July 06, 2014

ब्रांड भी थकते हैं...


ब्रिटिश चीज़ों को लेकर हिंदुस्तानियों का लगाव कुछ ज़्यादा ही है। अब चाहे इसे ग़ुलाम मानसिकता कहें, अभिजात्य वर्ग में ट्रांज़िशन का रास्ता कहें या फिर कुछ चीज़ें होती भी लगाव लायक। ऐसे में वो ब्रिटिश ना भी हों तो हमें हो सकता है वो अच्छी लगें। जैगुआर कारों के बारे ऐसी ही दुविधा मुझे लगती है। क्या ये ब्रिटिश है इसलिए हिंदुस्तानी इतने लगाव से इस ब्रांड को देखते हैं, क्या इसलिए क्योंकि दरअसल हिंदुस्तानी कंपनी टाटा ने जैगुआर लैंडरोवर को ख़रीद रखा है या फिर इसलिए क्योंकि ये कारें वाकई इतनी ख़ास और ख़ूबसूरत दिखती हैं। हो सकता है तीनों का कांबिनेशन हो, जो मुझे देखने को मिला ग्रेटर नौएडा के पास बनती सड़क किनारे खड़े नौजवानों से बात करके। जो जानते थे कि ये जैगुआर कार है, जानते थे कि कार के बोनट पर एक शेरनुमा कुछ निशान बना रहता है। और ये भी कि ये ऑडी बीएमडब्ल्यू से अलग टाइप की कार है।
तो इन सब नौजवानों और अपने सवालों से मिलने के बाद मैं निकला देखने कि जिस जैगुआर पर इतनी चर्चा हो रही थी वो दरअसल चलाने में थी कैसी और क्या ये सफल होगी उस कोशिश में जहां पर कंपनी यानि जैगुआर की नज़र है। 
ये जैगुआर एक्स एफ़ २.२ थी। जिसे चलाने निकला था और ज़ेहन में वही सवाल था कि इस सेगमेंट में जो पैमाना तीनों जर्मन कारों ने सेट किया है, जो आदत जर्मन कारों ने ग्राहकों को डाल दी, उसमें क्या कुछ नया करने की क्षमता है जैगुआर की। जिस कार को लेकर निकला वो २.२ लीटर डीज़ल इंजिन से लैस एक ऑटोमैटिक कार थी। इससे पहले इसमें ३ लीटर वाला विकल्प तो था लेकिन जैगुआर ने कोशिश की अपनी कार को छोटे इंजिन से लैस करके और क़ीमत को कम करके उन तीनों महारथियों से टक्कर लेने की जो इस सेगमेंट में राज कर रहे थे। मर्सेडीज़, बीएमडबल्यू और ऑडी। 
एक्स एफ़ मोटे तौर पर सबसे सस्ती जैगुआर कारें हैं भारत में जहां एक्स एफ़ फ़िलहाल तीन इंजिन विकल्पों के साथ मौजूद हैं। एक तो २ लीटर पेट्रोल इंजिन विकल्प है, २.२ लीटर डीज़ल इंजिन है और तीसरा ३ लीटर डीज़ल इंजिन विकल्प। 
जहां एक्सएफ़ पेट्रोल ४८.६ लाख की है वहीं एक्सएफ़ २.२ डीज़ल ४८.९ लाख रु की है। और ३ लीटर डीज़ल विकल्प सबसे महंगी ५४.९ लाख रु की है, और एक्सएफ़ २.२ 
के ज़रिए इसी प्राइस बैंड को कम करने की कोशिश की थी जैगुआर ने।
हालांकि छोटे इंजिन के बावजूद ताक़त और प्रदर्शन में कोई कमी नहीं कह सकते हैं। काफ़ी तेज़ तर्रार है, और हैंडलिंग के मामले में अपने सेगमेंट के मुताबिक प्रदर्शन ज़रूर करती है, हां स्पोर्ट्स कार जैसी नहीं कहेंगे स्टीयरिंग और सस्पेंशन के मामले में क्योंकि इसमें ज़्यादा तरजीह आराम को ही दिया गया है। तो जर्मन कारों की हैंडलिंग की आदत में ये थोड़ा अलग लगेगा, क्योंकि उनकी हैंडलिंग का स्तर थोड़ा ज़्यादा स्पोर्टी ज़रूर लगता है। लेकिन ये अलग मूड की कार है। और कार को अंदर से भी देखें तो मौजूदा विकल्पों के मुक़ाबले थो़ड़ा पुराना डिज़ाइन लगता है, बहुत हाईटेक नहीं लगेगा। फ़िनिश में एक शाही टच है लेकिन आजकल यंग होते ग्राहकों के लिए अपटूडेट लुक नहीं कहेंगे। लेकिन एक मुद्दा ये भी है कि जिनके पास पैसे हैं वो ख़र्च करने के लिए नया विकल्प ज़रूर ढूंढ रहे हैं, जर्मन ब्रांडों से एक तरह से थकान भी कह सकते है, ब्रांड भी थकते हैं, ऐसे में उनके लिए जैगुआर एक विकल्प हो सकती है। कार जो महंगी है, लेकिन ख़ूबसूरत भी हैं और ब्रांड भी ब्रिटिश है।

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