एक इमेज और एक स्टेटमेंट को। और अभी तक के गुणा-भाग में ये मुश्किल लग रहा है मारुति के लिए किज़ाशी के साथ।
* Published
(वैसे आपको बता दूं कि पिछले महीने 14 किज़ाशी बिकी थी)
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