बहुत मुश्किल है, भारत में रहें और क्रिकेट से दूर रहें। क्रिकेट से निर्लिप्त रहें। ये कैसे हो सकता है ? अभी हाल ही में दुबई में यात्रा के दौरान एक कीनियाई ,शख़्स से मिला था। जो वर्ल्ड कप के बारे में बात कर रहा था। मैंने बिना ये समझते हुए कि वो क्रिकेट के बारे में कितना जानता है या भारत के बारे में कितना समझता है, अपने कागज़ पत्तर का काम निपटाते हुए एक ढीला-ढाला स्टेटमेंट दे डाला। जीहां भारत में तो क्रिकेट धर्म की तरह है...तो कीनियाई भाई ने बात दिल पर ले ली। अजी धर्म की तरह नहीं, धर्म ही है। आपको क्या लगता है मैंने लगान नहीं देखी। मैंने बड़ी दबी ज़ुबान में आंखें चुराते हुए कहा -यू आर राइट डूड । और 2 अप्रैल को वाकई लगा कि धर्म और धर्म जैसा होने के बीच क्या फर्क है। जिस धर्म के अनुयाई सब हैं...पप्पू-लल्लू हो या मंजीत-चरंजीत। सोनिया-राहुल हों या शाहरूख़ आमिर। और देश के गली-नुक्कड़ रास्तों चौराहों पर इस धर्म का एक ही मंत्रोच्चार होता रहता है- स्कोर क्या हुआ ?
ख़ैर तमाम टोने- टोटके के साथ जब मैंने किसी तरह टीम को वर्ल्ड कप को जितवा दिया तो छूटते ही तमाम ऐलान शुरु हो गए । कहीं से एक करोड़ बरस रहा था कहीं दो । बात केवल पैसे की होती तो मैं ये सब नहीं लिखता । बात गाड़ियों की है। ह्युंडै ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि अगर टीम जीतती है तो सभी टीम मेंबर को मिलेगी एक-एक नई ह्युंडै वर्ना । फ़ाइनल से पहले ही ऐलान हो गया था । लेकिन फ़ाइनल के नतीजे के बाद और युवराज को मैन ऑफ़ दी टूर्नामेंट का ख़िताब मिलने के बाद एक और ऐलान हुआ जिसने मेरे ज़ेहन में पुरानी तस्वीर फिर से ज़िंदा कर दी। रवि शास्त्री को ईनाम के तौर पर कार मिली थी और पूरी टीम कैसे उस कार पर चढ़ कर स्टेडियम का चक्कर लगा रही थी। उस वक्त ना तो समझ थी और ना जानकारी कि कौन सी गाड़ी थी । बाद में पता चला कि उस कार का नाम ऑडी था। और इतने सालों बाद फिर से ऑडी ने ऐलान किया है युवराज को एक कार देने का। और सोचिए कि कैसे युवराज ने पल्टी है किस्मत । हाल में ऐसा भी वक्त आया था जब युवराज के प्रदर्शन को देखते हुए फिएट ने उन्हें अपने ब्रांड से अलग कर दिया था। 6 बॉल पर 6 छक्के के बाद फिएट ने युवी को अपनी पुंतो का ब्रांड एंबैसेडर बनाया और फिर फ़ॉर्म ख़राब होते ही पुंतो के ऐड से भी हटा दिया। ख़ैर शौकीन युवी काफ़ी हैं और उनके पास हैं कई बीएमडब्ल्यू कारें और सुना है हाल ही में आई है उनके पास इटैलियन स्पोर्ट्स कार लैंबोर्गिनी भी ।
मुझे ये बात ज़्यादा दिलचस्प लगती है कि कार ही क्यों दिए जाते हैं क्रिकेटरों को..डाबर क्यों नहीं ऐलान करता धोनी को एक क्विंटल हाजमोला देने का या फिर टीम इंडिया को ज़िदगी भर के लिए रीवाइटल की सप्लाई क्यों नहीं दी जाती है। हल्दीराम भुजिया भी नहीं देने का ऐलान करते । या आईसीआईसीआई हाफ़ रेट पर होमलोन क्यों नहीं दे देती। कारें आती हैं धड़ाधड़ लेकिन । सचिन को तो फेरारी मिल गई थी। दुनिया की सबसे तेज़ कारों में से एक। और यही वो इकलौता मंज़र है जब क्रिकेट के इस ख़ुदा में इंसानों वाली कमज़ोरी देखी गई थी जब रिपोर्ट आया था कि कार पर से ड्यूटी हटाने की गुज़ारिश की गई थी सचिन द्वारा। हालांकि सचिन को हाल में मिली वॉल्वो एस 80 भी। इसके अलावा क्रिकेटरों का मोटरिंग की दुनिया से उपहार और पुरस्कार के अलावा भी रिश्ता है। सचिन फिएट के ब्रांड एंबैसेडर रहे हैं। बल्कि उनके ऑटोग्राफ़ के साथ एक स्पेशल एडिशन पालियो भी आई थी। लेकिन वो ज़्यादा बिकी नहीं। वैसे इस मामले में एक खिलाड़ी जो मेरे हिसाब से सबसे शौकीन हैं वो हैं कैप्टन कूल माही। जो एक असल बाइकर हैं शायद, गेराज में सुना है दो दर्जन से ऊपर बाइक्स हैं, पुरानी यामाहा आरडी 350 से लेकर सुपरबाइक्स तक। और ऊपर से कई एसयूवी तो हैं ही उनके पास। यहां तक कि एसयूवी का बाप हमर भी। साथ में उनकी बाइकर छवि की वजह से टीवीएस लंबे वक्त से धोनी से जुड़ी है।
बाकी खिलाड़ी भी दूर नहीं हैं। भले ही ब्रांड एंबैसेडर ना हों लेकिन फिर भी गाड़ियों से दूर नहीं हैं। जैसे रंग-बिरंगे हरभजन के पास है नई नवेली हमर। इस भारी भरकम एसयूवी के लिए काफ़ी इंतज़ार करना पड़ा भज्जी को और जब आई तो बेकरारी ऐसी कि बिना नंबर प्लेट के कार घुमा ली और कट गया चालान।
वहीं अपने ताबड़तोड़ सहवाग रफ़्तार और ऑफ़रोडिंग से ज़्यादा पसंद करते हैं लग्ज़री। तो हाल ही में दिखी उनकी शाही बेंटली। जब वो प्रैक्टिस के लिए बाकी खिलाड़ियों के साथ पहुंचे।
ख़ैर ये लिस्ट काफ़ी लंबी है और शुरू हो जाएं तो रुकना मुश्किल है, लेकिन ये बात तो तय है कि गाड़ियों की इस फेहरिस्त को देखकर ये ज़रूर लगता है कि काश मैं भी क्रिकेटर होता।
(वर्ल्ड कप में जीत के बाद ये क्रिएटिविटी छपी थी प्रभात ख़बर में )
No comments:
Post a Comment