January 05, 2015

रिनॉ क्विड जब चलाई मैंने...

आमतौर पर कभी ऐसा नहीं होता है। होने की संभावना भी कम है। कारों की दुनिया में घूमते टहलते इतने साल हो चुके हैं लेकिन इतने सालों में कभी भी नहीं देखा कि कौंसेप्ट कार जो वाकई कौंसेप्ट कार हैं वो ऐसे सामने आएं, हमारे हाथ लगें और उन्हें चलाने का मौक़ा भी मिले। कौंसेप्ट कारें आम तौर पर कंपनियों का विज़न डॉक्यूमेंट होती हैं, कार डिज़ाइनरों की क्रिएटिविटी का एक कोलाज होता है। जिनमें बहुत सी कल्पनाओं और अंदाज़े की भविष्यवाणियां होती हैं। यानि वो गाड़ियां जो आने वाले दिनों की कारों और उनके फ़ीचर्स की बात करें, अंदाज़ा लगाएं और उनको एक कार में समेट कर लाए। यही वजह है कि ज़्यादातर कार जो कौंसेप्ट अवतार में हमारे सामने आती हैं वो चलने की हालत में नहीं होती हैं। हालांकि कई बार कार कंपनियां थोड़ी चालाक़ी दिखाती हैं और उन कारों को कौंसेप्ट के तौर पर ले आती हैं जो दरअसल प्रोडक्शन में उतरने को तैयार होती हैं लेकिन कंपनी अपने कांपिटिशन को बताना नहीं चाहती हैं कि वो इस कार को जल्द लौंच करने वाली है । लेकिन वो अपवाद हैं। उनका ज़िक्र ऐसे ही कर दिया। दरअसल ये सब भूमिका इसलिए क्योंकि मैं आपको बताना चाहता हूं कि पहली बार मेैंने एक कौंसेप्ट कार चलाई । वो जो वाकई कौंसेप्ट कार है। रिनॉ की क्विड। ये कब आएगी बाज़ार में, आएगी भी कि नहीं ये पता नहीं। वो कार जिसे आप देखें तो पहली नज़र में ही लगेगा कि ये कोई फ़िल्मी स्पेस शिप है या बच्चों की कोई खिलौना कार है जो अचानक किसी तरीके से बड़ी हो गई है। अंदर से देखेंगे तो लगेगा कि किसी टाइम मशीन में चले गए हैं जिसमें बैठ कर किसी भी युग में जा सकते हैं। और रिनॉ ने इसे दिल्ली के ऑटो एक्स्पो में दर्शकों के सामने पेश किया था। और उसके बाद मुझे वाकई पता नहीं था कि इसे चलाने का मौक़ा मिलने वाला है। 
दरअसल रिनॉ कार कंपनी की भारत एंट्री कोई धमाकेदार नहीं रही है, महिंद्रा के गठजोड़ और लोगन के ख़ात्मे के बाद भी कंपनी अपनी कारों के साथ कोई बहुत बड़ा धमाका नहीं कर पाई थी। लेकिन वो सभी समीकरण बदल गए। जब कंपनी ने अपनी डस्टर एसयूवी सवा सात लाख रू में लौंच कर दी। इस एसयूवी ने भारत में रिनॉ को स्थापित कर दिया है। अभी भी कार बिक रही है। और इस फ्रेंच कार कंपनी के लिए अचानक भारत की अहमियत काफ़ी बढ़ गई है। कंपनी की और भी कारें हैं भारत में, कई आने वाली भी हैं। कंपनी इसी सिलसिले में लंबा गेम खेलने की तैयारी में है। नहीं तो यूरोप के बाहर पहली बार अपनी कौंसेप्ट कार को लाना, दिल्ली ऑटो एक्स्पो में और ऊपर से भारतीय पत्रकार को इसे चलाने देने का मतलब यही है कि कंपनी इस देश में पैठ बनाना चाहती है। सभी को बताना चाहती है कि वो यहां आ चुकी है और भारत को लेकर गंभीर है। जिसके लिए उन्होंने चुनी है वो क्विड जिसे डिज़ाइन करने में कई भारतीय पहलू शामिल किए गए। भारतीय डिज़ाइनर ने इसके डिज़ाइन में शिरकत की, भारतीय रंग को शामिल किया। 

यही सब सोचते हुए मैं क्विड में बैठा। छोटी एसयूवी नुमा गाड़ी। कैसे भी मुश्किल रास्तों पर चलने का दावा करते चौड़े, बड़े टायर। फ़्यूचरिस्टिक चेहरा-मोहरा और  आंखें। गाड़ी में ग्रे और पीले रंग का दिलचस्प मेल दिखा। चटख़ रंगरोगन। वहीं कार का दरवाज़ा जो पंख की तरह, ऊपर की ओर खुलता है, वो अंदर की अनोखी दुनिया में ले जाता है। सीटों की दो क़तारें। लेकिन दिलचस्प बात ये कि ड्राइवर सीट बीच में। उसके दोनों तरफ़ एक एक सीटें चिपकी थीं। यानि यार-दोस्त या फ़ैमिली एक साथ झुंड में जाने का अहसास होता है। मानो दोस्त लोग कंधों में हाथ टिकाए चले जा रहे हैं । इसके पीछे भी सीट की एक क़तार है। तो ड्राइवर को कार के बीचोबीच एक स्टीयरिंग व्हील मिलता है, जो किसी रेस कार या प्लेन का छवि देता है। दो तीन नॉब जो कार को स्टार्ट या बंद करने के लिए थे। गियर बदलने के लिए थे । साथ में बाईं तरफ़ एक छोटा स्क्रीन जिसकी भूमिका काफ़ी दिलचस्प थी। वो फ़्लाइंग कंपैनियन यानि उड़न दोस्त का भेजा वीडियो दिखाता है। दरअसल इस कार की छत पर एक छोटू हेलिकॉप्टर को फ़िट किया गया है। तकनीकी तौर पर वो एक क्वॉडकॉप्टर है, कैमरे के साथ । जिसे उड़ा दीजिए और आगे के ट्रैफिक से लेकर अनजान रास्तों को पढ़ कर आपको वीडियो भेज देगा। ये सबसे ज़बर्दस्त फ़ीचर लगा हमें कौंसेप्ट का लेकिन बदकिस्मती से वो आज हमारे सामने नहीं आया था। 
तो फिर हमने इस कार को चलाया भी। इकलौती कार हो तो संभाल कर चलाना लाज़िमी था। चूंकि कौंसेप्ट कार है इसलिए इसे सिर्फ़ चलने लायक बनाया गया है। तो ऐसा नहीं था कि बहुत धांसू ़ड्राइव हो, बहुत धीमी और थोड़ी दूरी की ड्राइव रही। लेकिन कौंसेप्ट कार होने की वजह ये यही काफ़ी थी। वैसे भी कार के अंदर की आवाज़, इसकी चाल और रफ़्तार सब बता रही थी कि ये एक कौंसेप्ट कार है। कार के अलग अलग हिस्से से आने वाली आवाज़ें बता रही थीं कि किसी भी कार को तैयार करने से पहले हरेक हिस्से की कुछ ना कुछ कहानी होती है, शायद वही बताने की कोशिश कर रही थी कार मुझे। 

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